Moksha Shastra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अ. प उपसंहार ] [ ३६प वचन के शरीरनी चेष्टा उपरथी नक्की करवामां आव्युं छे. तेमांथी इन्द्रिय द्वारा शरीर नक्की कर्युं ते ज्ञानने आपणे इन्द्रियजन्य कहीए छीए अने ते मनुष्यमां ज्ञान होवानुं नक्की कर्युं ते अनुमानजन्यज्ञान छे एम आपणे कहीए छीए.

३. आ प्रमाणे मनुष्यमां आपणे बे प्रकार जाण्या-१. इन्द्रियजन्य ज्ञानथी शरीर, २. अनुमानजन्यज्ञानथी ज्ञान. पछी भले कोई मनुष्यने ज्ञान ओछा उघाडरूप होय के कोईने वधारे उघाडरूप होय. ते बे बाबतो जाणतां ते एक ज पदार्थना बे गुणो छे के जुदा जुदा बे पदार्थना बे गुणो छे ते आपणे नक्की करवुं जोईए.

४. जे मनुष्यने आपणे जोयो तेना संबंधे नीचे प्रमाणे बन्यानुं दाखला माटे कल्पीए.

(१) ते मनुष्यना हाथमां कांई लाग्युं अने शरीरमांथी लोही नीकळवा लाग्युं.

(२) ते मनुष्ये लोही नीकळतुं जाण्युं अने ते लोही तरत ज बंध थई जाय तो सारुं-एवी तीव्र भावना भावी.

(३) पण ते ज वखते लोही वधारे नीकळवा मांडयुं अने घणा उपायो कर्या, पण ते बंध पडतां घणो वखत लाग्यो.

(४) लोही बंध पडया पछी पोताने जलदी आराम थई जाय एवी ते मनुष्ये भावना करवानुं सतत् चालु राख्युं.

(प) पण भावना अनुसार परिणाम आववाने बदले ते भाग सडतो गयो. (६) ते मनुष्यने घणुं दुःख थयुं अने ते दुःखनुं तेने वेदन थयुं. (७) बीजां सगांसंबंधीओए ते मनुष्यने दुःख थाय छे एम जाण्युं, पण ते मनुष्यना दुःख-वेदननो कांई पण अंश तेओ लई शक्या नहि.

(८) आखरे तेणे हाथना सडता भागने कपाव्यो. (९) ते हाथ कपाव्या छतां ते माणसनुं ज्ञान तेटलुं रह्युं अने विशेष अभ्यासथी घणुं वधी गयुं अने बाकी रहेलुं शरीर घणुं नबळुं पडतुं गयुं तेम ज वजनमां घटतुं गयुं.

(१०) शरीर नबळुं पडवा छतां तेने ज्ञानाभ्यासना बळथी धीरज रही अने शांति वधी.

प. आ दश बाबतो शुं साबित करे छे ते आपणे जोईए. मनुष्यमां विचारशक्ति (Reasoning faculty) छे अने ते तो दरेक मनुष्यने अनुभवगम्य छे. हवे विचार करतां नीचेना सिद्धांतो प्रगटे छेः-


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३६६ ] [ मोक्षशास्त्र

(१) शरीर अने ज्ञान धरावती वस्तु ए बन्ने जुदा जुदा पदार्थो छे, केम के ते ज्ञान धरावती वस्तुए ‘लोही तरत ज बंध थई जाय तो सारुं’ तेवी इच्छा करवा छतां लोही बंध थयुं नहि, एटलुं ज नहि पण इच्छाथी विरुद्ध शरीरनी अने लोहीनी अवस्था थई. जो शरीर अने ज्ञान धरावती वस्तु ते बन्ने एक ज होय तो तेम थाय नहि.

(२) जो ते बन्ने एक ज वस्तु होत तो ज्यारे ज्ञान करनारे इच्छा करी ते ज वखते लोही बंध थई जात.

(३) जो ते बन्ने एक ज वस्तु होत तो लोही तरत ज बंध पडत, एटलुं ज नहि परंतु, उपर नं. (४-प) मां जणाव्या मुजब भावना करेल होवाथी शरीरनो ते भाग सडत पण नहि, ऊलटुं ज्यारे इच्छा करी त्यारे तरत ज आराम थई जात. परंतु बन्ने जुदां होवाथी तेम बनतुं नथी.

(४) उपर नं. (६-७) मां जे हकीकत जणावी छे ते साबित करे छे के जेनो हाथ सडे छे ते मनुष्य अने तेना सगांसंबंधी बधा स्वतंत्र पदार्थो छे. जो तेओ एक होत तो ते मनुष्यनुं दुःख तेओ भेगां मळी भोगवत अने ते मनुष्य पोताना दुःखनो भाग तेमने आपत अथवा घणां सगांओ तेनुं दुःख लईने पोते ते भोगवत, पण तेम बनी शक्तुं नथी. माटे तेओ पण आ मनुष्यथी जुदी स्वतंत्र ज्ञानरूप अने शरीर सहित व्यक्तिओ छे एम सिद्ध थयुं.

(प) उपर नं. (८-९) मां जे हकीकत जणावी छे ते साबित करे छे के शरीर संयोगी पदार्थ छे; तेथी हाथ जेटलो भाग तेमांथी छूटो पडी शक्यो. जो ते एक अखंड पदार्थ होत तो हाथ जेटलो भाग कपाईने छूटो पडी न शकत. वळी ते साबित करे छे के शरीरथी ज्ञान स्वतंत्र छे केम के शरीरनो अमुक भाग कपाया छतां तेटला प्रमाणमां ज्ञान घटतुं नथी पण तेटलुं ज रहे छे; अने शरीर नबळुं पडतुं जाय छतां ज्ञान वधतुं जाय छे, एटले शरीर अने ज्ञान एम स्वतंत्र वस्तुओ छे ए साबित थयुं.

(६) उपर नं. (१०) थी साबित थयुं के ज्ञान वध्युं तोपण वजन वध्युं नहि परंतु ज्ञान साथे संबंध राखनार धीरज, शांति वगेरेमां वधारो थयो; शरीर वजनमां घटयुं छतां ज्ञानमां घटाडो न थयो, माटे ज्ञान अने शरीर बे जुदा, स्वतंत्र, विरोधी गुणवाळा पदार्थो छे जेम केः . शरीर वजनवाळुं अने ज्ञान वजनवगरनुं . शरीर घटयुं, ज्ञान वध्युं, . शरीरनो भाग ओछो थयो, ज्ञान तेटलुं ज रह्युं अने पछी वध्युं; . शरीर इन्द्रियगम्य; संयोगी, छूटुं पडी कोई बीजी जग्याए तेना भागो रही शके तेवुं छे; ज्ञान इन्द्रियगम्य नथी परंतु ज्ञानगम्य छे, तेना कटका के भागला थई


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अ. प उपसंहार ] [ ३६७ शके नहि केम के ते असंयोगी छे अने तेनो कोई भाग छूटो पडीने बीजे रही शके नहि तेम ज कोईने आपी शकाय नहि; . बजारमांथी जड वस्तुओ लावीने तेनो खोराक बनावी, तेने खावाथी आ संयोगी पदार्थ-शरीर बन्युं छे, तेना कटका-भाग थई शके छे; परंतु ज्ञान बजारमांथी मळे नहि; कोई पोतानुं ज्ञान बीजाने आपी शके नहि परंतु पोताना अभ्यासथी ज ज्ञान वधारी शकाय; असंयोगी अने पोतामांथी आवतुं होवाथी ज्ञान पोताने ज-आतमाने ज अवलंबनारुं छे.

(७) ‘ज्ञान’ गुणवाचक नाम छे; ते गुणी विना होय नहि, माटे ज्ञानगुणनी धारक एवी एक वस्तु छे. तेने जीव, आत्मा, सचेतन पदार्थ, चैतन्य इत्यादि नामोथी ओळखी शकाय छे. आ रीते जीव पदार्थ ज्ञानसहित, असंयोगी, अरूपी साबित थयो अने तेनाथी विरुद्ध शरीर ज्ञानरहित, अजीव, संयोगी, रूपी पदार्थ साबित थयुं; ते ‘पुद्गल’ नामथी ओळखाय छे. शरीर सिवायना बीजा जे जे पदार्थो द्रश्यमान थाय छे ते बधा पण शरीरनी जेम पुद्गल ज छे.

(८) वळी, ज्ञाननुं ज्ञानपणुं कायम टकीने तेमां वधघट थाय छे. ते वधघटने ज्ञाननी तारतम्यतारूप अवस्था कहेवामां आवे छे. शास्त्रपरिभाषामां तेने ‘पर्याय’ कहे छे. नित्य जे ज्ञानपणुं टकी रहे छे ते ‘ज्ञानगुण’ छे.

(९) शरीर संयोगी साबित थयुं तेथी ते वियोग सहित ज होय. वळी शरीरना नाना नाना भाग करीए तो घणा थाय अने बाळतां राख थाय. तेथी एम साबित थयुं के शरीर अनेक रजकणोनो पिंड छे. जेम जीव अने ज्ञान इन्द्रियगम्य नथी पण विचार (Reasoning) गम्य छे; तेम पुद्गलरूप अविभागी रजकण ते पण इन्द्रियगम्य नथी, पण ज्ञानगम्य छे.

(१०) शरीर ते मूळ वस्तु नथी पण अनेक रजकणोनो पिंड छे अने रजकण स्वतंत्र वस्तु छे एटले के असंयोगी पदार्थ छे.

(११) जीव अने रजकण असंयोगी छे तेथी अनादि अनंत छे एम सिद्ध थयुं, केम के जे पदार्थ कोई संयोगथी उत्पन्न थयो न होय तेनो क्यारेय नाश पण होय नहि.

(१२) शरीर एक स्वतंत्र पदार्थ नथी पण अनेक पदार्थोनी संयोगी अवस्था छे. अवस्था हंमेशां शरूआत सहित ज होय तेथी शरीर शरूआत सहित छे. ते संयोगी होवाथी वियोगी छे.

६. जीव अनेक अने अनादि अनंत छे, तथा रजकणो अनेक अने अनादि अनंत छे. एक जीव बीजा कोई जीव साथे पिंडरूप थई शके नहि; परंतु रजकणो पिंडरूप


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३६८ ] [ मोक्षशास्त्र थाय छे. आ प्रमाणे द्रव्यनुं लक्षण सत्, अनेक द्रव्यो, रजकणो, तेना स्कंध, उत्पाद- व्यय-ध्रौव्य ए आदि विषयो आ अध्यायमां कह्या छे ते सिद्ध थया.

७. आ प्रमाणे जीव अने पुद्गलनुं त्रिकाळ जुदापणुं तथा अनादि अनंतपणुं सिद्ध थतां नीचेनी लौकिक मान्यताओ असत्य ठरे छेः-

(१) अनेक रजकणो भेगां थतां तेमांथी नवो जीव उत्पन्न थाय छे ते मान्यता असत्य छे; केम के रजकणो ज्ञानरहित जड छे तेथी ज्ञानरहित गमे तेटला पदार्थो भेगा थाय तोपण जीव उत्पन्न थाय ज नहि. जेम अनेक अंधारां भेगां करतां तेमांथी अजवाळुं थाय नहि, तेम अजीवमांथी जीवनी उत्पत्ति थाय नहि.

(२) जीवनुं स्वरूप शुं छे ते आपणने खबर न पडे, एवी मान्यता असत्य छे, केम के ज्ञान शुं न जाणे? ज्ञाननी रुचि वधारतां आत्मानुं स्वरूप बराबर जाणी शकाय छे. माटे ते विचारगम्य (reasoning-दलीलगम्य) छे एम उपर साबित कर्युं छे.

(३) जीव अने शरीर ईश्वरे बनाव्यां एम कोई माने छे पण ते मान्यता असत्य छे, केम के बन्ने पदार्थो अनादि-अनंत छे, अनादि अनंत पदार्थोनो कोई कर्ता होई शके ज नहि.

८. जीव शरीरनुं कांई करी शके अगर तो शरीर जीवनुं कांई करी शके छे एवी मान्यता पण तेटली ज भूल भरेली छे, एम उपर पारा ४ ना पेटामां जे दस बनावो आप्या छे ते उपरथी सिद्ध थाय छे. आ बाबतनो सिद्धांत आ अध्यायना सूत्र ४१ नी टीकामां पण आप्यो छे.

(८) उपादान–निमित्त संबंधी सिद्धांत

जीव, पुद्गल सिवायना बीजां चार द्रव्योनी, सिद्धि करतां पहेलां आपणे उपादान-निमित्तना सिद्धांतने अने तेनी साबितीने समजी लेवानी जरूर छे. उपादान एटले वस्तुनी सहजशक्ति-निजशक्ति अने निमित्त एटले संयोगरूप पर वस्तु. तेनुं द्रष्टांत एक मनुष्यनुं नाम देवदत्त छे; तेनो अर्थ ए के देवदत्त पोते पोताथी पोतारूप छे पण ते यज्ञदत्त वगेरे बीजा कोई पदार्थरूपे नथी; आम समजतां बे पदार्थो जुदापणे साबित थाय छेः- १. देवदत्त पोते, २. यज्ञदत्त वगेरे बीजा पदार्थो. देवदत्तनुं होवापणुं सिद्ध करवामां बे कारणो थयांः- १. देवदत्त पोते, २. यज्ञदत्त वगेरे बीजा पदार्थो जगतमां सद्भावरूप छे तेमनो देवदत्तमां अभाव. आ बे कारणोमां देवदत्तनुं पोतानुं होवापणुं ते निजशक्ति होवाथी मूळ कारण अर्थात् उपादानकारण छे, अने जगतना


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अ. प उपसंहार ] [ ३६९ यज्ञदत्त वगेरे बीजा पदार्थोनो दरेकनो पोतपोतामां सद्भाव अने देवदत्तमां अभाव ते देवदत्तनुं होवापणुं सिद्ध करवामां निमित्तकारण छे. जो आ प्रमाणे न मानवामां आवे अने यज्ञदत्त वगेरे बीजा कोई पण पदार्थनो देवदत्तमां सद्भाव मानवामां आवे तो ते पण देवदत्त थई जाय. आम थतां देवदत्तनी स्वतंत्र हयाती ज सिद्ध न थई शके.

वळी जो यज्ञदत्त वगेरे बीजा पदार्थोनी हयाती ज-सद्भाव ज न मानीए तो देवदत्तनुं होवापणुं पण सिद्ध थई शके नहि, केमके एक मनुष्यने बीजाथी जुदो पाडवा माटे तेने देवदत्त कह्यो; तेथी देवदत्तना सत्तापणामां देवदत्त मूळ उपादानकारण अने जेमनाथी तेने जुदो पाडयो तेवा अन्य पदार्थो ते निमित्तकारण छे.

आ उपरथी एवो नियम पण सिद्ध थयो के निमित्तकारण उपादानने अनुकूळ होय पण प्रतिकूळ होय नहि. देवदत्तना देवदत्तपणामां परद्रव्यो तेने अनुकूळ छे, केमके तेओ देवदत्तरूपे थतां नथी. जो देवदत्तरूपे तेओ थाय तो प्रतिकूळ थाय अने तेम थतां बन्नेनो (देवदत्त अने परनो) नाश थाय.

आ प्रमाणे बे सिद्धांतो नक्की थयाः १. दरेक द्रव्य-गुण-पर्यायनी स्वथी अस्ति छे ते उपादानकारण छे अने परद्रव्य-गुण-पर्यायनी तेमां नास्ति छे ते निमित्तकारण छे; निमित्तकारण ते मात्र आरोपितकारण छे, खरुं कारण नथी; तेम ज ते उपादानकारणने कांई ज करतुं नथी. जीवना उपादानमां जे जातनो भाव होय ते भावने अनुकूळपणानो निमित्तमां आरोप आवे छे. सामे सत् निमित्त होवा छतां कोई जीव जो ऊंधा भाव करे तो ते जीवना ऊंधा भावमां पण सामी चीजने अनुकूळ निमित्त बनाव्युं कहेवाय छे. जेम के- कोई जीव तीर्थंकर भगवानना समवसरणमां गयो अने दिव्यध्वनिमां वस्तुनुं जे यथार्थ स्वरूप कहेवायुं ते सांभळ्‌युं; परंतु ते जीवने वात बेठी नहि तेथी ते ऊंधो पडयो, तो ते जीवे पोताना ऊंधा भावने माटे भगवानना दिव्यध्वनिने अनुकूळ निमित्त बनाव्युं कहेवाय.

(९) उपर्युक्त सिद्धांतना आधारे जीव, पुद्गल
सिवायनां चार द्रव्योनी सिद्धि

देखवामां आवता पदार्थोमां चार बाबतो जोवामां आवे छे; १. ते पदार्थ उपर, नीचे अहीं, त्यां-एम जोवामां आवे छे. २. ते ज पदार्थ अत्यारे, पछी, ज्यारे, त्यारे, त्यारथी अत्यार सुधी-ए रीते जोवामां आवे छे. ३. ते ज पदार्थ स्थिर, स्तब्ध,


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३७० ] [ मोक्षशास्त्र निश्चळ एवा प्रकारे जोवामां आवे छे; अने ४. ते ज पदार्थ हालतो-चालतो, चंचळ, अस्थिर जोवामां आवे छे. आ चार बाबतो पदार्थोने देखतां समजवामां आवे छे तो पण ए बाबतो द्वारा पदार्थोनी कांईपण आकृति बदलती नथी. ते ते कार्योनुं उपादानकारण तो दरेक द्रव्य छे, पण ते चारे प्रकारनी क्रिया जुदा जुदा प्रकारनी होवाथी ते क्रियानां सूचक निमित्तकारण जुदां ज होय छे.

आ संबंधे ख्यालमां राखवुं के, कोई पदार्थमां पहेली, बीजी अने त्रीजी अथवा पहेली, बीजी अने चोथी बाबतो एकी साथे देखाय छे. ते सिवाय त्रीजी, चोथी अने पहेली अथवा त्रीजी, चोथी अने बीजी ए प्रमाणेनी बाबतो कदी होय नहि.

हवे आपणे एक एक बाबत क्रमसर जोईए.
. आकाशनी सिद्धि– ३.

जगतनी दरेक वस्तुने पोतानुं क्षेत्र होय छे अर्थात् तेने लंबाई-पहोळाई होय छे, एटले के तेने पोतानुं अवगाहन होय छे. ते अवगाहन पोतानुं उपादानकारण थयुं अने तेमां निमित्तकारणरूप बीजी वस्तु होय छे.

निमित्तकारणरूप बीजी वस्तु एवी होवी जोईए के तेनी साथे उपादान वस्तु अवगाहनमां एकरूप न थई जाय. उपादान पोते अवगाहनरूप होवा छतां अवगाहनमां जे परद्रव्य निमित्त छे तेनाथी ते भिन्नपणे टकी रहे, एटले के परमार्थे दरेक द्रव्य पोतपोताना अवगाहनमां ज छे.

वळी, ते वस्तु जगतना बधा पदार्थोने एकी साथे निमित्तकारण जोईए, केम के जगतना बधा पदार्थो अनादि छे अने सौने पोतपोतानुं क्षेत्र छे; ते तेमनुं अवगाहन छे. अवगाहनमां निमित्त थनारी वस्तु बधां अवगाहन लेनार द्रव्योथी मोटी जोईए. जगतमां आवी एक वस्तु अवगाहनमां निमित्तकारणरूप छे, तेने ‘आकाश’ कहेवामां आवे छे.

वळी, जगतमां सूक्ष्म, स्थूळ एम बे प्रकारना तथा रूपी अने अरूपी एम बे प्रकारना पदार्थो छे. ते उपादानरूप पदार्थोने निमित्तपणे अनुकूळ कोई परद्रव्य होवुं जोईए अने तेना उपादानमां अभाव जोईए; वळी अबाधित अवगाहन आपनार पदार्थ अरूपी ज होई शके. आ रीते आकाश एक, सर्वव्यापक, बधाथी मोटुं, अरूपी अने अनादि द्रव्यरूप सिद्ध थाय छे.


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अ. प उपसंहार ] [ ३७१

जो आकाश द्रव्यने मानवामां न आवे तो द्रव्यमां स्वक्षेत्रपणुं रहेशे नहि अने उपर-नीचे-अहीं-त्यां एम निमित्तनुं ज्ञान करावनारां स्थळ रहेशे नहि. अपूर्ण प्राणीने निमित्त द्वारा ज्ञान कराव्या विना उपादान अने निमित्त बन्नेनुं साचुं ज्ञान ते करी शकतो नथी एटलुं ज नहि पण उपादानने जे नहि माने ते निमित्तने पण मानी शकशे नहि अने निमित्तने नहि माने ते उपादानने मानी शकशे नहि. बन्नेने यथार्थपणे मान्या वगर ज्ञान साचुं थई शकशे नहि; ए रीते उपादान अने निमित्त बन्नेने शून्यरूपे एटले के नहि होवारूपे मानवुं पडशे अने ए रीते बधा पदार्थोने शून्यपणुं आवशे; परंतु तेम बनी शके ज नहि.

. काळनी सिद्धि–४.

द्रव्य कायम रहीने एक अवस्था छोडीने बीजी अवस्थारूपे थाय छे, तेने वर्तना-वर्तवुं कहेवामां आवे छे. हवे आ वर्तनामां ते वस्तुनी निजशक्ति उपादानकारण छे; केम के पोतामां ते शक्ति न होय तो पोते परिणमे नहि. हवे कोई पण कार्य माटे बे कारणो स्वतंत्रपणे स्वयं होय छे, एम आगळ सिद्ध कर्युं छे; तेथी निमित्तकारण संयोगरूपे होवुं जोईए. माटे ते वर्तनामां निमित्तकारण एक वस्तु छे. ते वस्तुने ‘काळ’ कहेवामां आवे छे. वळी निमित्तअनुकूळ होय छे. नानामां नानुं द्रव्य एक रजकण छे तेथी तेने अनुकूळ निमित्त पण एक रजकण जेवडुं जोईए. माटे कालाणुं एक प्रदेशी छे एम सिद्ध थयुं.

प्रश्नः– काळद्रव्यने अणुप्रमाण न मानीए अने मोटुं मानीए तो शुं दोष आवे?

उत्तरः– ते अणुने परिणमन थवामां नानामां नानो वखत (काळ) नहि लागतां वधारे वखत लागशे अने परिणमनशक्तिने वधारे वखत लागे तो निजशक्ति न कहेवाय. वळी नानामां नानो काळ समय जेवडो नहि थतां काळद्रव्य मोटुं होय तो तेनो पर्याय मोटो थाय. ए रीते बे समय, बे कलाक क्रमे क्रमे नहि थतां एकीसाथे थशे के जे बनी शके नहि. समय क्रमे क्रमे थतां काळ गमे तेटलो लांबो गणीए ते जुदी वात छे, पण एकीसाथे लांबो काळ होई शके नहि. जो एम होय तो कोई पण वखतनी गणतरी थई शके नहि.

प्रश्नः– काळद्रव्य एक प्रदेश करतां मोटुं नथी एम सिद्ध थयुं, पण कालाणुओ आखा लोकमां छे एम शा माटे मानवुं?

उत्तरः– जगतमां आकाशना एके एक प्रदेश उपर एक एक पुद्गल परमाणु अने तेटला ज क्षेत्रने रोकता सूक्ष्म पुद्गल स्कंधो छे, अने तेमना परिणमनमां


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३७२ ] [ मोक्षशास्त्र निमित्तकारण तरीके दरेक लोकाकाशप्रदेशे एक एक कालाणु होवानुं सिद्ध थाय छे.

प्रश्नः– एक लोकाकाशप्रदेशे वधारे कालाणुं स्कंधरूप मानवामां शुं विरोध आवे छे? उत्तरः– जेमां स्पर्श गुण होय तेमां ज स्कंधरूप बंध थाय अने ते तो पुद्गल द्रव्य छे. कालाणुं पुद्गल द्रव्य नथी, अरूपी छे; माटे तेनो स्कंध थाय ज नहि.

. अधर्मास्तिकाय अने धर्मास्तिकायनी सिद्धि प–६.

जीव अने पुद्गल ए बे द्रव्योमां क्रियावती शक्ति होवाथी तेओने हलनचलन होय छे. पण ते हलनचलनरूप क्रिया कायम होती नथी. कोई वखते तेओ स्थिर होय अने कोई वखते गतिरूपे होय; केम के स्थिरता के हलनचलनरूप क्रिया ते गुण नथी परंतु क्रियावतीशक्तिनो पर्याय छे. ते क्रियावतीशक्तिना स्थिरतारूप परिणमननुं मूळकारण द्रव्य पोते छे, तेनुं निमित्तकारण तेनाथी पर जोईए. जगतमां निमित्तकारण होय ज छे एम आगळ बताववामां आव्युं छे. तेथी स्थिरतारूप परिणमननुं जे निमित्तकारण छे ते द्रव्यने अधर्मद्रव्य कहे छे. क्रियावतीशक्तिना हलनचलनरूप परिणमननुं मूळकारण द्रव्य पोते छे, अने हलनचलनमां जे निमित्त छे तेने धर्मद्रव्य कहे छे. हलनचलननुं निमित्तकारण अधर्मद्रव्यथी विरूद्ध जोईए, अने ते धर्मद्रव्य छे.

(१०) आ छ द्रव्यो एक ज जग्याए होवानी सिद्धि

आपणे. आगळ जीव-पुद्गलनी सिद्धि करवामां मनुष्यनुं द्रष्टांत लीधुं हतुं, ते उपरथी आ सिद्धि सरळ थशे.

१. ज्ञानगुणधारक पदार्थ जीव छे. र. संयोगी, जड, रूपी पदार्थ शरीर छे; ते पण ते ज जग्याए छे; तेनुं मूळ अनादि-अनंत पुद्गलद्रव्य छे, एम ते शरीर सिद्ध करे छे.

३. ते मनुष्य आकाशना कोई भागमां हंमेशां होय छे, तेथी ते जग्याए आकाश पण छे.

४. ते मनुष्यनी एक अवस्था टळीने बीजी अवस्था थाय छे, ते हकीकतथी ते ज स्थळे काळद्रव्यना होवापणानी सिद्धि थाय छे.

प. ते मनुष्यना जीवना असंख्यात प्रदेशे एक क्षेत्रावगाहरूपे समये समये नवां नवां कर्मो बंधाईने त्यां स्थिर रहे छे, ते हकीक्तथी ते स्थळे अधर्मद्रव्यनी सिद्धि थाय छे.

६. ते मनुष्यना जीवना असंख्यात प्रदेशे ते ज वखते जूना कर्म समये समये

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अ. प उपसंहार ] [ ३७३ उदय पामीने निर्जरी जाय छे; ते हकीक्तथी ते ज स्थळे धर्मद्रव्यनी सिद्धि थाय छे.

आ प्रमाणे छए द्रव्योनुं एक क्षेत्रे होवापणुं सिद्ध थयुं.
(११) छ द्रव्योना होवापणानी अन्य प्रकारे सिद्धि
१–र. जीवद्रव्य अने पुद्गलद्रव्य

जे स्थूळ पदार्थो नजरे देखाय छे एवा शरीर, पुस्तक, पत्थर, लाकडां वगेरेमां ज्ञान नथी एटले के ते अजीव छे; ते पदार्थोने तो अज्ञानी पण जुए छे. ते पदार्थोमां वध-घट थया करे छे अर्थात् ते भेगा थाय छे अने छूटा पडे छे. आवा नजरे देखाता पदार्थोने पुद्गल कहेवाय छे. रंग, गंध, रस अने स्पर्श ए गुणो पुद्गल द्रव्यना छे; तेथी पुद्गल द्रव्य काळुं-धोळुं, सुगंधी-दुर्गंधी, खाटुं-मीठुं, हलकुं- भारे वगेरे प्रकारे जणाय छे; ए बधी पुद्गलनी ज शक्ति छे. जीव तो काळो- धोळो, सुगंधी-दुर्गंधी वगेरे रूपे नथी, जीव तो ज्ञानवाळो छे. शब्द अथडाय छे के बोलाय छे ते पण पुद्गलनी ज हालत छे. ते पुद्गलोथी जीव जुदो छे. लोकोमां बेभान माणसने कहेवाय छे के तारुं चेतन क्यां ऊडी गयुं? एटले के आ शरीर तो अजीव छे, ते तो जाणतुं नथी, पण जाणनारुं ज्ञान क्यां गयुं? अर्थात् जीव क्यां गयो? आमां जीव अने पुद्गल ए बे द्रव्योनी साबिती थई.

३. आकाश द्रव्य

‘आकाश’ नामनुं द्रव्य छे तेने लोको अव्यक्ततपणे तो स्वीकारे छे. “अमुक मकान वगेरे जग्यानो आकाशथी पाताळ सुधी अमारो हक छे” एम दस्तावेजोमां लखावे छे एटले के आकाशथी पाताळरूप कांईक एक वस्तु छे एम नक्की थयुं. जो आकाशथी पाताळ सुधी कांई ज वस्तु न होय तो ‘आकाशथी पाताळ सुधीनो हक’ एम केम लखावे? वस्तु छे माटे तेनो हक माने छे. आकाशथी पाताळ सुधी एटले के सर्वव्यापी रहेली ते वस्तुने ‘आकाशद्रव्य’ कहेवाय छे. आ द्रव्य ज्ञानरहित छे अने अरूपी छे, तेनामां रंग, रस वगेरे नथी.

४. काळद्रव्य

जीव, पुद्गल अने आकाश द्रव्यने सिद्ध कर्या; हवे ‘काळ’ नामनी एक वस्तु छे तेने सिद्ध करवामां आवे छे. लोको दस्तावेज करावे तेमां एम लखावे छे के “यावत् चंद्रदिवाकरौ–ज्यां सुधी सूर्य अने चंद्र रहे त्यांसुधी अमारो हक छे.” आमां काळद्रव्यनो स्वीकार कर्यो. अत्यारे ज हक छे एम नहि पण हजी काळ लंबातो जाय छे


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३७४ ] [ मोक्षशास्त्र ते बधा काळमां अमारो हक छे, एम काळनो स्वीकार करे छे. तेम ज ‘अमारी लीली वाडी सदाय रहे’ एमां पण भविष्यकाळनो स्वीकार कर्यो. वळी ‘अमे तो सात पेढीथी सुखी छीए’ एम कहे छे त्यां पण भूतकाळ स्वीकारे छे. भूतकाळ, वर्तमानकाळ ए बधा प्रकार काळद्रव्यना व्यवहारपर्यायना छे. आ काळद्रव्य पण अरूपी छे अने तेनामां ज्ञान नथी.

आ रीते जीव, पुद्गल, आकाश अने काळद्रव्यनी सिद्धि थई. हवे बाकी धर्म अने अधर्म ए बे द्रव्यो रह्यां.

प. धर्मद्रव्य

आ धर्मद्रव्यने पण जीव अव्यक्तपणे कबूले तो छे. छ ए द्रव्योनी अस्ति कबूल्या वगर कोई पण व्यवहार चाली शके नहीं. आववुं, जवुं, रहेवुं, वगेरे बधामां छए द्रव्योनी अस्ति सिद्ध थई जाय छे. चार द्रव्यो तो सिद्ध थयां छे; हवे बाकीनां बे द्रव्यो सिद्ध करवां छे. ‘एक गामथी बीजे गाम आव्या’ आम कह्युं तेमां धर्मद्रव्य सिद्ध थई जाय छे. एक गामथी बीजे गाम आव्या एटले शुं? के जीव अने शरीरना परमाणुओनी गति थई, एक क्षेत्रथी बीजुं क्षेत्र बदल्युं. हवे आ क्षेत्र बदलवाना कार्यमां निमित्त द्रव्य कोने कहेशो? केम के एवो नियम छे के दरेक कार्यमां उपादान अने निमित्तकारण होय ज छे. जीव अने पुद्गलोने एक गामथी बीजे गाम आववामां कयुं द्रव्य निमित्त छे ते विचारीए. प्रथम तो, जीव अने पुद्गल ए उपादान छे, उपादान पोते निमित्त न कहेवाय. निमित्त तो उपादानथी जुदुं ज होय, माटे जीव के पुद्गल ते क्षेत्रांतरनुं निमित्त नथी. काळद्रव्य ते तो परिणमनमां निमित्त छे एटले के पर्याय बदलवामां ते निमित्त छे, पण क्षेत्रांतरनुं निमित्त काळद्रव्य नथी; आकाशद्रव्य बधां द्रव्योने रहेवा माटे जग्या आपे छे. पहेला क्षेत्रे हतां त्यारे पण जीव अने पुद्गलने आकाश निमित्त हतुं अने बीजा क्षेत्रे पण ते ज निमित्त छे, माटे क्षेत्रांतरनुं निमित्त आकाशने पण कही शकातुं नथी. तो पछी क्षेत्रांतररूप जे कार्य थयुं तेनुं निमित्त आ चार द्रव्यो सिवाय कोई अन्य द्रव्य छे एम नक्की थाय छे. गति करवामां कोई एक द्रव्य निमित्त तरीके छे पण ते द्रव्य कयुं छे तेनो जीवे कदी विचार कर्यो नथी, तेथी तेनी खबर नथी. क्षेत्रांतर थवामां निमित्तरूप जे द्रव्य छे ते द्रव्य ने ‘धर्मद्रव्य’ कहेवाय छे. आ द्रव्य पण अरूपी छे, अने ज्ञानरहित छे.

६. अधर्मद्रव्य

जेम गति करवामां धर्मद्रव्य निमित्त छे तेम स्थित थवामां तेनाथी विरुद्ध अधर्म-


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अ. प उपसंहार ] [ ३७प द्रव्य निमित्तरूप छे. “एक क्षेत्रथी बीजा क्षेत्रे आवीने स्थिर रह्या,” स्थिर रहेवामां निमित्त कोण? स्थिर रहेवामां आकाशनुं निमित्त नथी, केम के आकाशनुं निमित्त तो रहेवा माटे छे, गति वखते पण रहेवामां आकाश निमित्त हतुं, तेथी स्थितिनुं निमित्त कोई अन्य द्रव्य जोईए. ते द्रव्य अधर्मद्रव्य छे. आ पण अरूपी छे अने ज्ञानरहित छे.

आ रीते जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश अने काळ ए छ द्रव्यनी सिद्ध करी. आ छ सिवाय सातमुं कोई द्रव्य छे ज नहि, अने आ छमांथी एक पण द्रव्य ओछुं नथी. बराबर छ ए छ द्रव्यो छे अने तेम मानवाथी ज यथार्थ वस्तुनी सिद्धि थाय छे. जो आ छ सिवाय सातमुं कोई द्रव्य होय तो तेनुं कार्य बतावी आपो! एवुं कोई कार्य नथी के जे आ छ द्रव्योथी बहार होय; माटे सातमुं द्रव्य छे ज नहि. वळी, जो आ छ द्रव्योमांथी एक पण ओछुं होय तो ते द्रव्यनुं कार्य कोण करे ते बतावी आपो! छमांथी एक पण द्रव्य एवुं नथी के जेना वगर विश्व नियम चाली शके.

छ द्रव्यो विषे केटलीक माहिती

१. जीव– आ जगतमां अनंत जीवो छे जाणपणाना चिह्न (विशेष गुण) वडे जीव ओळखाय छे. केमके जीव सिवायना कोई पदार्थोमां जाणपणुं नथी. अनंत जीवो छे ते बधाय एक बीजाथी तद्न जुदा छे.

२. पुद्गल–आ जगतमां अनंतानंत पुद्गलो छे; स्पर्श, गंध, रंग ए चिह्न वडे पुद्गलो ओळखाय छे, केम के पुद्गलो सिवाय अन्य कोई पदार्थोमां स्पर्श, रस, गंध के रंग नथी. ईन्द्रियो द्वारा जे जे जणाय छे ते बधाय पुद्गल द्रव्यना बनेला स्कंधो छे.

३. धर्म–अहीं ‘धर्म’ कहेतां आत्मानो धर्म न समजवो पण ‘धर्म’ नामनुं द्रव्य छे ते समजवुं. आ द्रव्य एक अखंड छे, ते आखा लोकमां रहेलुं छे. जीव अने पुद्गलोने गति करती वखते आ द्रव्य निमित्तरूप ओळखाय छे.

४. अधर्म–अहीं ‘अधर्म’ कहेतां आत्माना दोष न समजवा परंतु ‘अधर्म’ नामनुं द्रव्य समजवुं. आ एक अखंड द्रव्य छे. ते आखा लोकमां रहेलुं छे. जीव अने पुद्गलोने गति करीने ज्यारे स्थिर थाय छे त्यारे आ द्रव्य निमित्तरूप ओळखाय छे.

प. आकाश–आ एक अखंड सर्व व्यापक द्रव्य छे. बधा पदार्थोने जग्या आपवाना निमित्तरूप आ द्रव्य ओळखाय छे. आ द्रव्यना जेटला भागमां अन्य पांचे द्रव्यो रहेलां छे तेटला भागने ‘लोकाकाश’ कहेवाय छे, अने जेटलो भाग अन्य


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३७६ ] [ मोक्षशास्त्र पांच द्रव्ययोथी खाली छे तेने ‘अलोकाकाश’ कहेवाय छे. ‘खाली जग्या’ कहेवाय छे तेनो अर्थ ‘एकलुं आकाश’- एवो थाय छे.

६. काळ–असंख्य काळ द्रव्यो छे. आ लोकना असंख्य प्रदेशो छे; ते दरेक प्रदेश उपर एक एक काळ द्रव्य रहेलुं छे. असंख्य काळाणुओ छे ते बधाय एक बीजाथी छूटा छे. वस्तुमां रूपांतर (फेरफार) थवामां निमित्तरूप आ द्रव्य ओळखाय छे.

आ छ द्रव्योने सर्वज्ञ सिवाय कोई पण प्रत्यक्ष जाणी शके नहि. सर्वज्ञदेवे ज आ छ द्रव्यो जाण्यां छे अने तेमणे ज तेनुं साचुं स्वरूप कह्युं छे; तेथी सर्वज्ञना सत्य मार्ग सिवाय अन्य कोई जग्याए छ द्रव्योनुं स्वरूप होई शके ज नहि; केम के बीजा अपूर्ण जीवो ते द्रव्योने जाणी शके नहि; माटे छ द्रव्यना स्वरूपनी साची समजण करवी जोईए.

टोपी उपरथी छ द्रव्योनी सिद्धि

जुओ, आ लुगडानी टोपी छे; ते अनंत परमाणुओ भेगा थईने बनेली छे अने ते फाटी जतां परमाणुओ छूटा थाय छे. आ रीते भेगा थवुं अने छूटा थवुं एवो पुद्गलनो स्वभाव छे; वळी आ टोपी सफेद छे, बीजी कोई काळी, राती वगेरे रंगनी टोपी पण होय छे; रंग ए पुद्गल द्रव्यनुं चिह्न छे, तेथी जे नजरे देखाय छे ते पुद्गल द्रव्य छे १. ‘आ टोपी छे पण चोपडी नथी’ एम जाणनार ज्ञान छे अने ज्ञान ते जीवनुं चिह्न छे तेथी जीव पण सिद्ध थयो. र. हवे विचारीए के टोपी क्यां रहेली छे? जो के निश्चयथी तो टोपी टोपीमां ज छे, परंतु टोपी टोपीमां ज छे एम कहेवाथी टोपीनो बराबर ख्याल न आवी शके, तेथी निमित्त तरीके “अमुक जग्यामां टोपी रहेली छे” एम ओळखावाय छे. ‘जग्या’ कहेवाय छे ते आकाशद्रव्यनो अमुक भाग छे. आ रीते आकाशद्रव्य सिद्ध थयुं ३. हवे आ टोपी बेवडी वळे छे. टोपी ज्यारे सीधी हती त्यारे आकाशमां हती अने बेवडी छे त्यारे पण आकाशमां ज छे, तेथी आकाशना निमित्त वडे टोपीनुं बेवडापणुं ओळखी शकातुं नथी. तो पछी टोपीनी बेवडी थवानी क्रिया थई एटले के पहेलां तेनुं क्षेत्र लांबु हतुं, हवे ते टूंका क्षेत्रमां रहेली छे-आ रीते टोपी क्षेत्रांतर थई छे अने ते क्षेत्रांतर थवामां जे वस्तु निमित्त छे ते धर्मद्रव्य छे. ४. हवे टोपी वळांकरूपे स्थिर पडी छे, तो स्थिर पडी छे एमां तेने कोण निमित्त छे? आकाश द्रव्य तो मात्र जग्या आपवामां निमित्त छे टोपी चाले के स्थिर रहे तेमां आकाशनुं निमित्त नथी; ज्यारे टोपीए सीधी दशामांथी वांकी दशारूपे थवा माटे गमन कर्युं त्यारे धर्मद्रव्यनुं निमित्त हतुं; तो हवे स्थिर रहेवानी क्रियामां तेना करतां विरुद्ध निमित्त जोईए. गतिमां धर्मद्रव्य निमित्त हतुं; हवे स्थिर


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अ. प उपसंहार ] [ ३७७ रहेवामां अधर्मद्रव्य निमित्तरूप छे. प. टोपी पहेलां सीधी हती, अत्यारे वांकी छे अने हवे पछी अमुक वखत सुधी ते रहेशे-आम जाण्युं त्यां ‘काळ’ सिद्ध थई गयो. भूत, वर्तमान, भविष्य अथवा तो जूनुं-नवुं, दिवस, कलाक वगेरे जे भेदो प्रवर्ते छे ते भेदो कोई एक मूळ वस्तु वगर होई शके नहि. उपर्युक्त बधा भेदो काळ द्रव्यना छे, जो काळद्रव्य न होय तो ‘नवुं-जूनुं,’ ‘पहेलां-पछी’ एवी कोई प्रवृत्ति होई शके नहि, माटे काळद्रव्य सिद्ध थयुं. ६. आ रीते टोपी उपरथी छ द्रव्यो सिद्ध थयां.

आ छ द्रव्योमांथी एक पण द्रव्य न होय तो जगतव्यवहार चाली शके नहि. जो पुद्गल न होय तो टोपी ज न होय, जो जीव न होय तो टोपीनुं होवापणुं कोण नक्की करे? जो आकाश न होय तो टोपी क्यां छे ते ओळखावी शकाय नहि, जो धर्मद्रव्य अने अधर्मद्रव्य न होय तो टोपीमां थतो फेरफार (क्षेत्रांतर अने स्थिरता) ओळखावी शकाय नहि, अने जो काळद्रव्य न होय तो ‘पहेलां’ जे टोपी सीधी हती ते ज ‘अत्यारे’ वांकी छे-एम पूर्वे अने पछी टोपीनुं होवापणुं नक्की न थई शके, माटे टोपीने सिद्ध करवा माटे छए द्रव्यनो स्वीकार करवो पडे छे. जगतनी कोई पण एक वस्तुने कबूलतां व्यक्तपणे के अव्यक्तपणे छ ए द्रव्यनो स्वीकार थई जाय छे.

मनुष्य शरीर उपरथी छ द्रव्योनी सिद्धि

आ शरीर तो नजरे देखाय छे; ते पुद्गलनुं बनेलुं छे अने शरीरमां जीव रहेलो छे. जीव अने पुद्गल एक आकाशनी जग्यामां रह्या होवा छतां बन्ने जुदां छे. जीवनो स्वभाव जाणवानो छे अने पुद्गलनुं आ शरीर कांई जाणतुं नथी. शरीरनो कोई भाग कपाई जवा छतां जीवनुं ज्ञान कपाई जतुं नथी, जीव तो आखो ज रहे छे केम के शरीर अने जीव सदाय जुदां ज छे. बन्नेनुं स्वरूप जुदुं छे. अने बन्नेनां काम पण जुदां ज छे. आ जीव अने पुद्गल तो स्पष्ट छे. १-र. जीव अने शरीर क्यां रहेलां छे? अमुक ठेकाणे पांच फूट जग्यामां, बे फूट जग्यामां वगेरेमां रहेलां छे, आ रीते ‘जग्या’ कहेतां आकाशद्रव्य सिद्ध थयुं. ३.

ए ध्यान राखवुं के जीव अने शरीर आकाशमां रह्यां छे एम कहेवाय छे त्यां खरेखर जीव, शरीर अने आकाश त्रणे स्वतंत्र जुदां जुदां ज छे, कोई एक बीजाना स्वरूपमां घूसी गयां नथी. जीव तो जाणनार स्वरूपे ज रह्यो छे; रंग, गंध वगेरे शरीरमां ज छे पण आकाश के जीव वगेरे कोईमां ते नथी; आकाशमां रंग, गंध वगेरे नथी तेम ज ज्ञान पण नथी, ते अरूपी-अचेतन छे; जीवमां ज्ञान छे पण रंग,


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३७८ ] [ मोक्षशास्त्र गंध वगेरे नथी एटले ते अरूपी-चेतन छे; पुद्गलमां रंग, गंध वगेरे छे पण ज्ञान नथी एटले ते रूपी-अचेतन छे, आ रीते त्रणे द्रव्यो एक बीजाथी जुदां-स्वतंत्र छे. स्वतंत्र वस्तुओने कोई बीजी वस्तु कांई करी शके नहि जो एक वस्तुमां बीजी वस्तु कांई करती होय तो वस्तुने स्वतंत्र केम कहेवाय?

जीव, पुद्गल अने आकाश नक्की कर्या; हवे काळ नक्की करीए. “तमारी उंमर केटली?” एम पुछवामां आवे छे, (त्यां तमारी’ एटले शरीरना संयोगरूप उंमरनी वात समजवी.) शरीरनी उंमर ४०-प० वर्षो वगेरेनी कहेवाय छे. अने जीव अनादि अनंत होवापणे छे. आ मारा करतां पांच वर्ष नाना, आ पांच वर्ष मोटा’ एम कहेवाय छे, त्यां शरीरना कदथी नाना-मोटापणानी वात नथी पण काळ अपेक्षाए नाना-मोटापणानी वात छे. जो काळद्रव्यनी अपेक्षा न ल्यो तो ‘आ नानो, आ मोटो, आ बाळक, आ युवान, आ वृद्ध’ एम कही शकाय नहि. जूनी- नवी दशा बदलाया करे छे ते उपरथी काळ द्रव्यनुं होवापणुं नक्की थाय छे. ४.

क्यारेक जीव अने शरीर स्थिर होय छे अने क्यारेक गमन करतां होय छे. स्थिर होवा वखते तेम ज गमन करती वखते-बन्ने वखते ते आकाशमां ज छे, एटले आकाश उपरथी तेमनुं गमन के स्थिर रहेवापणुं नक्की थई शक्तुं नथी. गमनरूपदशा अने स्थिर रहेवारूप दशा, ए बन्नेने जुदी जुदी ओळखवा माटे ते बन्ने दशामां जुदां जुदां निमित्तरूप एवां बे द्रव्योने ओळखवां पडशे. धर्मद्रव्यना निमित्त वडे जीव-पुद्गलनुं गमन ओळखी शकाय छे. अने अधर्मद्रव्यना निमित्त वडे जीव-पुद्गलनी स्थिरता ओळखी शकाय छे. जो आ धर्म अने अधर्मद्रव्यो न होय तो, गमन अने स्थिरताना भेदने ओळखी शकाय नहीं (प-६).

जो के धर्म-अधर्म द्रव्यो जीव-पुद्गलने कांई गति के स्थिति करवामां मददरूप नथी, परंतु एक एक द्रव्यना भावने अन्यद्रव्यनी अपेक्षा वगर ओळखावी शकाता नथी. जीवना भावने ओळखवा माटे अजीवनी अपेक्षा आवे छे, जाणे ते जीव-एम कहेतां ज “जाणपणा वगरनां अन्य द्रव्यो छे ते जीव नथी” एम अजीवनी अपेक्षा आवी जाय छे. जीव अमुक जग्याए छे एम बतावतां आकाशनी अपेक्षा आवे छे. आ प्रमाणे छए द्रव्योमां अरसपरस समजी लेवुं. एक आत्मद्रव्यनो निर्णय करतां छए द्रव्यो जणाय छे; ए ज्ञाननी विशाळता छे अने ज्ञाननो स्वभाव सर्व द्रव्योने जाणी लेवानो छे एम सिद्ध थाय छे. एक द्रव्यने सिद्ध करतां छए द्रव्यो सिद्ध थई जाय छे; तेमां द्रव्यनी पराधीनता नथी; परंतु ज्ञाननो महिमा छे. ते जे पदार्थ होय ते ज्ञानमां जरूर जणाय. पूर्ण ज्ञानमां जेटलुं जणाय ते सिवाय अन्य कांई


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अ. प उपसंहार ] [ ३७९ आ जगतमां नथी. पूर्ण ज्ञानमां छ द्रव्यो जणायां छे, छ द्रव्यथी अधिक बीजुं कांई नथी.

कर्मो उपरथी छ द्रव्योनी सिद्धि

कर्मो ते पुद्गलनी अवस्था छे; जीवना विकारी भावना निमित्तथी ते जीव साथे रहेलां छे; केटलांक कर्मो बंधरूपे स्थिर थयां छे तेने अधर्मास्तिकायनुं निमित्त छे; क्षणे क्षणे कर्मो उदयमां आवीने खरी जाय छे; खरी जवामां क्षेत्रांतर थाय छे तेमां तेने धर्मास्तिकायनुं निमित्त छे; कर्मनी स्थिति कहेवाय छे के ७० क्रोडाक्रोडीनुं कर्म अथवा अंतर्मुहूर्तनुं कर्म, एमां ‘काळ’ द्रव्यनी अपेक्षा आवे छे; घणा कर्मपरमाणुओ एक क्षेत्रे रहेवामां आकाशद्रव्यनी अपेक्षा छे. आ रीते छ द्रव्यो सिद्ध थयां.

द्रव्योनी स्वतंत्रता

आ उपरथी ए पण सिद्ध थाय छे के जीवद्रव्य अने पद्गलद्रव्य (-कर्म) बन्ने तद्न जुदी जुदी वस्तुओ छे, अने बन्ने पोतपोतामां स्वतंत्र छे, कोई एक बीजामां कांई ज करता नथी. जो जीव अने कर्मो भेगां थई जाय तो आ जगतमां छ द्रव्यो ज रही शके नहि; जीव अने कर्म सदाय जुदां ज छे. द्रव्योनो स्वभाव अनादि अनंत टकीने समये समये बदलवानो छे. बधांय द्रव्यो पोतानी ताकातथी स्वतंत्रपणे अनादि अनंत टकीने पोते ज पोतानी हालत बदलावे छे. जीवनी हालत जीव बदलावे छे, पुद्गलनी हालत पुद्गल बदलावे छे. पुद्गलनुं कांई जीव करे नहि अने जीवनुं कांई पुद्गल करे नहि.

उत्पाद–व्यय–ध्रुव

द्रव्यनो कोई कर्ता नथी. जो कोई कर्ता होय तो तेणे द्रव्योने कई रीते बनाव्यां? शेमांथी बनाव्यां? ते कर्ता पोते शेनो बन्यो? जगतमां छ द्रव्यो पोताना स्वभावथी ज छे तेनो कोई कर्ता नथी. कोई पण नवा पदार्थनी उत्पत्ति थती ज नथी. कोई पण प्रयोगे करीने नवा जीवनी के नवा परमाणुनी उत्पत्ति थई शके नहि, पण जे पदार्थ होय ते ज रूपांतर थाय; अर्थात् जे द्रव्य होय ते नाश पामे नहि, जे द्रव्य न होय ते उत्पन्न थाय नहि अने जे द्रव्य होय ते पोतानी हालत क्षणे क्षणे बदल्या ज करे, आवो नियम छे. आ सिद्धांतने उत्पाद-व्यय-ध्रुव अर्थात् नित्य टकीने बदलवुं (permanency with a change) कहेवाय छे.


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३८० ] [ मोक्षशास्त्र

द्रव्यनो कोई बनावनार नथी माटे नवुं सातमुं कोई द्रव्य थई शक्तुं नथी, अने कोई द्रव्यनो कोई नाश करनार नथी माटे छ द्रव्योमांथी कदी ओछां थतां नथी. शाश्वतपणे छ द्रव्यो छे. संपूर्ण ज्ञान वडे सर्वज्ञ भगवाने छ द्रव्यो जाण्यां अने ते ज उपदेशमां दिव्यवाणी द्वारा कह्यां. सर्वज्ञ वीतरागदेवप्रणीत परम सत्यमार्ग सिवाय आ छ द्रव्यनुं साचुं स्वरूप बीजे क्यांय छे ज नहि.

द्रव्यनी शक्ति (गुण)

द्रव्यनी खास शक्ति (चिह्न, विशेष गुण) संबंधी पूर्वे संक्षिप्तमां कहेवाई गयुं छे; एक द्रव्यनी खास शक्ति होय ते अन्य द्रव्योमां होती नथी; तेथी खास शक्ति वडे द्रव्यना स्वरूपने ओळखी शकाय छे. जेम के-ज्ञान ते जीव द्रव्यनी खास शक्ति छे, जीव सिवायनां अन्य कोई द्रव्यमां ज्ञान नथी, तेथी ज्ञानशक्ति वडे जीव ओळखी शकाय छे.

अहीं हवे द्रव्योनी सामान्यशक्ति संबंधी थोडुं कहेवामां आवे छे. जे शक्ति बधां द्रव्योमां होय तेने सामान्यशक्ति (सामान्यगुण) कहेवाय छे. अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलघुत्व अने प्रदेशत्व. आ छ सामान्य गुणो मुख्य छे, ते बधाय द्रव्योमां छे.

१–अस्तित्वगुणने लीधे द्रव्यना होवापणानो कदी नाश थतो नथी. द्रव्यो अमुक काळ माटे छे अने पछी नाश पामे छे-एम नथी; द्रव्यो नित्य टकी रहेनारां छे. जो अस्तित्वगुण न होय तो वस्तु ज होई शके नहि, अने जो वस्तु ज न होय तो समजाववानुं कोने?

२–वस्तुत्वगुणने लीधे द्रव्य पोतानुं प्रयोजनभूत कार्य करे छे; जेम घडो पाणीने धारण करे छे तेम द्रव्य पोते ज पोताना गुण-पर्यायोनुं प्रयोजनभूत कार्य करे छे. एक द्रव्य बीजा कोईनुं कार्य करतुं नथी.

३– द्रव्यगुणने लीधे द्रव्य निरंतर एक अवस्थामांथी बीजी अवस्थामां द्रव्या करे छे-परिणम्या करे छे. द्रव्य त्रिकाळ अस्तिरूप होवा छतां ते सदा एक सरखुं (कूटस्थ) नथी; परंतु निरंतर नित्य बदलतुं-परिणामी छे. जो द्रव्यमां परिणमन न होय तो जीवने संसारदशानो नाश थईने मोक्षदशानी उत्पत्ति केम थाय? शरीरनी बाल्यदशामांथी युवक दशा केम थाय? छ ए द्रव्योमां द्रव्यशक्ति होवाथी बधाय स्वतंत्रपणे पोतपोताना पर्यायमां परिणमी रह्यां छे; कोई द्रव्य पोतानो पर्याय परिणमाववा माटे बीजा द्रव्यनी मदद के असर राखतुं नथी.


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अ. प उपसंहार ] [ ३८१

४–प्रमेयत्वगुणने लीधे द्रव्यो ज्ञानमां जणाय छे. छ ए द्रव्योमां आ प्रमेयशक्ति होवाथी ज्ञान छए द्रव्यना स्वरूपनो निर्णय करी शके छे. जो वस्तुमां प्रमेयत्व गुण न होय तो “आ वस्तु छे” एम ते पोताने केवी रीते जणावी शके? जगतनो कोई पदार्थ ज्ञानद्वारा अगम्य नथी; आत्मामां प्रमेयत्वगुण होवाथी आत्मा पोते पोताने जाणी शके छे.

प–अगुरुलघुत्वगुणने लीधे दरेक वस्तु निज निज स्वरूपे टकी रहे छे. जीव बदलीने कदी परमाणुरूपे थई जतो नथी, परमाणु बदलीने कदी जीवरूपे थई जतां नथी. जड सदाय जडरूपे अने चेतन सदाय चेतनरूपे ज रहे छे. ज्ञाननो उघाड विकारदशामां गमे तेटलो ओछो थाय तोपण जीवद्रव्य तद्न ज्ञान वगरनुं थई जाय- एम कदी न बने. आ शक्तिने लीधे द्रव्यना गुणो छूटा पडी जता नथी, तेम ज कोई बे वस्तु एकरूप थईने त्रीजी नवी जातनी वस्तु उत्पन्न थती नथी; केम के वस्तुनुं स्वरूप कदापि अन्यथा थतुं नथी.

६–प्रदेशत्वगुणने लीधे दरेक द्रव्यने पोतपोतानो आकार होय छे. दरेक द्रव्य पोतपोताना स्व आकारमां ज रहे छे. सिद्धदशा थतां एक जीव बीजा जीवमां भळी जतो नथी पण दरेक जीव पोताना प्रदेशाकारमां स्वतंत्रपणे टकी रहे छे.

आ छ सामान्यगुणो मुख्य छे, आ सिवाय बीजा सामान्यगुणो पण छे. आ रीते गुणोद्वारा द्रव्यनुं स्वरूप वधारे स्पष्टताथी जाणी शकाय छे.

छ कारक

१र६ (१) कर्ता कोने कहे छे?

जे स्वतंत्रताथी (-स्वाधीनताथी) पोताना परिणाम करे ते कर्ता छे.
(प्रत्येक द्रव्य पोतामां स्वतंत्र व्यापक होवाथी पोताना ज परिणामोनो कर्ता छे)
(र) कर्म (-कार्य) कोने कहे छे?
कर्ता जे परिणामने प्राप्त करे छे ते परिणाम तेनुं कर्म छे.
(३) करण कोने कहे छे?
ते परिणामना साधकतम अर्थात् उत्कृष्ट साधनने करण कहे छे.
(४) संप्रदान कोने कहे छे?
कर्म (-परिणाम-कार्य) जेने देवामां आवे अथवा जेने माटे करवामां आवे
छे तेने संप्रदान कहे छे

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३८२ ] [ मोक्षशास्त्र

(प) अपादान कोने कहे छे?
जेमांथी कर्म करवामां आवे छे ते ध्रुव वस्तुने अपादान कहेवामां आवे छे.
(६) अधिकरण कोने कहे छे?
जेमां अथवा जेना आधारे कर्म करवामां आवे छे तेने अधिकरण कहे छे.
सर्व द्रव्योनी प्रत्येक पर्यायमां आ छ ए कारक एक साथे वर्ते छे तेथी आत्मा
अने पुद्गल शुद्धदशामां के अशुद्धदशामां स्वयं ज छए कारकरूप परिणमन करे
छे अने अन्य कोई कारको (-कारणो) नी अपेक्षा राखता नथी.
(पंचास्तिकाय गाथा ६र सं. टीका)

१२७ कार्य केवी रीते थाय छे? १२७

‘कारणानु विधायित्वादेव कार्याणां’
‘कारणानु विधायोनि कार्याणि’ –

कारण जेवा ज कार्य होवाथी कारण जेवुं ज कार्य थाय छे. कार्यने-क्रिया, कर्म, अवस्था, पर्याय, हालत, दशा, परिणाम, परिणमन अने परिणति पण कहे छे.

[अहीं कारणने उपादानकारण समजवुं कारणके उपादानकारण ते ज साचुं
कारण छे.]

१२८ कारण कोने कहे छे? १२८ कार्यनी उत्पादक सामग्रीने कारण कहे छे. १२९ उत्पादक सामग्रीना केटला भेद छे? १२९ बे छे. उपादान अने निमित्त. उपादानने निज शक्ति अथवा निश्चय अने

निमित्तने परयोग अथवा व्यवहार कहे छे. १३० उपादानकारण कोने कहे छे? १३० (१) जे पदार्थ स्वयं कार्यरूप परिणमे तेने उपादानकारण कहे छे जेमके घडानी

उत्पत्तिमां माटी. (२) अनादिकाळथी द्रव्यमां जे पर्यायोनो प्रवाह चाल्यो आवे
छे तेमां अनंतरपूर्वक्षणवर्तीपर्याय उपादानकारण छे अने अनंतर उत्तरक्षणवर्ती
पर्याय कार्य छे.

(३) ते समयनी पर्यायनी योग्यता ते उपादानकारण छे अने ते ज पर्याय कार्य छे. उपादान ते ज साचुं (-वास्तविक) कारण छे.


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अ. प उपसंहार ] [ ३८३

[नं. १ ध्रुव उपादान द्रव्यार्थिकनयथी छे. नं. २-३ क्षणिक उपादान पर्यायार्थिक

नयथी छे.] १३१ योग्यता कोने कहे छे? १३१ “योग्यतैव विषयप्रतिनियमकारण मिति” (न्याय दि. पृ. २७) योग्यता ज

विषयनुं प्रतिनियामक कारण छे. [आ कथन ज्ञाननी योग्यता (-सामर्थ्य) ने

माटे छे. परंतु योग्यतानुं कारणपणुं सर्वमां सर्वत्र समान छे.) (२) सामर्थ्य, शक्ति, पात्रता, लायकात, ताकात ते योग्यता शब्दना अर्थ छे. * १३२ निमित्त कारण कोने कहे छे? १३२ जे पदार्थ स्वयं कार्यरूप न परिणमे, परंतु कार्यनी उत्पत्तिमां अनुकूळ होवानो

जेना उपर आरोप आवी शके ते पदार्थने निमित्त कारण कहे छे. जेमके घडानी उत्पत्तिमां कुंभार, दंड, चक्र आदि. (निमित्त साचुं कारण नथी- × अहेतुवत् (अकारणवत्) छे कारण के ते उपचार मात्र अथवा व्यवहार मात्र कारण छे.) १३३ उपादान कारण अने निमित्तनी उपस्थितिनो शुं नियम छे?

(बनारसी विलासमां कथित दोहा)
प्रश्नः– (१) गुरु उपदेश निमित्त बिन, उपादान बलहीन;
ज्यों नर दूजे, पांव बिन, चलवेको आधीन. १
प्रश्नः– (२) हौं जाने था एक ही, उपादान सों काज;
थकै सहाई पौन बिन, पानी मांही जहाज. २
प्रथम प्रश्ननो उत्तरः
ज्ञान नैन किरिया चरन, दोऊं शिवमग धार;
उपादान निश्चय जहाँ, तहँ निमित्त व्यौहार. ३

अर्थः– सम्यग्दर्शन-ज्ञानरूप नेत्र अने ज्ञानमां चरण अर्थात् लीनतारूप क्रिया बन्ने मळीने मोक्षमार्ग जाणो. उपादानरूप निश्चयकारण ज्यां होय त्यां निमित्तरूप व्यवहारकारण होय ज छे. _________________________________________________________________ * ‘योग्यता’ शब्दनो प्रयोग शास्त्रोमां अनेक ठेकाणे छे. आधार माटे जुओ परिशिष्ट. × पंचाध्यायी भाग. २ गा. ३प१


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३८४ ] [ मोक्षशास्त्र

भावार्थः– (१) उपादान ते निश्चय अर्थात् साचुं कारण छे, निमित्त व्यवहार अर्थात् उपचार कारण छे साचुं कारण नथी तेथी तो तेने अहेतुवत् कह्युं छे. अने तेने उपचार (-आरोप) कारण केम कह्युं के ते उपादाननुं कांई कार्य करतुं करावतुं नथी तोपण कार्यना वखते तेनी उपस्थितिने कारणे तेने उपचारमात्र कारण कह्युं छे.

(र) सम्यक्दर्शन अने ज्ञानमां लीनताने मोक्षमार्ग जाणो एम कह्युं तेमां शरीराश्रित उपदेश, उपवासादिक क्रिया अने शुभरागरूप व्यवहारने मोक्षमार्ग न जाणो ते वात आवी जाय छे.

प्रथम प्रश्ननुं समाधानः–
उपादान निज गुण जहाँ, तहँ निमित्त पर होय;
भेदज्ञान प्रमाण विधि, विरला बूझे कोय. ४

अर्थः– ज्यां निजशक्तिरूप उपादान तैयार होय त्यां निमित्त होय ज छे एवी भेदज्ञान प्रमाणनी विधि (-व्यवस्था) छे, आ सिद्धांत कोई विरला ज समजे छे. ४.

भावार्थ– ज्यां उपादाननी योग्यता होय त्यां नियमथी निमित्त होय छे, निमित्तनी वाट जोवी पडे एम नथी, अने निमित्तने कोई मेळवी शके छे एम पण नथी. निमित्तनी राह जोवी पडे छे अथवा तेने हुं लावी शकुं छुं एवी मान्यता पर पदार्थमां अभेद-बुद्धि अर्थात् अज्ञानसूचक छे. निमित्त अने उपादान बन्ने असहायरूप छे ए तो मर्यादा छे. ४.

उपादान बल जहँ तहाँ, नहीं निमित्तको दाव;
एक चक्रसों रथ चलै, रविको यहै स्वभाव. प

अर्थः– ज्यां जुओ त्यां सदा उपादाननुं ज बळ छे निमित्त होय छे परंतु निमित्तनो कांई पण दाव (-बळ) नथी जेम एक चक्रथी सूर्यनो रथ चाले छे एवी रीते प्रत्येक कार्य उपादाननी योग्यता (-सामर्थ्य) थी ज थाय छे. प. भावार्थः- कोई एम माने छे के-निमित्त (-संयोगरूप परवस्तु) उपादान (-निजशक्ति) उपर खरेखर असर करे छे, प्रभाव पाडे छे, सहाय-मदद करे छे, आधार दे छे तो ए अभिप्राय मिथ्या छे एम अहीं दोहा नं. ४-प-६-७ मां स्पष्टपणे कह्युं छे. पोताना हितनो उपाय समजवा माटे आ वात महान प्रयोजनभूत छे.

शास्त्रमां ज्यां परद्रव्यने (-परद्रव्य-क्षेत्र-काळादिने) सहायक, साधन, कारण, कारक आदि कह्या होय तो ते व्यवहारनयनी मुख्यताथी कथन छे तेने “एम नथी” पण कार्य थाय तो ते काळे निमित्तादिनी अपेक्षाए (निमित्त बताववा माटे) उपचार कर्यो छे एम जाणवुं.