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सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं
१मोक्षप्राप्तिनो उपाय४नयनी व्याख्या१९
रसम्यग्दर्शननुं लक्षण६अनेकांत तथा एकांतर०
३सम्यग्दर्शनना उत्पत्ति अपेक्षाए भेदो१३द्रव्यार्थिकनय अने पर्यायार्थिकनयना
४तत्त्वोनां नाम१४सम्यग्द्रष्टिनां बीजा नामोर४
पसात तत्त्वो, सम्यग्दर्शनादि तथा आदरणीय निश्चयनय छे-एवी श्रद्धा करवी र४
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सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं
७सम्यग्दर्शनादि तथा तत्त्वोनेउपादान-निमित्त संबंधी खुलासो४७
८सम्यग्दर्शनादिने जाणवाना बीजा१६अवग्रहादि मतिज्ञानना
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सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं १८अवग्रहज्ञानमां विशेषताप७ररक्षयोपशमनैमित्तिक अवधिज्ञानना
१९व्यंजनावग्रहज्ञान नेत्र अनेद्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भावनी अपेक्षाए
र०श्रुतज्ञान, तेनी उत्पत्तिनो क्रम‘मनःपर्यय’ तथा ऋजुमति विपुल
र१अवधिज्ञाननुं वर्णन६६
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सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं
३१मति, श्रुत अने अवधिज्ञानमां (र) सम्यग्दर्शन शुं छे?९०
३रजेम सम्यग्द्रष्टि पदार्थोने जाणे सम्यग्दर्शननी व्याख्या९०
विपरीतता (८) निश्चयसम्यग्दर्शननुं चारित्रनी
३३प्रमाणनुं स्वरूप पूरुं थतां, हवे कोई वार व्यवहार सम्यग्दर्शन
अर्थनय८४ गुण केम कहेवाय छे?९९
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सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं (र१) ज्ञानचेतनाना विधानमांप्रभावनानुं साचुं स्वरूप१३३
(रर) सम्यग्दर्शन संबंधमां भगवाने कहेलुं स्वरूप१३३
(र३) सम्यग्दर्शन अने ज्ञानचेतनामां फेर१र१ भावनावाळो शुं करे?१३३ (र४) चारित्र न पळाय तोपणश्रुतज्ञाननुं अवलंबन ए
(रप) निश्चयसम्यग्दर्शननो बीजो अर्थ१ररधर्म क्यां छे अने केम थाय?१३प
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सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं
सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं १जीवना असाधारण भावो१७१अनादि अज्ञानी जीवने कया भावो
रपांच भावोना भेदो१८०९उपयोगना भेदो१८८ ३औपशमिकभावना बे भेद१८०‘दर्शन’ शब्दना जुदाजुदा अर्थो अने
४क्षायिकभावना नव भेदो१८१साकार अने निराकार संबंधी खुलासो१९०
पक्षायोपशमिकभावना अढार भेदो१८रदर्शन अने ज्ञान वच्चे बेद१९१
६औदयिकभावना एकवीस भेदो१८३दर्शन अने ज्ञान वच्चेनो भेद
अर्थ१९र
७पारिणामिकभावना त्रण भेदो१८४दर्शन अने ज्ञान उपयोग केवळीप्रभुने
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सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं
११संसारी जीवोना भेद (संज्ञी-असंज्ञी)र०१३४उपपाद जन्म कोने होय छे?र१६
१रसंसारी जीवोना बीजा प्रकारे३६शरीरना औदारिकादि पांच भेदोर१७
भाव)र०४ शरीरनो संबंध होय छे?२२०
पुद्गलनी४९आहारक शरीरना स्वामी तथा
भेदोर०८प०-प१-पर कया जीवोने कयुं लिंग (वेद)
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सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं
सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं
नदीओर४९
मापरप४
वर्णनर६१
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सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं
अवलोकनर६६
कोष्टकर६४उपसंहारर६८
सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं
बतावेलुं
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सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं
सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं
रहे
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सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं ३३परमाणुओमां बंध थवानुं कारण३परउपादान-निमित्तसंबंधी सिद्धांत३६८ ३४-३पपरमाणुओमां बंध क्यारेते सिद्धांतना आधारे जीव-पुद्गल
३६बंध क्यारे थाय छे?३पपछ द्रव्योना होवापणानी अन्य३७३ ३७बंध थतां नवी अवस्था केवी प्रकारे सिद्धि
३८द्रव्यनुं अन्य लक्षण३प६टोपी उपरथी छ द्रव्योनी सिद्धि३७६
३९-४०काळद्रव्यनुं वर्णन३प७ सिद्धि३७७ ४१‘गुण’नुं लक्षण३प८कर्मो उपरथी छ द्रव्योनी सिद्धि३७९ ४र‘पर्याय’नुं लक्षण३प९द्रव्योनी स्वतंत्रता३७९
सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं
१योगना भेदोनुं स्वरूप३९२ तेम केम कह्युं नथी?३९७ २आस्रवनुं स्वरूप३९३शुभ-अशुभ कर्मो बंधावाना कारणे ३योगना निमित्तथी आस्रवना शुभ-अशुभयोग एवा भेद नथी३९७
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सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं
६आस्रवमां विशेषता१६तिर्यंचायुना आस्रवनुं कारण४२२
७आस्रवनां अधिकरणना भेद४०३१९बधा आयुओना आस्रवनुं कारण४२प ८जीव-अधिकरणना भेद४०४२०-२१देवायुना आस्रवनुं कारण४२६-२७
९अजीव-अधिकरण आस्रवना भेदो४०प२४तीर्थंकर नामकर्मना १०ज्ञानावरण अने दर्शनावरणना आस्रवनुं कारण४२९
११असातावेदनीयना आस्रवनुं कारण४०८ भावनानुं स्वरूप४२९-४३३ १२सातावेदनीयना आस्रवनुं कारण४१०तीर्थंकरोना त्रण प्रकार४३३ १३अनंत संसारनुं कारण जेअरिहंतोना सात प्रकार४३३
१व्रतनुं लक्षण४४०आ सूत्रमां कहेला त्यागनुं स्वरूप
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सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं ७ब्रह्मचर्यव्रतनी पांच भावनाओ४प४२१अणुव्रतना सहायक सात शीलव्रतो४७२ ८परिग्रहत्यागव्रतनी पांच भावनाओ४प४ त्रण गुणव्रत अने चार ९-१० हिंसा वगेरेथी विरक्त थवा शिक्षाव्रतनुं स्वरूप४७३
११व्रतधारी सम्यग्द्रष्टिनी भावना४प७२२व्रतीने संल्लेखना धारण १रव्रतोनी रक्षा अर्थे सम्यग्द्रष्टि करवानो उपदेश४७४
१३हिंसा-पापनुं लक्षण४६३ वर्णन४७७-४८२
१४असत्यनुं स्वरूप४६प३८दाननुं स्वरूप४८२
१पस्तेय (-चोरी) नुं स्वरूप४६७नवधा भक्तिनुं स्वरूप४८प १६कुशील (-अब्रह्मचर्य) नुं स्वरूप४६८द्रव्यविशेष, दातृविशेष अने पात्र- १७परिग्रहनुं स्वरूप४६९ विशेषनुं स्वरूप४८६ १८व्रतीनी विशेषता४६९दान संबंधी जाणवा योग्य विशेष४८७
१९व्रतीना भेद४७२संवर-निर्जरा नथी.४८७ थी ४९०
सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं
(एकांतमिथ्यात्वादि) पांच भेदोनुं
स्वरूप
ओळखवा जोईए४९२अविरति, प्रमाद अने कषायनुं
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सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं
२बंधनुं लक्षणप०१२१-२२अनुभाग बंधनुं वर्णनप१४
३बंधना चार भेद अने तेनी व्याख्याप०४२४प्रदेशबंधनुं स्वरूपप१प ४प्रकृतिबंधना आठ मूळ भेदो२प-२६पुण्यप्रकृतिओनां तथा पाप-
१संवरनुं लक्षणप२८परिषहनुं स्वरूप अने २संवरनां कारणोप३०ते संबंधी थती भूलप४८
३निर्जरा अने संवरनुं कारणप३१अने तेनुं स्वरूपप४९-पप२
तपना फळ संबंधी खुलासोप३२
प३३१०दसमाथी बारमा गुणस्थान
४गुप्तिनुं लक्षण अने भेदप३४सुधीना परिषहोनुं वर्णनपपप पसमितिनुं स्वरूप अने११तेरमा गुणस्थान परिषहोपप६
६उत्तमक्षमादि दश धर्मअन्नाहार होय ज नहिप६०
७अनित्यादि बार अनुप्रेक्षासूत्र ८ साथे संबंधप६१
सुधीना परिषहोप६२
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सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं १३-१६क्या कर्मना उदयथी२पसम्यक्स्वाध्यायतपना पांच भेदप७८
१७एक जीवने एक साथे२८ध्यानना चार भेदप८१
१८चारित्रना सामायिकादि पांच३०-३३ आर्त्तध्यानना चार
१९बाह्य तपना छ प्रकारोप७०केवळीने बे प्रकारना वचनयोगप८७
२०आभ्यंतर तपना छ प्रकारोप७३४१-४२ शुक्लध्यानना पहेला बे भेदोनी
२१आभ्यंतर तपना पेटा भेदोप७४४४विचारनुं लक्षणप८९ २२सम्यक्प्रायश्चित्त तपना नव भेदोप७पयोगसंक्रान्ति वगेरेनुं स्वरूपप९०
२३सम्यक्विनय तपना चार भेदप७६संबंधी खास लक्षमां राखवा लायक
निश्चयविनयनुं स्वरूपप७६
प७७स्पष्टीकरणप९२-प९३
२४सम्यक्वैयावृत्यतपना दस भेदप७७४पपात्र अपेक्षाए निर्जरामां थती
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सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं
४७पुलाकादि मुनिओमां आठ प्रकारेसंबंधी स्पष्टीकरण६०३
-ते बाबत स्पष्टीकरण६०३
सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं
१केवळज्ञाननी उत्पत्तिनुं कारण६०पसिद्धोनुं लोकाग्रथी स्थानांतर थतुं नथी६२४
नथी?६०८
२मोक्षनुं कारण अने लक्षण६०८
रच्युं छे, तेना उपसंहारमां २३ गाथा
द्वारा आपेलो ग्रंथनो सारांश]
३-४ मोक्ष दशामां क्या क्या भावोनो(र) मोक्षमार्गनुं बे प्रकारे कथन६२७
पमुक्त जीवोनुं स्थान६१२(३-४) निश्चय तथा व्यवहार ६मुक्त जीवना ऊर्ध्वगमननुं कारण६१३मोक्षमार्गनुं स्वरूप६२७-२८ ७पूर्वप्रयोगादि चार प्रकारनां द्रष्टांतो६१३(प-६) व्यवहारी तथा निश्चयी ८मुक्त जीवो लोकाग्रथी आगळ नहि६१४मुनिनुं स्वरूप६२८
९मुक्त जीवोमां व्यवहारनये भेद६१प(८-२०) निश्चयरत्नत्रयनुं कर्ता, कर्म
आत्माने बंधन छे तेनी सिद्धि६१९
६१२आचार्य नथी६३४-६३प
न थाय६२२
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सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं
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ॐ
कामदं मोक्षदं चैव ॐकाराय नमो नमः।। १ ।।
मुनिभिरुपासिततीर्था सरस्वती हरतु नो दुरितान्।। २ ।।
अज्ञानतिमिरान्धानां ज्ञानाञ्जनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।। ३ ।।
सकलकलुषविध्वंशकं, श्रेयसां परिवर्धकं, धर्मसम्बन्धकं,
शास्त्रं श्री मोक्षशास्त्र नामधेयं, अस्य मूलग्रंथकर्तारः
श्रीसर्वज्ञदेवास्तदुत्तरग्रंथकर्तारः श्रीगणधरदेवाः प्रतिगणधरदेवा–
स्तेषां वचनानुसारमासाद्य आचार्यश्रीउमास्वामीआचार्यदेव–
विरचितं, श्रोतारः सावधानतया श्रृण्वन्तु।।
मंगलं कुन्दकुन्दार्यो जैनधर्मोऽस्तु मंगलम्।। १ ।।
सर्वमङ्गलमांगल्यं सर्वकल्याणकारकं।
प्रधानं सर्वधर्माणां जैनं जयतु
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ज्ञातारं विश्चतत्त्वानां वन्दे तद्गुणलब्धये।।
अर्थः– मोक्षमार्गना प्रवर्तावनार अर्थात् चलावनार, कर्मरूपी पर्वतोना भेदनार अर्थात् नाश करनार. विश्वना अर्थात् बधां तत्त्वोना जाणनार तेने ते गुणोनी प्राप्ति माटे हुं प्रणाम करुं छुं–वंदन करुं छुं.
(१) आ शास्त्र शरू करतां पहेलां आ शास्त्रनो विषय शुं छे ते टूंकमां जणाववानी जरूर छे.
(र) आचार्य भगवाने आ शास्त्रनुं नाम ‘मोक्षशास्त्र’ अथवा ‘तत्त्वार्थसूत्र’ राख्युं छे. जगतना जीवो अनंत प्रकारना दुःखो भोगवी रह्या छे, ते दुःखोथी हंमेशने माटे मुक्त थवा एटले के अविनाशी सुख मेळववा तेओ अहर्निश उपायो करी रह्या छे; पण तेओना ते उपायो खोटा होवाथी जीवोने दुःख मटतुं नथी, एक के बीजा प्रकारे दुःख चाल्या ज करे छे. दुःखोनी परंपराथी जीवो शी रीते मुक्त थाय तेनो उपाय अने तेनुं वीतरागी विज्ञान आ शास्त्रमां बताववामां आव्यां छे तेथी तेनुं नाम ‘मोक्षशास्त्र’ राखवामां आव्युं छे मूळभूत भूल विना दुःख होय नहि अने ते भूल टळतां सुख थया वगर रहे ज नहि एवो अबाधित सिद्धांत छे. वस्तुनुं साचुं स्वरूप समज्या विना ए भूल टळे नहि; तेथी वस्तुनुं साचुं स्वरूप
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२] [मोक्षशास्त्र आ शास्त्रमां समजाववामां आव्युं होवाथी तेनुं नाम ‘तत्त्वार्थसूत्र’ पण आपवामां आव्युं छे.
Belief) न होय तो ज्ञानमां भूल थाय नहि. ज्यां मान्यता साची होय त्यां ज्ञान साचुं ज होय. साची मान्यता अने साचा ज्ञानपूर्वक जे कांई वर्तन थाय ते यथार्थ ज होय; तेथी साची मान्यता अने साचा ज्ञानपूर्वक थता साचा वर्तन द्वारा ज जीवो दुःखथी मुक्त थई शके छे ए सिद्धांत आचार्य भगवाने आ शास्त्रनी शरूआत करतां पहेला अध्यायना पहेला ज सूत्रमां जणाव्यो छे.
(४) ‘पोते कोण छे’ ते संबंधी जगतना जीवोनी महान भूल चाली आवे छे. घणा जीवो शरीरने पोतानुं स्वरूप माने छे, तेथी शरीरनी संभाळ राखवा तेओ सतत् प्रयत्न अनेक प्रकारे कर्या करे छे. शरीरने जीव पोतानुं माने छे तेथी शरीरनी सगवड जे चेतन के जड पदार्थो तरफथी मळे छे एम ते माने ते तरफ तेने राग थाय ज; अने जे चेतन के जड पदार्थो तरफथी अगवड मळे छे एम ते माने ते तरफ तेने द्वेष थाय ज. जीवनी आ मान्यताथी जीवने आकुळता रह्या ज करे छे.
(प) जीवनी आ महान भूलने शास्त्रमां ‘मिथ्यादर्शन’ कहेवामां आवे छे; ज्यां मिथ्या मान्यता होय त्यां ज्ञान अने चारित्र पण मिथ्या होय ज; तेथी मिथ्यादर्शनरूप महान भूलने महापाप पण कहेवामां आवे छे. मिथ्यादर्शन ए महान भूल छे अने ते सर्व दुःखनुं महा बळवान मूळियुं छे, एवुं जीवोने लक्ष नहि होवाथी ते लक्ष कराववा अने ते भूल टाळी जीवो अविनाशी सुख तरफ पगलां मांडे ते हेतुथी आचार्य भगवाने आ शास्त्रमां पहेलो ज शब्द ‘सम्यग्दर्शन’ वापर्यो छे. सम्यग्दर्शन प्रगट थतां ज ते ज समये ज्ञान साचुं थाय छे तेथी बीजो शब्द ‘सम्यग्ज्ञान’ वापर्यो छे; अने सम्यग्दर्शन-ज्ञानपूर्वक ज सम्यक्चारित्र होई शके तेथी ‘सम्यक्चारित्र’ ए शब्द त्रीजो मूक्यो छे. ए प्रमाणे त्रण शब्दो वापरतां ‘साचुं सुख मेळववाना रस्ता त्रण छे’ एम जीवो न मानी बेसे माटे ए त्रणेनी एकता ए ज मोक्षमार्ग छे एम पहेला ज सूत्रमां जणावी दीधुं छे.
(६) जीवने साचुं सुख जोईतुं होय तो प्रथम सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं ज जोईए; जगतमां कया कया पदार्थो छे, तेनुं स्वरूप शुं छे, तेनां कार्य-क्षेत्र शुं छे, जीव शुं छे, जीव केम दुःखी थाय छे-तेनी यथार्थ समजण होय तो ज सम्यग्दर्शन प्रगट थाय; तेथी सात तत्त्वो द्वारा आचार्य भगवाने वस्तुस्वरूप दस अध्यायोमां जणाव्युं छे.