Moksha-Marg Prakashak (Hindi).

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चौथा अधिकार ][ ८१
भी हिलते हैं; यह सबको एक मानकर ऐसा मानता है कि मैं गमनादि कार्य करता हूँ, मैं
वस्तुका ग्रहण करता हूँ अथवा मैंने किया है
इत्यादिरूप मानता है।
तथा जीवके कषायभाव हों तब शरीरकी चेष्टा उनके अनुसार हो जाती है। जैसे
क्रोधादिक होने पर लाल नेत्रादि हो जाते हैं, हास्यादि होने पर मुखादि प्रफु ल्लित हो जाते
हैं, पुरुषवेदादि होने पर लिंगकाठिन्यादि हो जाते हैं, यह सब एक मानकर ऐसा मानता है
कि यह कार्य सब मैं करता हूँ। तथा शरीरमें शीत, उष्ण, क्षुधा, तृषा, रोग इत्यादि अवस्थाएँ
होती हैं; उनके निमित्तसे मोहभाव द्वारा स्वयं सुख-दुःख मानता है; इन सबको एक जानकर
शीतादिक तथा सुख-दुःख अपनेको ही हुए मानता है।
तथा शरीरके परमाणुओंका मिलना-बिछुड़ना आदि होनेसे अथवा उनकी अवस्था
पलटनेसे या शरीर स्कन्धके खण्ड आदि होनेसे स्थूल - कृशादिक, बाल - वृद्धादिक अथवा
अंगहीनादिक होते हैं और उसके अनुसार अपने प्रदेशोंका संकोच-विस्तार होता है; यह सबको
एक मानकर मैं स्थूल हूँ, मैं कृश हूँ, मैं बालक हूँ, मैं वृद्ध हूँ, मेरे इन अंगोंका भंग हुआ
है
इत्यादिरूप मानता है।
तथा शरीरकी अपेक्षा गति, कुलादिक होते हैं उन्हें अपना मानकर मैं मनुष्य हूँ, मैं
तिर्यंच हूँ, मैं क्षत्रिय हूँ, मैं वैश्य हूँइत्यादिरूप मानता है। तथा शरीरका संयोग होने
और छूटनेकी अपेक्षा जन्म-मरण होता है; उसे अपना जन्म-मरण मानकर मैं उत्पन्न हुआ,
मैं मरूँगा
ऐसा मानता है।
तथा शरीरकी ही अपेक्षा अन्य वस्तुओंसे नाता मानता है। जिनके द्वारा शरीरकी उत्पत्ति
हुई उन्हें अपने माता-पिता मानता है; जो शरीरको रमण कराये उसे अपनी रमणी मानता है;
जो शरीरसे उत्पन्न हुआ उसे अपना पुत्र मानता है; जो शरीरको उपकारी हो उसे मित्र मानता
है; जो शरीरका बुरा करे उसे शत्रु मानता है
इत्यादिरूप मान्यता होती है।
अधिक क्या कहें? जिस-तिस प्रकारसे अपनेको और शरीरको एक ही मानता है।
इन्द्रियादिकके नाम तो यहाँ कहे हैं, परन्तु इसे तो कुछ गम्य नहीं हैं। अचेत हुआ
पर्यायमें अहंबुद्धि धारण करता है। उसका कारण क्या है? वह बतलाते हैंः
इस आत्माको अनादिसे इन्द्रियज्ञान है; उससे स्वयं अमूर्तिक है वह तो भासित नहीं
होता, परन्तु शरीर मूर्त्तिक है वही भासित होता है और आत्मा किसीको आपरूप जानकर
अहंबुद्धि धारण करे ही करे, सो जब स्वयं पृथक् भासित नहीं हुआ तब उनके समुदायरूप
पर्यायमें ही अहंबुद्धि धारण करता है।
तथा अपनेको और शरीरको निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध बहुत हैं, इसलिये भिन्नता भासित