Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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४० ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक
नहीं होता, इसलिये किंचित् त्याग भी नहीं हो सकता वे अप्रत्याख्यानावरण कषाय हैं। तथा
जिनका उदय होने पर सकलचारित्र नहीं होता, इसलिये सर्वका त्याग नहीं हो सकता वे
प्रत्याख्यानावरण कषाय हैं। तथा जिनका उदय होने पर सकलचारित्रमें दोष उत्पन्न होते रहते
हैं, इसलिये यथाख्यातचारित्र नहीं हो सकता वे संज्वलन कषाय हैं।
अनादि संसार अवस्थामें इन चारों ही का निरन्तर उदय पाया जाता है। परम
कृष्णलेश्यारूप तीव्र कषाय हो वहाँ भी और शुक्ललेश्यारूप मंदकषाय हो वहाँ भी निरंतर
चारों ही का उदय रहता है। क्योंकि तीव्र-मंदकी अपेक्षा अनन्तानुबंधी आदि भेद नहीं हैं,
सम्यक्त्वादिका घात करनेकी अपेक्षा यह भेद हैं। इन्हीं प्रकृतियोंका तीव्र अनुभाग उदय होने
पर तीव्र क्रोधादिक होते हैं, मंद अनुभाग उदय होने पर मंद होते हैं।
तथा मोक्षमार्ग होने पर इन चारोंमेंसे तीन, दो, एकका उदय होता है; फि र चारोंका
अभाव हो जाता है।
तथा क्रोधादिक चारों कषायोंमेंसे एक कालमें एक ही का उदय होता है। इन कषायोंके
परस्पर कारणकार्यपना है। क्रोधसे मानादिक हो जाते हैं, मानसे क्रोधादि हो जाते हैं; इसलिये
किसी कालमें भिन्नता भासित होती है, किसी कालमें भासित नहीं होती।
इस प्रकार कषायरूप परिणमन जानना।
तथा चारित्रमोहके ही उदयसे नोकषाय होती हैं; वहाँ हास्यके उदयसे कहीं इष्टपना
मानकर प्रफु ल्लित होता है, हर्ष मानता है। तथा रतिके उदयसे किसीको इष्ट मानकर प्रीति
करता है, वहाँ आसक्त होता है। तथा अरतिके उदयसे किसीको अनिष्ट मानकर अप्रीति
करता है, वहाँ उद्वेगरूप होता है। तथा शोकके उदयसे कहीं अनिष्टपना मानकर दिलगीर
होता है, विषाद मानता है। तथा भयके उदयसे किसीको अनिष्ट मानकर उससे डरता है,
उसका संयोग नहीं चाहता। तथा जुगुप्साके उदयसे किसी पदार्थको अनिष्ट मानकर उससे
घृणा करता है, उसका वियोग चाहता है।
इस प्रकार ये हास्यादिक छह जानना।
तथा वेदोंके उदयसे काम परिणाम होते हैं। वहाँ स्त्रीवेदके उदयसे पुरुषके साथ रमण
करनेकी इच्छा होती है और पुरुषवेदके उदयसे स्त्रीके साथ रमण करनेकी इच्छा होती है,
तथा नपुंसकवेदके उदयसे युगपत्
दोनोंसे रमण करनेकी इच्छा होती है।
इस प्रकार ये नौ तो नोकषाय हैं। यह क्रोधादि सरीखे बलवान नहीं हैं, इसलिये