तथा मानका उदय होने पर पदार्थमें अनिष्टपना मानकर उसे नीचा करना चाहता है,
उनकी हीनता, अपनी उच्चता चाहता है। तथा पुरुषादिक सचेतन पदार्थोंको झुकाना, अपने
आधीन करना इत्यादिरूपसे अपनी हीनता, उनकी उच्चता चाहता है। तथा स्वयं लोकमें जैसे
उच्च दिखे वैसे श्रृंगारादि करना तथा धन खर्च करना इत्यादिरूपसे औरोंको हीन दिखाकर
स्वयं उच्च होना चाहता है। तथा अन्य कोई अपनेसे उच्च कार्य करे उसे किसी उपायसे
नीचा दिखाता है और स्वयं नीचा कार्य करे उसे उच्च दिखाता है।
तथा मायाका उदय होने पर किसी पदार्थको इष्ट मानकर नाना प्रकारके छलों द्वारा
सचेतन पदार्थोंकी सिद्धिके अर्थ अनेक छल करता है। ठगनेके अर्थ अपनी अनेक अवस्थाएँ
करता है तथा अन्य अचेतन-सचेतन पदार्थोंकी अवस्था बदलता है। इत्यादि रूप छलसे अपना
अभिप्राय सिद्ध करना चाहता है।
तृष्णा होती है। तथा अपनेको या अन्य सचेतन-अचेतन पदार्थोंको कोई परिणमन होना इष्ट
मानकर उन्हें उस परिणमनस्वरूप परिणमित करना चाहता है।
इस प्रकार क्रोधादिके उदयसे आत्मा परिणमित होता है।
वहाँ ये कषाय चार प्रकारके हैं। १. अनन्तानुबन्धी, २. अप्रत्याख्यानावरण,
स्वरूपाचरणचारित्र न हो सके वे अनन्तानुबन्धी कषाय हैं।