Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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दूसरा अधिकार ][ ३९
इसप्रकार क्रोधसे बुरा चाहनेकी इच्छा तो हो, बुरा होना भवितव्य आधीन है।
तथा मानका उदय होने पर पदार्थमें अनिष्टपना मानकर उसे नीचा करना चाहता है,
स्वयं ऊँचा होना चाहता है; मल, धूल आदि अचेतन पदार्थोंमें घृणा तथा निरादर आदिसे
उनकी हीनता, अपनी उच्चता चाहता है। तथा पुरुषादिक सचेतन पदार्थोंको झुकाना, अपने
आधीन करना इत्यादिरूपसे अपनी हीनता, उनकी उच्चता चाहता है। तथा स्वयं लोकमें जैसे
उच्च दिखे वैसे श्रृंगारादि करना तथा धन खर्च करना इत्यादिरूपसे औरोंको हीन दिखाकर
स्वयं उच्च होना चाहता है। तथा अन्य कोई अपनेसे उच्च कार्य करे उसे किसी उपायसे
नीचा दिखाता है और स्वयं नीचा कार्य करे उसे उच्च दिखाता है।
इसप्रकार मानसे अपनी महंतताकी इच्छा तो हो, महंतता होना भवितव्य आधीन है।
तथा मायाका उदय होने पर किसी पदार्थको इष्ट मानकर नाना प्रकारके छलों द्वारा
उसकी सिद्धि करना चाहता है। रत्न, सुवर्णादिक अचेतन पदार्थोंकी तथा स्त्री, दासी दासादि
सचेतन पदार्थोंकी सिद्धिके अर्थ अनेक छल करता है। ठगनेके अर्थ अपनी अनेक अवस्थाएँ
करता है तथा अन्य अचेतन-सचेतन पदार्थोंकी अवस्था बदलता है। इत्यादि रूप छलसे अपना
अभिप्राय सिद्ध करना चाहता है।
इस प्रकार मायासे इष्टसिद्धिके अर्थ छल तो करे, परन्तु इष्टसिद्धि होना भवितव्य आधीन
है।
तथा लोभका उदय होने पर पदार्थोंको इष्ट मानकर उनकी प्राप्ति चाहता है।
वस्त्राभरण, धन-धान्यादि अचेतन पदार्थोंकी तृष्णा होती है; तथा स्त्री-पुत्रादिक चेतन पदार्थोंकी
तृष्णा होती है। तथा अपनेको या अन्य सचेतन-अचेतन पदार्थोंको कोई परिणमन होना इष्ट
मानकर उन्हें उस परिणमनस्वरूप परिणमित करना चाहता है।
उस प्रकार लोभसे इष्टप्राप्तिकी इच्छा तो हो, परन्तु इष्टप्राप्ति होना भवितव्यके आधीन है।
इस प्रकार क्रोधादिके उदयसे आत्मा परिणमित होता है।
वहाँ ये कषाय चार प्रकारके हैं। १. अनन्तानुबन्धी, २. अप्रत्याख्यानावरण,
३.प्रत्याख्यानावरण, ४. संज्वलन। वहाँ (जिनका उदय होने पर आत्माको सम्यक्त्व न हो,
स्वरूपाचरणचारित्र न हो सके वे अनन्तानुबन्धी कषाय हैं।
) जिनका उदय होने पर देशचारित्र
यह पंक्ति मूल प्रतिमें नहीं है।