कहना है कि
गोम्मटसारकी भाँति उन जैसे आपके अन्य टीकाग्रंथ भी इतने ही महान हैं। इस परसे इन
ग्रंथोंके भाषाटीकाकार कितने तीक्ष्णबुद्धिके धारक थे, यह स्वयमेव ही झलकता है। आपने
अपने छोटेसे जीवनकालमें इन महानग्रंथोंकी टीका लिखी है, इतना ही नहीं वरन् इतने अल्प
समयमें स्वमत
अभ्यासीयोंको स्वयं ही लक्षगत् हो जाय
सरल देशभाषामय ‘मोक्षमार्गप्रकाशक’ ग्रंथ ऐसा अद्भुत है कि जिसकी रहस्यपूर्ण गंभीरता और
संकलनबुद्धि विषयरचनाको देख तीक्ष्ण बुद्धिवंतकी बुद्धि भी आश्चर्यचकित हो जाती है। इस
ग्रंथका निष्पक्ष
आगमोंके मर्मज्ञ तथा प्रतिभासंपन्न विद्वान हैं। ग्रंथके विषयोंका प्रतिपादन सर्वको हितकर है
और महान गंभीर आशयपूर्वक हुआ है।
पश्चात् उसका प्रयोजन बताकर बादमें ग्रंथकी प्रामाणिकताका दिग्दर्शन कराया है। तत्पश्चात्
श्रवण-पठन करनेयोग्य शास्त्रका, वक्ता तथा श्रोताके स्वरूपका सप्रमाण विवेचनकर ‘मोक्षमार्ग-
प्रकाशक’ ग्रंथकी सार्थकता बताई गई है।
मूर्तिक कर्मोंका संबंध, उन कर्मोंके ‘घाति-अघाति’ ऐसे भेद, योग और कषायसे होनेवाले
यथायोग्य कर्मबंधका निर्देश, जड़-पुद्गल परमाणुओंका यथायोग्य कर्मप्रकृतिरूप परिणमनका
उल्लेख करके भावोंसे पूर्वबद्ध कर्मोंकी अवस्थामें होनेवाले परिवर्तनका निर्देश करनेमें आया