Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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है। साथमें कर्मोंके फलदानमें निमित्त-नैमित्तिकसंबंध और भावकर्मद्रव्यकर्मका स्वरूप भी
बताया है।
तीसरे अधिकारमें संसारदुःख और मोक्षसुखका निरूपण करते हुए समस्त दुःखोंका मूलतः
कारण ऐसे मिथ्यात्वके प्रभावका कथन किया गया है, विषयोंकी अभिलाषा जनित मोहसे उत्पन्न
दुःखको तथा मोही जीवके दुःखनिवृत्तिके उपायको निःसार बताकर दुःखनिवृत्तिका सच्चा उपाय
बताया है, अन्य कर्मोंके उदय तथा दर्शनमोह तथा चारित्रमोहके उदयसे होनेवाले दुःखका
व उनकी निवृत्तिका उल्लेख भी किया गया है। एकेन्द्रियादिक जीवोंके दुःखका वर्णन करके
नरकादि चारों गतियोंके घोर कष्ट और उनको दूर करनेका सामान्य-विशेष उपायोंका भी विवेचन
किया गया है। इस तरह उस अधिकारमें कर्मकी अपेक्षासे व गतियोंकी अपेक्षासे जीवके
दुःखका वर्णनकर उससे संपूर्ण निवृत्तिरूप (मोक्ष) सुखको सिद्धकर, उन दुःखोंसे निवृत्तिके
उपायका सामान्य स्वरूप दर्शाया गया है।
चौथे अधिकारमें मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र जो कि दुःखके मूल कारण हैं, उनका विशेष
निरूपण करते हुए प्रयोजनभूत व अप्रयोजनभूत पदार्थों तथा उनके आश्रयसे होती राग-द्वेषकी
प्रवृत्तिका स्वरूप बताया गया है।
पाँचवें अधिकारमें आगम व युक्तिके आधारसे विविध मतोंकी समीक्षा करके गृहीत
मिथ्यात्वका बहुत ही मार्मिक विवेचन किया है; साथमें ही अन्यमतके प्राचीन ग्रंथोंके उदाहरणों
द्वारा जैनधर्मकी प्राचीनता तथा महत्ता पुष्ट की है, श्वेताम्बर संप्रदाय संमत अनेक कल्पनाओं
तथा मान्यताओंकी समीक्षा की गई है; ‘अछेरां (आश्चर्य)’का निराकरण करते हुए
केवलीभगवानके आहार-निहारका प्रतिषेध तथा मुनिको वस्त्र-पात्रादि उपकरण रखनेका निषेध
किया है; साथ ही साथ ढूँढ़कमत (स्थानकवासी)की समीक्षा करते हुए मुहपट्टीका निषेध और
प्रतिमाधारी श्रावक नहीं होनेकी मान्यताका तथा मूर्तिपूजाके प्रतिषेधका निराकरण भी किया
गया है।
छट्ठवें अधिकारमें गृहीत मिथ्यात्वके निमित्त कुगुरु, कुदेव और कुधर्मका स्वरूप बताकर
उनकी सेवाका प्रतिषेध किया गया है; तदुपरांत अनेक युक्तियों द्वारा ग्रह, सूर्य, चन्द्र, गाय
और सर्पादिककी पूजाका भी निराकरण किया है।
सातवें अधिकारमें जैन मिथ्यादृष्टिका सांगोपांग विवेचन किया है। इसमें सर्वथा एकान्त
निश्चयावलंबी जैनाभास तथा सर्वथा एकान्त व्यवहारावलंबी जैनाभासोंका युक्तिपूर्ण कथन करनेमें
आया है; जिसको पढ़ते ही जैनदृष्टिका जो सत्यस्वरूप है, वह उपस आता है और वस्तुस्थितिको
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