जो बहुविधि भवदुखनिकौ, करिहै सत्ता नाश
हैं, इसलिये संसारसे मुक्त होनेका उपाय करते हैं।
तथा उसकी अवस्थाका वर्णन करके, संसारीको संसार-रोगका निश्चय कराके, अब उसका उपाय
करनेकी रुचि कराते हैं।
है, इसलिये दुःख दूर नहीं होता, तब तड़प-तड़पकर परवश हुआ उन दुःखोंको सहता है।
उसे वैद्य दुःखका मूलकारण बतलाये, दुःखका स्वरूप बतलाये, उन उपायोंको झूठा बतलाये,
तब सच्चे उपाय करनेकी रुचि होती है। उसी प्रकार संसारी संसारसे दुःखी हो रहा है,
परन्तु उसका मूलकारण नहीं जानता, तथा सच्चे उपाय नहीं जानता और दुःख सहा भी नहीं
जाता; तब अपनेको भासित हो वही उपाय करता है, इसलिये दुःख दूर नहीं होता, तब
तड़प-तड़पकर परवश हुआ उन दुःखोंको सहता है। उसे यहाँ दुःखका मूलकारण बतलाते
हैं, दुःखका स्वरूप बतलाते हैं और उन उपायोंको झूठे बतलायें तो सच्चे उपाय करनेकी
रुचि हो। इसलिये यह वर्णन यहाँ करते हैं।