जिनका उदय होने पर सकलचारित्र नहीं होता, इसलिये सर्वका त्याग नहीं हो सकता वे
प्रत्याख्यानावरण कषाय हैं। तथा जिनका उदय होने पर सकलचारित्रमें दोष उत्पन्न होते रहते
हैं, इसलिये यथाख्यातचारित्र नहीं हो सकता वे संज्वलन कषाय हैं।
चारों ही का उदय रहता है। क्योंकि तीव्र-मंदकी अपेक्षा अनन्तानुबंधी आदि भेद नहीं हैं,
सम्यक्त्वादिका घात करनेकी अपेक्षा यह भेद हैं। इन्हीं प्रकृतियोंका तीव्र अनुभाग उदय होने
पर तीव्र क्रोधादिक होते हैं, मंद अनुभाग उदय होने पर मंद होते हैं।
किसी कालमें भिन्नता भासित होती है, किसी कालमें भासित नहीं होती।
तथा चारित्रमोहके ही उदयसे नोकषाय होती हैं; वहाँ हास्यके उदयसे कहीं इष्टपना
करता है, वहाँ आसक्त होता है। तथा अरतिके उदयसे किसीको अनिष्ट मानकर अप्रीति
करता है, वहाँ उद्वेगरूप होता है। तथा शोकके उदयसे कहीं अनिष्टपना मानकर दिलगीर
होता है, विषाद मानता है। तथा भयके उदयसे किसीको अनिष्ट मानकर उससे डरता है,
उसका संयोग नहीं चाहता। तथा जुगुप्साके उदयसे किसी पदार्थको अनिष्ट मानकर उससे
घृणा करता है, उसका वियोग चाहता है।
तथा वेदोंके उदयसे काम परिणाम होते हैं। वहाँ स्त्रीवेदके उदयसे पुरुषके साथ रमण
तथा नपुंसकवेदके उदयसे युगपत्