देवोंके तो कौतूहलादिसे होते हैं, परन्तु उत्कृष्ट देवोंके थोड़े होते हैं, मुख्यता नहीं है; तथा
माया
कम हैं।
है। तथा स्त्रीवेद, पुरुषवेदका उदय है और रमण करनेका भी निमित्त है सो काम-सेवन
करते हैं। ये भी कषाय ऊपर-ऊपर मन्द हैं। अहमिन्द्रोंके वेदोंकी मन्दताके कारण काम-
सेवनका अभाव है।
तथा इनके कषायें जितनी थोड़ी हैं उतना दुःख भी थोड़ा है, इसलिये औरोंकी अपेक्षा
तथा कदाचित् किंचित् असाताका भी उदय किसी कारणसे होता है। वह निकृष्ट देवोंके कुछ
प्रगट भी है, परन्तु उत्कृष्ट देवोंके विशेष प्रगट नहीं है। तथा आयु बड़ी है। जघन्य आयु
दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट इकतीस सागर है। इससे अधिक आयुका धारी मोक्षमार्ग प्राप्त
किए बिना नहीं होता। सो इतने काल तक विषय-सुखमें मग्न रहते हैं। तथा नामकर्मकी
देवगति आदि सर्व पुण्यप्रकृतियोंका ही उदय है, इसलिये सुखका कारण है। और गोत्रमें
उच्च गोत्रका ही उदय है, इसलिये महन्त पदको प्राप्त हैं।
है, इसलिये सुखी नहीं होते। उच्च देवोंको उत्कृष्ट पुण्य-उदय है, कषाय बहुत मंद है; तथापि
उनके भी इच्छाका अभाव नहीं होता, इसलिये परमार्थसे दुःखी ही हैं।