Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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तीसरा अधिकार ][ ६९
गौणता है। किसीका बुरा करना तथा किसीको हीन करना इत्यादि कार्य निकृष्ट
देवोंके तो कौतूहलादिसे होते हैं, परन्तु उत्कृष्ट देवोंके थोड़े होते हैं, मुख्यता नहीं है; तथा
माया
लोभ कषायोंके कारण पाये जाते हैं इसलिये उनके कार्यकी मुख्यता है; इसलिये छल
करना, विषय-सामग्रीकी चाह करना इत्यादि कार्य विशेष होते हैं। वे भी ऊँचे-ऊँचे देवोंके
कम हैं।
तथा हास्य, रति कषायके कारण बहुत पाये जाते हैं, इसलिए इनके कार्योंकी मुख्यता
है। तथा अरति, शोक, भय, जुगुप्सा इनके कारण थोड़े हैं, इसलिये इनके कार्योंकी गौणता
है। तथा स्त्रीवेद, पुरुषवेदका उदय है और रमण करनेका भी निमित्त है सो काम-सेवन
करते हैं। ये भी कषाय ऊपर-ऊपर मन्द हैं। अहमिन्द्रोंके वेदोंकी मन्दताके कारण काम-
सेवनका अभाव है।
इस प्रकार देवोंके कषायभाव है और कषायसे ही दुःख है।
तथा इनके कषायें जितनी थोड़ी हैं उतना दुःख भी थोड़ा है, इसलिये औरोंकी अपेक्षा
इन्हें सुखी कहते हैं। परमार्थसे कषायभाव जीवित है उससे दुःखी ही हैं।
तथा वेदनीयमें साताका उदय बहुत है। वहाँ भवनत्रिकको थोड़ा है, वैमानिकोंके ऊपर-
ऊपर विशेष है। इष्ट शरीरकी अवस्था, स्त्री, महल आदि सामग्रीका संयोग पाया जाता है।
तथा कदाचित् किंचित् असाताका भी उदय किसी कारणसे होता है। वह निकृष्ट देवोंके कुछ
प्रगट भी है, परन्तु उत्कृष्ट देवोंके विशेष प्रगट नहीं है। तथा आयु बड़ी है। जघन्य आयु
दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट इकतीस सागर है। इससे अधिक आयुका धारी मोक्षमार्ग प्राप्त
किए बिना नहीं होता। सो इतने काल तक विषय-सुखमें मग्न रहते हैं। तथा नामकर्मकी
देवगति आदि सर्व पुण्यप्रकृतियोंका ही उदय है, इसलिये सुखका कारण है। और गोत्रमें
उच्च गोत्रका ही उदय है, इसलिये महन्त पदको प्राप्त हैं।
इस प्रकार इनको पुण्य-उदयकी विशेषतासे इष्ट सामग्री मिली है और कषायोंसे इच्छा
पायी जाती है, इसलिये उसके भोगनेमें आसक्त हो रहे हैं, परन्तु इच्छा अधिक ही रहती
है, इसलिये सुखी नहीं होते। उच्च देवोंको उत्कृष्ट पुण्य-उदय है, कषाय बहुत मंद है; तथापि
उनके भी इच्छाका अभाव नहीं होता, इसलिये परमार्थसे दुःखी ही हैं।
इस प्रकार संसारमें सर्वत्र दुःख ही दुःख पाया जाता है।इस प्रकार पर्याय- अपेक्षासे
दुःखका वर्णन किया।