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चौथा अधिकार ][ ७९
तथा सर्वथा सर्व कर्मबन्धका अभाव होना उसका नाम मोक्ष है। यदि उसे नहीं पहिचाने
तो उसका उपाय नहीं करे, तब संसारमें कर्मबन्धसे उत्पन्न दुःखोंको ही सहे; इसलिये मोक्षको
जानना। इस प्रकार जीवादि सात तत्त्व जानना।
तथा शास्त्रादि द्वारा कदाचित् उन्हें जाने, परन्तु ऐसे ही हैं ऐसी प्रतीति न आयी
तो जाननेसे क्या हो? इसलिये उनका श्रद्धान करना कार्यकारी है। ऐसे जीवादि तत्त्वोंका
सत्य श्रद्धान करने पर ही दुःख होनेका अभावरूप प्रयोजनकी सिद्धि होती है। इसलिये
जीवादिक पदार्थ हैं वे ही प्रयोजनभूत जानना।
तथा इनके भेद पुण्य-पापादिरूप हैं उनका भी श्रद्धान प्रयोजनभूत है, क्योंकि सामान्यसे
विशेष बलवान है। इस प्रकार ये पदार्थ तो प्रयोजनभूत हैं, इसलिये इनका यथार्थ श्रद्धान
करने पर तो दुःख नहीं होता, सुख होता है; और इनका यथार्थ श्रद्धान किए बिना दुःख
होता है, सुख नहीं होता।
तथा इनके अतिरिक्त अन्य पदार्थ हैं वे अप्रयोजनभूत हैं, क्योंकि उनका यथार्थ श्रद्धान
करो या मत करो उनका श्रद्धान कुछ सुख-दुःखका कारण नहीं है।
यहाँ प्रश्न उठता है कि — पहले जीव-अजीव पदार्थ कहे उनमें तो सभी पदार्थ आ
गये; उनके सिवा अन्य पदार्थ कौन रहे जिन्हें अप्रयोजनभूत कहा है।
समाधानः — पदार्थ तो सब जीव-अजीवमें गर्भित हैं, परन्तु उन जीव-अजीवोंके विशेष
बहुत हैं। उनमेंसे जिन विशेषों सहित जीव-अजीवका यथार्थ श्रद्धान करनेसे स्व-परका श्रद्धान
हो, रागादिक दूर करनेका श्रद्धान हो, उनसे सुख उत्पन्न हो; तथा अयथार्थ श्रद्धान करनेसे
स्व-परका श्रद्धान नहीं हो, रागादिक दूर करनेका श्रद्धान नहीं हो, इसलिये दुःख उत्पन्न हो;
उन विशेषों सहित जीव-अजीव पदार्थों तो प्रयोजनभूत जानना।
तथा जिन विशेषों सहित जीव-अजीवका यथार्थ श्रद्धान करने या न करनेसे स्व-परका
श्रद्धान हो या न हो, तथा रागादिक दूर करनेका श्रद्धान हो या न हो — कोई नियम नहीं
है; उन विशेषों सहित जीव-अजीव पदार्थ अप्रयोजनभूत जानना।
जैसे — जीव और शरीरका चैतन्य, मूर्त्तत्वादि विशेषोंसे श्रद्धान करना तो प्रयोजनभूत
है; और मनुष्यादि पर्यायोंका तथा घट-पटादिका अवस्था, आकारादि विशेषोंसे श्रद्धान करना
अप्रयोजनभूत है। इसी प्रकार अन्य जानना।
इस प्रकार कहे गये जो प्रयोजनभूत जीवादिक तत्त्व उनके अयथार्थ श्रद्धानका नाम
मिथ्यादर्शन जानना।