Moksha Shastra-Gujarati (Devanagari transliteration). Contents List; First Chapter Pg. 1 to 170 Contents; Second Chapter Pg. 171 to 236 Contents; Third Chapter Pg. 237 to 269 Contents; Fourth Chapter Pg. 271 to 306 Contents; Fifth Chapter Pg. 311 to 389 Contents; Sixth Chapter Pg. 389 to 437 Contents; Seventh Chapter Pg. 439 to 490 Contents; Eighth Chapter Pg. 491 to 519 Contents; Nineth Chapter Pg. 521 to 604 Contents; Tenth Chapter Pg. 605 to 642 Contents; Swadhyaay Mangalaacharan; First Chapter Pg. 1 to 170; Mangalaacharan; Short Note on Shastra.

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श्री मोक्षशास्त्र–गुजराती टीका
विषयानुक्रमणिका

सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं

मंगलाचरणसम्यग्दर्शनादि तथा तत्त्वोने
शास्त्रना विषयोनुं संक्षिप्त अवलोकनजाणवानो उपाय१९
*प्रथम अध्यायः पानुं १ थी १७०प्रमाणनी व्याख्या१९

मोक्षप्राप्तिनो उपायनयनी व्याख्या१९

पहेला सूत्रनो सिद्धांतयुक्तिर०

सम्यग्दर्शननुं लक्षणअनेकांत तथा एकांतर०

तत्त्व’ शब्दनो मर्मसम्यक् अने मिथ्या अनेकांतनुं स्वरूपर०
सम्यग्दर्शननुं माहात्म्यसम्यक् अने मिथ्या अनेकांतना द्रष्टांतोर१
सम्यग्दर्शननुं बळ१०सम्यक् अने मिथ्या एकांतनुं स्वरूपरर
सम्यग्दर्शनना त्रण भेदो१०सम्यक् अने मिथ्या एकांतना द्रष्टांतोरर
सम्यग्दर्शनना बीजी रीते बे भेदो११प्रमाणना प्रकारोरर
सराग सम्यग्द्रष्टिने प्रशमादि भावो११नयना प्रकारोर३
सम्यग्दर्शननो विषय-लक्ष१रद्रव्यार्थिकनयअने पर्यायार्थिकनय एटले शुं?र३
बीजा सूत्रनो सिद्धांत१रगुणार्थिकनय शा माटे नहिर३

सम्यग्दर्शनना उत्पत्ति अपेक्षाए भेदो१३द्रव्यार्थिकनय अने पर्यायार्थिकनयना

त्रीजा सूत्रनो सिद्धांत१३ बीजां नामो२४

तत्त्वोनां नाम१४सम्यग्द्रष्टिनां बीजा नामोर४

सात तत्त्वोनुं स्वरूप१पमिथ्याद्रष्टिनां बीजा नामोर४
चोथा सूत्रनो सिद्धांत१६ज्ञान बन्ने नयोनुं करवुं, पण परमार्थे

सात तत्त्वो, सम्यग्दर्शनादि तथा आदरणीय निश्चयनय छे-एवी श्रद्धा करवी र४

बीजा शब्दोना अर्थव्यवहार अने निश्चयनुं फळरप
समजवानी रीत१७शास्त्रोमां बन्ने नयोनुं ग्रहण करवुंरप
निक्षेपना भेदोनी व्याख्या१७ कह्युं छे ते कई रीते?
स्थापनानिक्षेप अने द्रव्यनिक्षेपजैन शास्त्रोना अर्थ करवानी पद्धतिरप
वच्चेनो भेद१८निश्चयाभासीनुं स्वरूपर६
पांचमा सूत्रनो सिद्धांत१९व्यवहाराभासीनुं स्वरूपर६

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[४०]

सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं

नयना बे प्रकारो (रागरहित अनेजिनबिंबदर्शन इत्यादि सम्यग्दर्शननां
रागसहित)२६ कारणो संबंधी प्रश्नोत्तर३प-३६
प्रमाण सप्तभंगी अने नय सप्तभंगीर६सूत्र ४ थी ८नो एकंदर सिद्धांत३७
आ शास्त्रमां मुख्यपणे व्यवहारनयनुंसम्यग्ज्ञानना भेदो३७
कथन छे२६मतिज्ञान वगेरे पांच प्रकारनुं स्वरूप३७
वीतरागी विज्ञाननुं प्रतिपादनर७नवमा सूत्रनो सिद्धांत३८
मिथ्याद्रष्टिनां नयोर७१०कया ज्ञानो प्रमाण छे?३८–३९
सम्यग्द्रष्टिनां नयोर८सूत्र ९-१० नो सिद्धांत४०
रत्नत्रयनो विषयर८११परोक्ष प्रमाणना भेद४०
नीतिनुं स्वरूपर८सम्यक्मतिज्ञानी जीव सम्यग्दर्शन-ज्ञान
परिग्रहनुं स्वरूपर८ होवानुं जाणी शके छे.४०
निश्चय अने व्यवहारनो बीजो अर्थ२८मति अने श्रुतज्ञानने अहीं परोक्ष कह्यां
आत्मानुं स्वरूप समजवा माटे छे ते संबंधे विशेष खुलासो४१
नय विभाग२९१२प्रत्यक्ष प्रमाणना भेद४३
निश्चयनय अने द्रव्यार्थिकनय, तथा१३मतिज्ञाननां बीजां नामो४३
व्यवहारनय अने पर्यायार्थिकनय१४मतिज्ञाननी उत्पत्ति समये निमित्त४प
जुदा जुदा अर्थमां पण वपराय छे२९मतिज्ञानमां ज्ञेयपदार्थ अने
छठ्ठा सूत्रनो सिद्धांत३० प्रकाश निमित्त केम नथी?४६

सम्यग्दर्शनादि तथा तत्त्वोनेउपादान-निमित्त संबंधी खुलासो४७

जाणवाना अमुख्य (गौण) उपाय३०उपादान-निमित्त कारणो४७
सम्यग्दर्शननुं निर्देश तथा स्वामित्व३०१पमतिज्ञानना भेदो अने तेनो क्रम४८
सम्यग्दर्शननुं साधन३०अवग्रह, ईहा, अवाय अने धारणानुं स्वरूप ४९
सम्यग्दर्शननुं अधिकरण, तथा स्थितिआत्मानुं ज्ञान थवामां अवग्रहादि
अने विधान३० कई रीते छे?४९

सम्यग्दर्शनादिने जाणवाना बीजा१६अवग्रहादि मतिज्ञानना

पण अमुख्य उपाय३२ विषयभूत पदार्थो४९
सत्. संख्या वगेरे आठ बोलनी व्याख्या ३रबहु, बहुविध इत्यादि बार
सत् अने निर्देशमां तफावत३३ प्रकारोनी व्याख्याप०
आ सूत्रमां ‘सत्’ शब्द वापरवानुंदरेक इन्द्रियद्वारा थता बार प्रकारना
कारण३३मतिज्ञान अने ते संबंधी केटलाक
संख्या अने विधानमां तफावत३४ शंका-समाधानपर-प७
क्षेत्र अने अधिकरणमां तफावत३४१७उपर कहेला बहु, बहुविधादि
क्षेत्र अने स्पर्शनमां तफावत३४भेदो कोना छे?प७
काळ अने स्थितिमां तफावत३४
सूत्रमां विस्तार बताववानुं कारण३प

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[४१]

सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं १८अवग्रहज्ञानमां विशेषताप७ररक्षयोपशमनैमित्तिक अवधिज्ञानना

अर्थावग्रह अने व्यंजनावग्रहनां द्रष्टांतो प८ भेद तथा तेना स्वामी६७
अव्यक्त अने व्यक्तनो अर्थप८अवधिज्ञानना अनुगामी आदि छ
अव्यक्त अने व्यक्तज्ञान अर्थात् भेदोनी व्याख्या६७
व्यंजनावग्रह अने अर्थावग्रहप८अवधिज्ञानना अन्य प्रकारो६७
ईहा, अवाय अने धारणानुं विशेष स्वरूप प९द्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भाव अपेक्षाए
अवग्रहादि ज्ञानोमां एक पछी अवधिज्ञाननो विषय६८
बीजुं ज्ञान थाय ज के केम?प९क्षयोपशमनो अर्थ६९
‘इहा’ ज्ञान सत्य के मिथ्या?प९गुणप्रत्यय अवधिज्ञान संबंधी६९
धारणा अने संस्कार संबंधी खुलासो६०सूत्र र१-ररनो सिद्धांत६९
अवग्रहादि चार भेदोनी विशेषता६०र३मनःपर्ययज्ञानना भेद७०

१९व्यंजनावग्रहज्ञान नेत्र अनेद्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भावनी अपेक्षाए

मनथी थतुं नथी६१ मनःपर्यय-ज्ञाननो विषय७०

र०श्रुतज्ञान, तेनी उत्पत्तिनो क्रम‘मनःपर्यय’ तथा ऋजुमति विपुल

अने तेना भेद६१ -मतिनी व्याख्या७१
श्रुतज्ञाननी उत्पत्तिनां द्रष्टांतो६१द्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भाव अपेक्षाए
श्रुतज्ञाननी उत्पत्तिमां मतिज्ञानऋजुमतिमनःपर्यय तथा विपुलमति
निमित्तमात्र छे६२मनःपर्ययनो विषय७१
मतिज्ञान समान श्रुतज्ञान शार४ऋजुमति अने विपुलमति
माटे नहि?६२ मनःपर्ययज्ञानमां अंतर७२
एक श्रुतज्ञान लंबाइने बीजुं श्रुतज्ञानरपअवधिज्ञान अने मनःपर्ययज्ञानमां
थाय तेने मतिपूर्वक कई रीते कहेवाय? ६२ विशेषता (–तफावत)७२
भावश्रुत अने द्रव्यश्रुत६३र६मति अने श्रुतज्ञाननो विषय७३
अनक्षरात्मक अने अक्षरात्मक श्रुतज्ञान६३र७अवधिज्ञाननो विषय७३
प्रमाणना बे प्रकार६३र८मनः पर्ययज्ञाननो विषय७४
‘श्रुतनो’ अर्थ६३सूत्र र७-र८नो सिद्धांत७४
अंगप्रविष्ट अने अंगबाह्य अर्थात्र९केवळज्ञाननो विषय७प
बार अंग अने चौद पूर्व६४केवळी भगवानने एक ज ज्ञान होय
मति अने श्रुतज्ञान वच्चे भेद६४ के पांच?७प
मति अने श्रुतज्ञान संबंधीसूत्र र९नो सिद्धांत७६
विशेष खुलासो६प३०एक जीवने एक साथे केटलां ज्ञान
सूत्र ११ थी र० सुधीनो सिद्धांत६६ होई शके छे?७६

र१अवधिज्ञाननुं वर्णन६६

भवप्रत्यय अने गुणप्रत्यय अवधिज्ञान ६६

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[४२]

सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं

सूत्र ९ थी ३० सुधीनो सिद्धांत७७ (१) सम्यग्दर्शननी जरूरियात९०

३१मति, श्रुत अने अवधिज्ञानमां (र) सम्यग्दर्शन शुं छे?९०

मिथ्यापणुं पण होय छे.७७ (३) श्रद्धागुणनी मुख्यताए निश्चय-

३रजेम सम्यग्द्रष्टि पदार्थोने जाणे सम्यग्दर्शननी व्याख्या९०

छे तेम मिथ्याद्रष्टि पण जाणे छे (४) ज्ञानगुणनी मुख्यताए निश्चय
छतां तेना ज्ञानने मिथ्याज्ञान सम्यग्दर्शननी व्याख्या९१
शा माटे कहो छो? ए संबंधी (प) चारित्रगुणनी मुख्यताए
प्रश्न अने तेनो उत्तर७८ निश्चयसम्यग्दर्शननी व्याख्या९३
अत्यार सुधीना कथननो टूंक सार७९ (६) दर्शन-ज्ञान-चारित्र संबंधी
सत् असत्ना भेदज्ञान वडे मिथ्यात्व अनेकांतस्वरूप९३
टाळवुं जोईए७९ (७) दर्शन (श्रद्धा), ज्ञान, चारित्र
ज्ञानमां त्रण प्रकारनी विपरीतता अने ए त्रणे गुणोनी अभेदद्रष्टिए
ते टाळवानो उपाय८० निश्चयसम्यग्दर्शननी व्याख्या९४
सम्यग्ज्ञान थतां त्रण प्रकारनी
विपरीतता
(८) निश्चयसम्यग्दर्शननुं चारित्रनी
टळे छे तेनुं वर्णन८१ भेद अपेक्षाए कथन९प
सत् अने असत्नी व्याख्या८१ (९) निश्चयसम्यग्दर्शन संबंधे प्रश्नोत्तर९प
ज्ञाननुं कार्य८र(१०) व्यवहार सम्यग्दर्शननी व्याख्या९६
विपरीत ज्ञानना द्रष्टांतो८र(११) व्यवहाराभास सम्यग्दर्शनने

३३प्रमाणनुं स्वरूप पूरुं थतां, हवे कोई वार व्यवहार सम्यग्दर्शन

श्रुतज्ञानना अंशरूप नयनुं पण कहे छे.९६
स्वरूप कहे छे८३(१र) सम्यग्दर्शन प्रगट करवानो उपाय९७
अनेकांत, स्याद्वाद अने नयनी व्याख्या ८३(१३) निर्विकल्प अनुभवनी शरुआत९९
नैगम आदि सात नयोनुं स्वरूप८३-८४ (१४) सम्यक्त्व पर्याय होवा छतां
नयना त्रण प्रकार-ज्ञान, शब्द अने
अर्थनय
८४ गुण केम कहेवाय छे?९९
श्रीमद् राजचंद्रजीए आत्मा संबंधमां(१प) बधा सम्यग्द्रष्टिओनुं सम्यग्दर्शन
उतारेला सात नयोना अर्थ८प समान छे!९९
खरा भावो लौकिक भावोथी विरुद्ध(१६) सम्यग्दर्शनना भेद शा माटे?१००
होय छे.८६(१७) सम्यक्त्वनी निर्मळतानुं स्वरूप१००
ज्ञान संबंधी विशेष खुलासो (सूत्र ८) ८६(१८) सम्यक्त्वनी निर्मळतामां पांच भेद१०१
प्रथम अध्यायनुं परिशिष्ट–१(१९) सम्यग्द्रष्टि जीव पोताने सम्यकत्व
सम्यग्दर्शन संबंधी केटलीक प्रगटयानुं श्रुतज्ञान वडे बराबर जाणे छे १०१
जाणवा जेवी विगतो९०–१र३ (र०) सम्यग्दर्शन संबंधी केटलाक प्रश्नोत्तर१०र-१११

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[४३]

सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं (र१) ज्ञानचेतनाना विधानमांप्रभावनानुं साचुं स्वरूप१३३

फेर केम छे?१११खरी दयानुं (-अहिंसानुं)

(रर) सम्यग्दर्शन संबंधमां भगवाने कहेलुं स्वरूप१३३

विचारवा लायक नव विषयो१११आनंद प्रगटाववानी

(र३) सम्यग्दर्शन अने ज्ञानचेतनामां फेर१र१ भावनावाळो शुं करे?१३३ (र४) चारित्र न पळाय तोपणश्रुतज्ञाननुं अवलंबन ए

सम्यक्श्रद्धा करवी ज जोईए१२१ ज पहेली क्रिया१३४

(रप) निश्चयसम्यग्दर्शननो बीजो अर्थ१ररधर्म क्यां छे अने केम थाय?१३प

.... ए वात धर्मनी मर्यादा बहार छे१र३सुखनो उपायः ज्ञान अने सत्समागम१३६
प्रथम अध्यायनुं परिशिष्ट–रजे तरफनी रुचि ते तरफनुं घोलन१३७
* सम्यग्दर्शनः पा. १र४ थी १३० *श्रुतज्ञानना अवलंबननुं फळः
सम्यग्दर्शन शुं अने तेने कोनुं आत्मानुभव१३८
अवलंबन१२पसम्यग्दर्शन थया पहेलां१३९
भेदना विकल्प आवे खरा छतांधर्म माटे पहेलां शुं करवुं?१४०
तेनाथी सम्यग्दर्शन नथी१२६सुखनो रस्तो साची समजणः
विकल्प राखीने स्वरूपनो अनुभव विकारनुं फळ जड१४१
थई शके नहि१२७असाध्य कोण अने शुद्धात्मा कोण?१४१
सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञाननो संबंधधर्मनी रुचिवाळा जीव केवा होय?१४र
कोनी साथे छे?१२८उपादान-निमित्त अने कारण-कार्य१४र
श्रद्धा अने ज्ञान क्यारे सम्यक् थयां?१र८अंतर अनुभवनो उपाय अर्थात्
सम्यग्दर्शननो विषय शुं? ज्ञाननी क्रिया१४२
-मोक्षनुं परमार्थ कारण कोण?१र९ज्ञानमां भव नथी१४३
सम्यग्दर्शन ए ज शांतिनो उपाय छे१३०आ रीते अनुभवमां आवतो
संसारनो अभाव सम्यग्दर्शनथी१३० शुद्धात्मा केवो छे?१४४
ज थाय छे.निश्चय अने व्यवहार१४४
प्रथम अध्यायनुं परिशिष्ट–३सम्यग्दर्शन थतां शुं थाय?१४४
जिज्ञासुए धर्म शी रीतेवारंवार ज्ञानमां एकाग्रतानो
करवो? १३१ थी १४६ अभ्यास करवो१४प
पात्र जीवनुं लक्षण१३१छेल्ली भलामणो१४६
सम्यग्दर्शनना उपाय माटेप्रथम अध्यायनुं परिशिष्ट–४
ज्ञानीओए बतावेली क्रिया१३१बीजा सूत्रमां ‘तत्त्वार्थ श्रद्धान’ ने
श्रुतज्ञान कोने कहेवुं?१३रसम्यग्दर्शननुं लक्षण कह्युं,
श्रुतज्ञाननुं वास्तविक लक्षण अनेकान्त१३रतेमां अव्याप्ति, अतिव्याप्ति
भगवान पण बीजानुं करी शक्या नहि १३३अने असंभव दोषनो परिहारः १४७ थी
१प७

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[४४]

सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं

अव्याप्तिदूषणनो परिहार१४७परिशिष्ट नं. पः केवळज्ञाननुं
अतिव्याप्तिदूषणनो परिहार१प० स्वरूप१प९-१७०
असंभवदूषणनो परिहार१४१षट्खंडागम–धवला टीका तथा
सम्यग्दर्शननुं लक्षण तत्त्वार्थश्रद्धानप्रवचनसार ना आधार
कह्युं ते संबंधी विशेष खुलासो१प१-१प७
* बीजो अध्यायः पा. १७१ थी २३६ *

सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं जीवना असाधारण भावो१७१अनादि अज्ञानी जीवने कया भावो

औपशमिकादि पांच भावोनी व्याख्या१७१ कदी थया नथी?१८६
आ पांच भावो शुं बतावे छे?१७रऔपशमिकादि त्रण भावो कया
पांच भावो संबंधी केटला प्रश्नोत्तर१७३ विधिथी प्रगटे?१८६
औपशमिकभाव क्यारे थाय?१७पपांच भावोमांथी कया भाव बंधनरूप छे
पांच भावो संबंधी केटलुंक स्पष्टीकरण१७६ अने कया भावो बंधनरूप नथी?१८६
जीवनुं कर्तव्य१७८जीवनुं लक्षण१८७
पांच भावो संबंधी वधारे खुलासो१७८उपयोगनुं स्वरूप१८८
आ सूत्रमां नय-प्रमाण विवक्षा१७९आठमा सूत्रनो सिद्धांत१८८

पांच भावोना भेदो१८०उपयोगना भेदो१८८ औपशमिकभावना बे भेद१८०‘दर्शन’ शब्दना जुदाजुदा अर्थो अने

औपशमिक सम्यक्त्व अने औपशमिक अहीं लागु पडतो अर्थ१८९
चारित्रनी व्याख्या१८०दर्शन उपयोगनुं स्वरूप१८९

क्षायिकभावना नव भेदो१८१साकार अने निराकार संबंधी खुलासो१९०

केवळज्ञानादि नव क्षायिकभावोनी व्याख्या १८१आकार संबंधी विशेष खुलासो१९०

क्षायोपशमिकभावना अढार भेदो१८रदर्शन अने ज्ञान वच्चे बेद१९१

क्षायोपशमिक सम्यकत्व-चारित्र अने दर्शननी व्याख्या संबंधी
संयमासंयमनी व्याख्या१८२ शंका-समाधान१९१

औदयिकभावना एकवीस भेदो१८३दर्शन अने ज्ञान वच्चेनो भेद

‘गति’ने औदयिकभावमां केम गणी?१८३ कई अपेक्षाए छे?१९१
लेश्यानुं स्वरूप अने भेदो१८३अभेद अपेक्षाए दर्शन अने ज्ञाननो
अर्थ
१९र

पारिणामिकभावना त्रण भेदो१८४दर्शन अने ज्ञान उपयोग केवळीप्रभुने

भव्यत्व, अभव्यत्व, जीवत्व तथा युगपत् अने छद्मस्थने क्रमे होय छे१९२
पारिणामिकनो अर्थ१८४१०जीवना भेद१९र
ते संबंधी विशेष खुलासो१८प‘संसार’नो अर्थ१९३

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[४प]

सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं

मिथ्यात्वने कारणे थता पंच-३०विग्रहगतिमां आहारक - अनाहारकनी
परावर्तननुं स्वरूप१९४ व्यवस्था२१३
असंख्यात अने अनंतनी समजण१९९३१जन्मना भेदर१४
मनुष्यभव सफळ करवा माटे खास३रयोनिओना भेदर१४
लक्षमां राखवा लायक विषयो१९९-र०१ ३३गर्भ जन्म कोने होय छे?र१प

११संसारी जीवोना भेद (संज्ञी-असंज्ञी)र०१३४उपपाद जन्म कोने होय छे?र१६

द्रव्यमन अने भावमन संबंधीर०र३पसंमूर्छन जन्म कोने होय छे?र१६

१रसंसारी जीवोना बीजा प्रकारे३६शरीरना औदारिकादि पांच भेदोर१७

भेद (त्रस, स्थावर)२०२३७शरीरोनी सूक्ष्मतानुं वर्णनर१७
हलनचलन अपेक्षाए त्रस के३८-३९ शरीरना प्रदेशो
स्थावरपणुं नथी२०१ (-परमाणुओ) नी संख्या२१८
१३स्थावर जीवोना भेदर०१४०-४१-४रतेजस अने कार्मण शरीरनी
१४त्रस जीवोना भेदर०र विशेषताओर१८-रर०
१पइन्द्रियोनी संख्यार०३४३एक जीवने एक साथे केटलां
१६इन्द्रियोना मूळ भेद (द्रव्य अने
भाव)
र०४ शरीरनो संबंध होय छे?२२०
१७द्रव्येन्द्रियनुं स्वरूपर०४४४कार्मणशरीरनी विशेषतारर०
१८भावेन्द्रियनुं स्वरूपर०प४पऔदारिकशरीरनुं लक्षणरर१
लब्धि अने उपयोग संबंधी खुलासोर०प४६वैक्रियिकशरीरनुं लक्षणररर
आ सूत्रनो सिद्धांतर०६४७देव अने नारकी सिवाय
१९पांच इन्द्रियोनां नाम अने तेनो बीजाने वैक्रियिक शरीर होय?२२२
अनुक्रम२०६४८वैक्रियिक सिवाय बीजा कोइ
र०इन्द्रियोना विषयर०७ शरीरने लब्धिनुं निमित्त छे?२२२
आ जीव अधिकार होवा छतां
पुद्गलनी
४९आहारक शरीरना स्वामी तथा
वात केम लीधी?२०७ तेनुं लक्षणरर३-र४
स्पर्श, रस, गंध, वर्ण अने शब्दना
भेदो
र०८प०-प१-पर कया जीवोने कयुं लिंग (वेद)
र१मननो विषयर०८ होय छे तेनुं कथन२२प
रर-र३ कया जीवोने केटली इन्द्रियो होय
छे?र०९प३कोनुं आयुष्य अपवर्तन ( - अकाळमृत्यु)
र४संज्ञी कोने कहे छे?र१० रहित छे?२२६
रपविग्रहगतिमां मन वगर कर्मास्रवउपसंहारः रर७थीर३६
थवानुं कारण२१०(१)बीजा अध्यायना विषयोनुं
र६विग्रहगतिमां जीव अने पुद्गलनुं टूंक अवलोकन२२७
गमन केवी रीते थाय छे?२११(र)पारिणामिकभाव संबंधीरर८
र७मुक्तजीवोनी गति केवी रीते थाय छे?र११(३)उत्पाद अने व्यय पर्यायरर९
र८संसारी जीवोनी गति अने तेनो समय र१र(४)पांचभावोनुं ज्ञान धर्म करवामां शी
र९अविग्रहगतिनो समयर१र रीते उपयोगी छे?२२९

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[४६]

सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं

(प) उपादानकारण अने निमित्तकारण
संबंधी२२९(७)निमित्त-नैमित्तिक संबंधर३४
(६) पांचभावो आ अध्यायना सूत्रोनो
संबंध२३१(८)तात्पर्यर३६
त्रीजो अध्यायः पा. २३७ थी २६९
भूमिका ( पहेला चार अध्यायना विषयोनुं संक्षिप्त अवलोकन)

सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं

अधोलोकनुं वर्णन र३८ थी र४४१६-१८पर्वतो उपरना स्थिर सरोवरना नाम
सात नरक पृथ्वीओर३९ तथा तेनुं माप अने ते सरोवरनी
त्रण लोकनी रचना (नकशो)र३९ वच्चेना कमळनुं प्रमाण२४७
ते सात पृथ्वीओना बिलोनीर३९१९सरोवरनां छ कमळोमां रहेनारी
संख्या नरकगतिनी साबितीर३९ छ देवीओ२४७
३-४-पनारकीओनां दुःखनुं वर्णनर४०२०-२२सात क्षेत्रोनी चौद महानदीओनुं
नरकना उत्कृष्ट आयुनुं प्रमाणर४र वर्णन२४८
नरकमां पण सम्यग्दर्शन थाय छेर४र२३ते चौद महा नदीओनी सहायक
नदीओ
र४९
नरकमां चोथा गुणस्थान उपरनी२४-२६ भरतक्षेत्रनो तथा आगळनां क्षेत्र
अने
भूमिका केम नहि?२४३ पर्वतोनो विस्तार२प०
सम्यग्द्रष्टिने नरकमां केवुं दुःख हशे?र४३२७भरत अने एरावत क्षेत्रोमां काळचक्रनुं
नरकमांथी नीकळेला जीवोनी पात्रता परिवर्तन२प१
केटली?२४४अढाई द्वीपनो नकशोरपर
कोईक सम्यग्द्रष्टिओ पणभरत - ऐरावत क्षेत्रना मनुष्यनुं
आयुष्य
नरकमां शा माटे जाय छे?२४४ ऊंचाई अने आहारसंबंधी कोष्टक२प२
‘सागर’ काळनुं मापर४पर७-३१ अन्य भूमिओनी काळ अवस्था तथा
मध्यलोकनुं वर्णन पा. र४प थी र६६ आयुष्यनुंमाप२प२-२प३
७-८ केटलांक द्वीप-समुद्रोनां नामो, विस्तार३रभरतक्षेत्रना विस्तारनुं बीजी रीते
माप
रप४
अने आकार२४प३३धातकीखंडनुं वर्णनरप४
जंबुद्वीपनो नकशोर४प३४पुष्करार्द्धद्वीपनुं वर्णनरप४
जंबुद्वीपनो विस्तार तथा आकारर४प३पमनुष्यक्षेत्रनी हदरपप
१०जंबुद्वीपना सात क्षेत्रोनां नामर४६३६मनुष्योना भेद (आर्य अने मलेच्छ)रपप
११ते सात विभाग करनार छ पर्वतोनांऋद्धिप्राप्त आर्यनी आठ प्रकारनी
नाम२४६ ऋद्धिओनुं वर्णनरपप-र६१
१र-१३ छ कुलाचल (-पर्वत) ना रंगअनृद्धिप्राप्त आर्यना पांच प्रकारनुं
वर्णन
र६१
वगेरेनुं वर्णन२४७म्लेच्छ मनुष्योनुं वर्णनर६३

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[४७]

सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं

३७कर्मभूमिनुं वर्णनर६३क्षेत्रना मापनुं कोष्टकर६प
३८मनुष्योनुं उत्कृष्ट तथा जघन्य आयुष्यर६४मध्यलोकना वर्णननुं टूंक
अवलोकन
र६६
तिर्यंचोनी आयुस्थिति अने तेनुं
कोष्टक
र६४उपसंहारर६८
चोथो अध्यायः पा. २७१ थी ३०६
भूमिका (पहेला चार अध्यायनुं टूंक अवलोकन)

सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं

ऊर्ध्वलोकनुं वर्णनः पा. २७१ थी २९पर८-३४भवनवासी अने वैमानिक देवो
देवोना भेदर७१ आयुष्यनुं वर्णनर९१-र९३
पहेला त्रण प्रकारना देवोनी लेश्यार७र३प-३६नारकीओना जघन्य आयुष्यनुं
चार प्रकार देवोना पेटा भेदोर७र वर्णन२९३
४-पचार प्रकारना देवोना सामान्यपणे३७भवनवासी देवोनुं जघन्य आयुष्यर९४
इन्द्र वगेरे भेदोर७३३८-४र व्यंतर, ज्योतिषि अने लौकांतिक
देवोमां इन्द्रनी व्यवस्थार७४ देवोना आयुष्यनुं वर्णन२९४
७-८-९देवोमां कामसेवन संबंधी वर्णनर७४उपसंहारः पा. र९प थी ३१०
नवमा सूत्रनो सिद्धांतर७७जीवना स्वरूपसंबंधी सप्तभंगी
(स्यात्
१०भवनवासी देवोनुं वर्णनर७७ अस्ति-स्यात्नास्ति)२९प
११व्यंतरदेवोनुं वर्णनर७९साधक जीवने अस्ति-नास्तिना ज्ञानथीर९६
१र-१प ज्योतिषी देवोना पांच भेदो तथा थतुं फळ
तेनुं वर्णनर७९बीजाथी चोथा अध्याय सुधीमां
बतावेलुं
१६-र१वैमानिक देवोनुं वर्णनर८१-र८३ अस्ति-नास्तिनुं स्वरूप२९७
शुभपरिणामने लीधे थता पुण्यबंधथीसप्तभंगीना बाकीना पांच भंगोनी
कोण क्यां उपजे?र८४ समजण२९८
देवमांथी च्यवीने कोण केवी पर्यायजीवमां उतरती सप्तभंगीर९९
धारण करे?र८६सप्तभंगीमां तथा ‘अस्ति’मां लागु
एकवीसमा सूत्रनो सिद्धांतर८६ पडता नयो२९९
शुं देवगतिमां सुख छे? तेनो खुलासोर८७प्रमाण, निक्षेप अने स्वज्ञेय३००
२रवैमानिक देवोमां लेश्यानुं वर्णनर८८
र३कल्पसंज्ञा क्यां सुधी छे?र८८अनेकांतः पा. ३०१ थी ३१०
र४-रपलौकांतिक देवोनुं वर्णनर८९सप्तभंगी अने अनेकांत३०१
र६अनुदिश अने अनुत्तरवासी देवोनानय३०र
अवतारनो नियमर८९अध्यात्मना नय३०र
र७तिर्यंच कोण छे?र९०उपचार नय३०३

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[४८]

सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं

सम्यग्द्रष्टिनुं अने मिथ्याद्रष्टिनुं ज्ञान३०४मुमुक्षुओनुं कर्तव्य३०६
अनेकान्त शुं बतावे छे?३०४देवगतिनी व्यवस्था संबंधी जाणवा
शास्त्रोना अर्थ करवानी पद्धति३०प योग्य विगतोनुं कोष्ठक३०७-३१०
अध्याय पांचमोः पा. ३११ थी ३८९

सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं

भूमिका३११र०-र१ जीवोनो उपकार तथा काळद्रव्यनो
चार अजीवकाय तत्त्वोनुं वर्णन३१र उपकार सूत्र-१७ थी रर
ते अजीवकाय शुं छे? तेनुं वर्णन३१३ सुधीनो सिद्धांत३३२
द्रव्यमां जीवनी गणना३१३र३-र४-रपपुद्गलनां लक्षणो,
पुद्गल सिवायनां द्रव्योनी विशेषता३१४ पर्यायो अने भेदो३३र-३६
पुद्गल द्रव्यनुं रूपीपणुं३१६र६-र७-र८स्कंधोनी तथा अणुनी
धर्म, अधर्म अने आकाश-ए त्रणे उत्पत्तिनुं कारण३३८
द्रव्योनी संख्या३१७र९द्रव्योनुं सामान्य लक्षण३३९
ते त्रण द्रव्योनुं गमनरहितपणुं३१७३०सत्नुं लक्षण३४१
८-९-१०धर्मादि पांच द्रव्योना प्रदेशोनीउत्पाद-व्यय-ध्रुवनुं स्वरूप३४र
संख्या३१८-१९अज्ञानीना विचार अने तेने
११अणु अप्रदेशी छे३र० सत्यमार्गनो उपदेश३४३-४प
द्रव्योनुं अनेकांतस्वरूप३र०३१नित्यनुं लक्षण३४प
अनेकांतमां संशय नथी पण बन्ने३रएक वस्तुमां बे विरुद्धधर्मो केवी रीते
रहे
पक्ष निश्चित छे३२२ छे तेनो खुलासो३४प
द्रव्यपरमाणु तथा भावपरमाणुनोअर्पित-अनर्पित कथनद्वारा
बीजो अर्थ३२२ अनेकान्तस्वरूप अने तेना द्रष्टांतो३४६
१रसमस्त द्रव्योने रहेवानुं स्थान३र३अनेकान्तनुं प्रयोजन३४९
१३-१६धर्म, अधर्म, पुद्गल अने जीवनाएक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कांई पण करी
अवगाहनुं वर्णन३र४-र६ शके-ए मान्यतामां आवता
१७धर्म अने अधर्म द्रव्योनो जीव-पुद्गल दोषोनुं वर्णन३४९
साथेनो विशेष संबंध३२७संकर, व्यतिकर, अधिकरण,
१८आकाशनो बीजा द्रव्यो साथेनो परस्पराश्रय, संशय, अनवस्था,
निमित्त-नैमित्तिक संबंध३२८ अप्रतिपत्ति, विरोध अने अभाव ए
१९पुद्गल द्रव्यनो जीव साथे नव दोषनुं वर्णन३प०-३पर
निमित्त-नैमित्तिक संबंध३२९अर्पित अने अनर्पितनी
र०जीवद्रव्यनो पुद्गलनी साथे (मुख्य अने गौणनी)
निमित्त-नैमित्तिक संबंध३२९ विशेष समजण३प२

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[४९]

सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं ३३परमाणुओमां बंध थवानुं कारण३परउपादान-निमित्तसंबंधी सिद्धांत३६८ ३४-३पपरमाणुओमां बंध क्यारेते सिद्धांतना आधारे जीव-पुद्गल

थतो नथी?३प३ सिवायना चार द्रव्योनी सिद्धि३६९

३६बंध क्यारे थाय छे?३पपछ द्रव्योना होवापणानी अन्य३७३ ३७बंध थतां नवी अवस्था केवी प्रकारे सिद्धि

थाय छे?३प६छ द्रव्यो विषे केटलीक माहिती३७प

३८द्रव्यनुं अन्य लक्षण३प६टोपी उपरथी छ द्रव्योनी सिद्धि३७६

गुण अने पर्यायनी व्याख्या३प६-प७मनुष्यशरीर उपरथी छ द्रव्योनी

३९-४०काळद्रव्यनुं वर्णन३प७ सिद्धि३७७ ४१‘गुण’नुं लक्षण३प८कर्मो उपरथी छ द्रव्योनी सिद्धि३७९ ४र‘पर्याय’नुं लक्षण३प९द्रव्योनी स्वतंत्रता३७९

आ सूत्रनो सिद्धांत३६०उत्पाद-व्यय-ध्रुव३७९
उपसंहारः ३६० थी ३८८द्रव्यनी शक्ति (-गुण)३८०
पांचमा अध्यायमां लेवामां आवेलाछ सामान्यगुण३८०-३८१
विषयो (उपसंहार)३६०छ कारक३८१
छए द्रव्योने लागु पडतुं स्वरूप३६०लघु जैन सिद्धांत प्रवेशिका
जीवनुं स्वरूप३६१ प्रश्न नं. १२६ थी १३६३८१-३८७
अजीव द्रव्योनुं स्वरूप३६१कारण-कार्य उपादान-निमित्तना
स्याद्वाद सिद्धांत३६३ सात दोहा३८३-३८७
अस्तिकाय३६४निमित्तकर्तानुं वजन केटलुं३८७
जीव अने पुद्गल द्रव्यनी सिद्धि३६४छ द्रव्यमांथी प्रयोजनभूत३८७
अध्याय छठ्ठोः पा. ३८९ थी ४३७

सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं

भूमिका३८९आस्रवमां शुभ अने अशुभ एवा
सात तत्त्वोनी सिद्धि३८९ भेद शा माटे?३९६
सात तत्त्वोनुं प्रयोजन३९०शुभ के अशुभ बन्ने भावोथी सात
तत्त्वनी श्रद्धा क्यारे थई कहेवाय?३९१ के आठ कर्मो बंधाय छे छतां अहीं

योगना भेदोनुं स्वरूप३९२ तेम केम कह्युं नथी?३९७ आस्रवनुं स्वरूप३९३शुभ-अशुभ कर्मो बंधावाना कारणे योगना निमित्तथी आस्रवना शुभ-अशुभयोग एवा भेद नथी३९७

[पुण्य पाप-एवा बे] भेदो३९पशुभभावथी पापनी निर्जरा थती नथी३९७
पुण्य आस्रव अने पाप आस्रव त्रीजा सूत्रनो सिद्धांत३९८
संबंधमां थती विपरीतता३९पआस्रव सर्व संसारीने समान फळनो
शुभयोग तथा अशुभयोगना अर्थो३९६ हेतु थाय छे के विशेषता छे?३९८

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[प०]

सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं

कर्म बंधना चार प्रकार३९९आ सूत्रनो सिद्धांत४१८
सांपरायिक आस्रवना ३९ भेद३९९१४चारित्रमोहनीयना आस्रवनुं कारण४१९
सम्यक्त्वादि पचीस प्रकारनी१पनरकायुना आस्रवनुं कारण४२१
क्रियानुं वर्णन४००आरंभ-परिग्रहनी व्याख्या४२१

आस्रवमां विशेषता१६तिर्यंचायुना आस्रवनुं कारण४२२

(-हीनाधिकता) नुं कारण४०३१७-१८मनुष्यायुना आस्रवनुं कारण४२३-२प

आस्रवनां अधिकरणना भेद४०३१९बधा आयुओना आस्रवनुं कारण४२प जीव-अधिकरणना भेद४०४२०-२१देवायुना आस्रवनुं कारण४२६-२७

अनंतानुबंधी आदि चार२२अशुभ नामकर्मना आस्रवनुं कारण४र७
प्रकारना कषायनी व्याख्या४०४२३शुभ नामकर्मना आस्रवनुं कारण४२८

अजीव-अधिकरण आस्रवना भेदो४०प२४तीर्थंकर नामकर्मना १०ज्ञानावरण अने दर्शनावरणना आस्रवनुं कारण४२९

आस्रवनुं कारण४०६दर्शनविशुद्धि आदि सोळ

११असातावेदनीयना आस्रवनुं कारण४०८ भावनानुं स्वरूप४२९-४३३ १२सातावेदनीयना आस्रवनुं कारण४१०तीर्थंकरोना त्रण प्रकार४३३ १३अनंत संसारनुं कारण जेअरिहंतोना सात प्रकार४३३

दर्शनमोह तेना आस्रवनुं कारण४१२आ सूत्रनो सिद्धांत४३४
केवळी भगवानना अवर्णवादनुं स्वरूप४१३२प-२६गोत्र कर्मना आस्रवनुं
श्रुतना अवर्णवादनुं स्वरूप४१६ कारण४३४-३प
संघना अवर्णवादनुं स्वरूप४१७२७अंतराय कर्मना
धर्मना अवर्णवादनुं स्वरूप४१७ आस्रवनुं कारण४३प
देवना अवर्णवादनुं स्वरूप४१८उपसंहार४३६-४३७
अध्याय सातमोः पा. ४३९ थी ४९०
सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं
भूमिका४३९व्रतना भेद४४८

व्रतनुं लक्षण४४०आ सूत्रमां कहेला त्यागनुं स्वरूप

आस्रवतत्त्वनी भूल अने ते अने ते संबंधी द्रष्टांतो४४९
भूल टाळवा माटे खासव्रतोमां स्थिरतानां कारणो४प१
शास्त्राधारे प्रयोजन भूतअहिंसाव्रतनी पांच भावनाओ४प१
स्पष्टीकरण४४१-४४८सत्यव्रतनी पांच भावनाओ४पर
आ सूत्र सिद्धांत४४८अचौर्यव्रतनी पांच भावनाओ४प३

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[प१]

सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं ब्रह्मचर्यव्रतनी पांच भावनाओ४प४२१अणुव्रतना सहायक सात शीलव्रतो४७२ परिग्रहत्यागव्रतनी पांच भावनाओ४प४ त्रण गुणव्रत अने चार ९-१० हिंसा वगेरेथी विरक्त थवा शिक्षाव्रतनुं स्वरूप४७३

माटेनी भावना४पपलक्षमां राखवा लायक सिद्धांत४७४

११व्रतधारी सम्यग्द्रष्टिनी भावना४प७२२व्रतीने संल्लेखना धारण १रव्रतोनी रक्षा अर्थे सम्यग्द्रष्टि करवानो उपदेश४७४

विशेष भावना४प८२३सम्यग्दर्शनना पांच अतिचारोनुं
जगतनो स्वभाव४प८ स्वरूप४७प
शरीरनो स्वभाव४६०शंका, कांक्षा आदि पांच अतिचारोनुं
संवेग तथा वैराग्यनुं स्वरूप४६१ स्वरूप४७६
जीव न होय त्यारे शरीर केम२४-३६पांचव्रत तथा सात शील ए
चालतुं नथी तेनो खुलासो४६२ दरेकना पांच पांच अतिचारोनुं

१३हिंसा-पापनुं लक्षण४६३ वर्णन४७७-४८२

तेरमा सूत्रनो सिद्धांत४६४३७संल्लेखनाना पांच अतिचार४८२

१४असत्यनुं स्वरूप४६प३८दाननुं स्वरूप४८२

सत्यनुं परमार्थ स्वरूप४६६३९दानमां विशेषता४८प

१पस्तेय (-चोरी) नुं स्वरूप४६७नवधा भक्तिनुं स्वरूप४८प १६कुशील (-अब्रह्मचर्य) नुं स्वरूप४६८द्रव्यविशेष, दातृविशेष अने पात्र- १७परिग्रहनुं स्वरूप४६९ विशेषनुं स्वरूप४८६ १८व्रतीनी विशेषता४६९दान संबंधी जाणवा योग्य विशेष४८७

द्रव्यलिंगीनुं अन्यथापणुं४७०उपसंहार
अढारमा सूत्रनो सिद्धांत४७१अहिंसादि व्रतो आस्रव छे.

१९व्रतीना भेद४७२संवर-निर्जरा नथी.४८७ थी ४९०

सागारनुं लक्षण४७२
अध्याय आठमो ४९१ थी प१९

सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं

भूमिका४९१मिथ्यादर्शनना बे प्रकार अने
बंधनां कारणो४९१ तेनी व्याख्या४९६
बंधनां कारणो टाळवानो क्रम४९२ गृहीतमिथ्यात्वना
(एकांतमिथ्यात्वादि) पांच भेदोनुं
स्वरूप
४९७
बंधना पांच कारणोना अंतरंग भाव
ओळखवा जोईए
४९२अविरति, प्रमाद अने कषायनुं
मिथ्यादर्शननुं स्वरूप४९३ स्वरूपप००
मिथ्यादर्शननी टूंकी व्याख्याओ४९४योगनुं स्वरूपप००

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[प२]

सूत्र नं.विषयपानुं सूत्र नं.विषयपानुं

क्या गुणस्थाने केटला प्रकारना बंधप-१३ज्ञानावरणादि आठ कर्मना पेटा
होय?प०१भेदोनुं वर्णनप०६-१२
महापाप-मिथ्यात्वप०११४ थी २०ज्ञानावरणादि आठ कर्मोनी
आ सूत्रनो सिद्धांतप०१स्थितिनुं वर्णनप१३

बंधनुं लक्षणप०१२१-२२अनुभाग बंधनुं वर्णनप१४

जीव अने पुद्गलना निमित्त-नैमित्तिक२३फळ आप्या पछी कर्मोनुं शुं थाय छे?प१४
संबंधनुं स्पष्टीकरणप०२निर्जराना चार प्रकारोनुं वर्णनप१प

बंधना चार भेद अने तेनी व्याख्याप०४२४प्रदेशबंधनुं स्वरूपप१प प्रकृतिबंधना आठ मूळ भेदो२प-२६पुण्यप्रकृतिओनां तथा पाप-

(-ज्ञानावरणादि) नुं वर्णनप०पप्रकृतिओनां नामप१६-प१७
उपसंहारप१८-प१९
अध्याय नवमोः पा. प२१ थी ६०४
भूमिका प२१ थीपरिषह सहन करवानो उपदेशप४६
संवर-निर्जरा संबंधी लक्षमां राखवादस-अगीयार अने बारमा
योग्य केटलीक बाबतोप२४गुणस्थाने परिषह संबंधी
निर्जरानुं स्वरूपप२६केटलोक खुलासोप४७

संवरनुं लक्षणप२८परिषहनुं स्वरूप अने संवरनां कारणोप३०ते संबंधी थती भूलप४८

गुप्तिनुं स्वरूपप३०परिषहना बावीस प्रकार

निर्जरा अने संवरनुं कारणप३१अने तेनुं स्वरूपप४९-पप२

तपनुं स्वरूप अने ते संबंधीनवमा सूत्रनो सिद्धांतपप३
थती भूलो
तपना फळ संबंधी खुलासो
प३२
प३३
१०दसमाथी बारमा गुणस्थान

गुप्तिनुं लक्षण अने भेदप३४सुधीना परिषहोनुं वर्णनपपप समितिनुं स्वरूप अने११तेरमा गुणस्थान परिषहोपप६

तेना पांच भेदोप३प-प३७केवळी भगवानने आहार होय नहि
धर्मनुं स्वरूप अने तेते संबंधी केटलाक खुलासापप८
संबंधी भूलप३९कर्मसिद्धांत प्रमाणे केवळीने

उत्तमक्षमादि दश धर्मअन्नाहार होय ज नहिप६०

अने तेनुं स्वरूपप४०सूत्र ६ थी १० नो सिद्धांत अने

अनित्यादि बार अनुप्रेक्षासूत्र ८ साथे संबंधप६१

अने तेनुं स्वरूपप४१-प४६१२छठ्ठाथी नवमा गुणस्थान
सुधीना परिषहो
प६२

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[प३]

सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं १३-१६क्या कर्मना उदयथी२पसम्यक्स्वाध्यायतपना पांच भेदप७८

क्या क्या परिषहो थाय छे२६सम्यक्व्युत्सर्गतपना बे भेदप७९
तेनुं वर्णनप६२-प६प २७सम्यक्ध्यानतपनुं लक्षणप७९

१७एक जीवने एक साथे२८ध्यानना चार भेदप८१

थता परिषहोनी संख्याप६प२९मोक्षना कारणरूप ध्यानप८१

१८चारित्रना सामायिकादि पांच३०-३३ आर्त्तध्यानना चार

प्रकारो अने तेनी व्याख्याप६पप्रकारोनुं वर्णनप८२
छठ्ठा गुणस्थाननी दशाप६७३४गुणस्थान अपेक्षाए
चारित्रनुं स्वरूपप६७आर्त्तध्यानना स्वामीप८२
चारित्रमां भेद शा माटे बताव्या?प६७३परौद्रध्यानना चार भेद
सामायिकनुं स्वरूपप६८तथा तेना स्वामीप८३
व्रत अने चारित्र वच्चे तफावतप६९३६धर्मध्यानना चार भेदप८४
निर्जरातत्त्वनुं वर्णन३७-३८शुक्लध्यानना स्वामीप८प
भूमिकाप६९३९शुक्लध्यानना चार भेदप८६
निर्जराना कारणो संबंधी४०योग अपेक्षाए शुक्लध्यानना स्वामीप८६
थती भूलो अने तेनुं निराकरणप७०केवळीना मनोयोगसंबंधी स्पष्टीकरणप८७

१९बाह्य तपना छ प्रकारोप७०केवळीने बे प्रकारना वचनयोगप८७

सम्यक्अनशन आदिक्षपक तथा उपशमक जीवोने चारे
छ प्रकारनुं स्वरूपप७१मनोयोग कई रीते छे?प८८
सम्यक्तपनी व्याख्याप७२क्षपक तथा उपशमक जीवोना वचन
तपना भेदो शा माटे?प७३योग संबंधीप८८

२०आभ्यंतर तपना छ प्रकारोप७३४१-४२ शुक्लध्यानना पहेला बे भेदोनी

सम्यक् प्रायश्चित्तादि छविशेषताप८९
प्रकारोनी व्याख्याप७४४३वितर्कनुं लक्षणप८९

२१आभ्यंतर तपना पेटा भेदोप७४४४विचारनुं लक्षणप८९ २२सम्यक्प्रायश्चित्त तपना नव भेदोप७पयोगसंक्रान्ति वगेरेनुं स्वरूपप९०

निश्चयप्रायश्चित्तनुं स्वरूपप७पअनुप्रेक्षा तथा ध्यानप९१
निश्चयप्रतिक्रमणनुं स्वरूपप७६व्रत, गुप्ति, समिति धर्म, अनुप्रेक्षा,
निश्चयआलोचनानुं स्वरूपप७६परिषहजय, बार प्रकारना तप वगेरे

२३सम्यक्विनय तपना चार भेदप७६संबंधी खास लक्षमां राखवा लायक

ज्ञानविनयादिनुं स्वरूप
निश्चयविनयनुं स्वरूप
प७६
प७७
स्पष्टीकरणप९२-प९३

२४सम्यक्वैयावृत्यतपना दस भेदप७७४पपात्र अपेक्षाए निर्जरामां थती

दस प्रकारना मुनिओनी व्याख्याप७७न्यूनाधिकताप९४
संघना चार भेद तथा तेना अर्थप७८आ सूत्रनो सिद्धांतप९६
४६निर्ग्रंथ (-साधुओ) ना भेदप९६

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[प४]

सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं

पुलाक, बकुश वगेरे मुनिओनीउपसंहारः ६०० थी ६०४
व्याख्याप९६-९७‘जिन’ना स्वरूप संबंधी स्पष्टीकरण६००
परमार्थनिर्ग्रंथ अने व्यवहारर्निर्ग्रंथप९७‘जिनधर्म’६०१
पुलाकमुनि संबंधी केटलाक खुलासापरिसोढव्या’ शब्द उपरथी परिषह

४७पुलाकादि मुनिओमां आठ प्रकारेसंबंधी स्पष्टीकरण६०३

विशेषताप९८-९९बकुशमुनिने पण वस्त्र होतां नथी
-ते बाबत स्पष्टीकरण
६०३
अध्याय दसमोः पा ६०प थी ६४२

सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं

भूमिका६०पबंध ते जीवनो स्वाभाविक धर्म नथी६२३

केवळज्ञाननी उत्पत्तिनुं कारण६०पसिद्धोनुं लोकाग्रथी स्थानांतर थतुं नथी६२४

‘केवळी’ कई रीते कहेवाय छे तेनोअधिक जीवो थोडा क्षेत्रमां रहे छे.६२४
खुलासो६०६सिद्ध जीवोने आकार होय छे६२प
भावमोक्ष अने द्रव्यमोक्ष६०६-०७परिशिष्ट १. पा. ६१६ थी ६३७
केवळज्ञान थतां ज मोक्ष केम थतो
नथी?
६०८

मोक्षनुं कारण अने लक्षण६०८

[मोक्षशास्त्रना आधारे श्री
अमृतचंद्रसूरिए जे तत्त्वार्थसार शास्त्र
रच्युं छे, तेना उपसंहारमां २३ गाथा
द्वारा आपेलो ग्रंथनो सारांश
]
मोक्ष यत्नथी साध्य छे६१०गाथा (१) ग्रंथनो सारांश६२६

३-४ मोक्ष दशामां क्या क्या भावोनो(र) मोक्षमार्गनुं बे प्रकारे कथन६२७

अभाव थाय छे?६१२मोक्षमार्ग बे नथी६२७

मुक्त जीवोनुं स्थान६१२(३-४) निश्चय तथा व्यवहार मुक्त जीवना ऊर्ध्वगमननुं कारण६१३मोक्षमार्गनुं स्वरूप६२७-२८ पूर्वप्रयोगादि चार प्रकारनां द्रष्टांतो६१३(प-६) व्यवहारी तथा निश्चयी मुक्त जीवो लोकाग्रथी आगळ नहि६१४मुनिनुं स्वरूप६२८

जवानुं कारण(७) निश्चयीनुं अभेदसमर्थन६२८

मुक्त जीवोमां व्यवहारनये भेद६१प(८-२०) निश्चयरत्नत्रयनुं कर्ता, कर्म

सिद्धोमां क्षेत्र वगेरे बार तथा बीजावगेरे साथे अभेदपणुं६३०
११ भेदनुं वर्णन६१प-६१८(२१) निश्चय व्यवहार
उपसंहारः पा. ६१८ थी ६२पमानवानुं तात्पर्य६३०-३३
मोक्ष तत्त्वनी मान्यता संबंधी थती(२२) तत्त्वार्थसार ग्रंथनुं प्रयोजन६३४
भूल अने तेनुं निराकरण६१८(२३) ग्रंथना कर्ता पुद्गलो छे,
अनादि कर्मबंध नष्ट थवानी सिद्धि
आत्माने बंधन छे तेनी सिद्धि
६१९
६१२
आचार्य नथी६३४-६३प
मुक्त थया पछी फरी बंध के जन्म
न थाय
६२२

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[पप]

सूत्र नं.विषयपानुंसूत्र नं.विषयपानुं

परिशिष्ट–२ ६३६–६३७अध्यात्मनुं रहस्य६३९
[स्वतंत्रतानो ढंढेरो]वस्तुस्वभाव अने तेमां
द्रव्यनी लायकातकई तरफ ढळवुं६४०
संबंधी स्पष्टीकरण६३६-६३७परिशिष्ट–४ पा. ६४१ थी ६४२
परिशिष्ट–३ पा. ६३८ थी ६४०शास्त्रनो टूंकसार६४१-६४२
[साधक जीवनी द्रष्टिनुं सळंग
धोरण]कक्कवार सूचिपत्रक६४३ थी६प४

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श्रीसर्वज्ञवीतरागाय नमः
शास्त्र–स्वाध्यायका प्रारम्भिक मंगलाचरण
*
ओंकारं बिन्दुसंयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिनः।
कामदं मोक्षदं चैव
काराय नमो नमः।। १ ।।
अविरलशब्दघनौघप्रक्षालितसकलभूतलकलङ्का।
मुनिभिरुपासिततीर्था सरस्वती हरतु नो दुरितान्।। २ ।।
अज्ञानतिमिरान्धानां ज्ञानाञ्जनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।। ३ ।।
।। श्रीपरमगुरवे नमः, परम्पराचार्यगुरवे नमः ।।

सकलकलुषविध्वंशकं, श्रेयसां परिवर्धकं, धर्मसम्बन्धकं,

भव्यजीवमनःप्रतिबोधकारकं, पुण्यप्रकाशकं पापप्रणाशकमिदं
शास्त्रं श्री मोक्षशास्त्र नामधेयं, अस्य मूलग्रंथकर्तारः
श्रीसर्वज्ञदेवास्तदुत्तरग्रंथकर्तारः श्रीगणधरदेवाः प्रतिगणधरदेवा–
स्तेषां वचनानुसारमासाद्य आचार्यश्रीउमास्वामीआचार्यदेव–
विरचितं, श्रोतारः सावधानतया श्रृण्वन्तु।।
मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमो गणी।
मंगलं कुन्दकुन्दार्यो जैनधर्मोऽस्तु मंगलम्।। १ ।।
सर्वमङ्गलमांगल्यं सर्वकल्याणकारकं।
प्रधानं सर्वधर्माणां जैनं जयतु
शासनम्।। २ ।।

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श्री सर्वज्ञ वीतरागाय नमः
श्री सद्गुरुदेवाय नमः
श्री उमास्वामी विरचित
मोक्षशास्त्र–गुजराती टीका
प्रथम अध्याय
(मंगलाचरण)
मोक्षमार्गस्य नेतार भेत्तारं कर्मभूभृताम्।
ज्ञातारं विश्चतत्त्वानां वन्दे तद्गुणलब्धये।।

अर्थः– मोक्षमार्गना प्रवर्तावनार अर्थात् चलावनार, कर्मरूपी पर्वतोना भेदनार अर्थात् नाश करनार. विश्वना अर्थात् बधां तत्त्वोना जाणनार तेने ते गुणोनी प्राप्ति माटे हुं प्रणाम करुं छुं–वंदन करुं छुं.

संक्षिप्त अवलोकन

(१) आ शास्त्र शरू करतां पहेलां आ शास्त्रनो विषय शुं छे ते टूंकमां जणाववानी जरूर छे.

(र) आचार्य भगवाने आ शास्त्रनुं नाम ‘मोक्षशास्त्र’ अथवा तत्त्वार्थसूत्र राख्युं छे. जगतना जीवो अनंत प्रकारना दुःखो भोगवी रह्या छे, ते दुःखोथी हंमेशने माटे मुक्त थवा एटले के अविनाशी सुख मेळववा तेओ अहर्निश उपायो करी रह्या छे; पण तेओना ते उपायो खोटा होवाथी जीवोने दुःख मटतुं नथी, एक के बीजा प्रकारे दुःख चाल्या ज करे छे. दुःखोनी परंपराथी जीवो शी रीते मुक्त थाय तेनो उपाय अने तेनुं वीतरागी विज्ञान आ शास्त्रमां बताववामां आव्यां छे तेथी तेनुं नाम ‘मोक्षशास्त्र’ राखवामां आव्युं छे मूळभूत भूल विना दुःख होय नहि अने ते भूल टळतां सुख थया वगर रहे ज नहि एवो अबाधित सिद्धांत छे. वस्तुनुं साचुं स्वरूप समज्या विना ए भूल टळे नहि; तेथी वस्तुनुं साचुं स्वरूप


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] [मोक्षशास्त्र आ शास्त्रमां समजाववामां आव्युं होवाथी तेनुं नाम तत्त्वार्थसूत्र पण आपवामां आव्युं छे.

(३) वस्तुना साचा स्वरूप संबंधी जीवने जो खोटी मान्यता (Wrong

Belief) न होय तो ज्ञानमां भूल थाय नहि. ज्यां मान्यता साची होय त्यां ज्ञान साचुं ज होय. साची मान्यता अने साचा ज्ञानपूर्वक जे कांई वर्तन थाय ते यथार्थ ज होय; तेथी साची मान्यता अने साचा ज्ञानपूर्वक थता साचा वर्तन द्वारा ज जीवो दुःखथी मुक्त थई शके छे ए सिद्धांत आचार्य भगवाने आ शास्त्रनी शरूआत करतां पहेला अध्यायना पहेला ज सूत्रमां जणाव्यो छे.

(४) ‘पोते कोण छे’ ते संबंधी जगतना जीवोनी महान भूल चाली आवे छे. घणा जीवो शरीरने पोतानुं स्वरूप माने छे, तेथी शरीरनी संभाळ राखवा तेओ सतत् प्रयत्न अनेक प्रकारे कर्या करे छे. शरीरने जीव पोतानुं माने छे तेथी शरीरनी सगवड जे चेतन के जड पदार्थो तरफथी मळे छे एम ते माने ते तरफ तेने राग थाय ज; अने जे चेतन के जड पदार्थो तरफथी अगवड मळे छे एम ते माने ते तरफ तेने द्वेष थाय ज. जीवनी आ मान्यताथी जीवने आकुळता रह्या ज करे छे.

(प) जीवनी आ महान भूलने शास्त्रमां ‘मिथ्यादर्शन’ कहेवामां आवे छे; ज्यां मिथ्या मान्यता होय त्यां ज्ञान अने चारित्र पण मिथ्या होय ज; तेथी मिथ्यादर्शनरूप महान भूलने महापाप पण कहेवामां आवे छे. मिथ्यादर्शन ए महान भूल छे अने ते सर्व दुःखनुं महा बळवान मूळियुं छे, एवुं जीवोने लक्ष नहि होवाथी ते लक्ष कराववा अने ते भूल टाळी जीवो अविनाशी सुख तरफ पगलां मांडे ते हेतुथी आचार्य भगवाने आ शास्त्रमां पहेलो ज शब्द ‘सम्यग्दर्शन’ वापर्यो छे. सम्यग्दर्शन प्रगट थतां ज ते ज समये ज्ञान साचुं थाय छे तेथी बीजो शब्द ‘सम्यग्ज्ञान’ वापर्यो छे; अने सम्यग्दर्शन-ज्ञानपूर्वक ज सम्यक्चारित्र होई शके तेथी ‘सम्यक्चारित्र’ ए शब्द त्रीजो मूक्यो छे. ए प्रमाणे त्रण शब्दो वापरतां ‘साचुं सुख मेळववाना रस्ता त्रण छे’ एम जीवो न मानी बेसे माटे ए त्रणेनी एकता ए ज मोक्षमार्ग छे एम पहेला ज सूत्रमां जणावी दीधुं छे.

(६) जीवने साचुं सुख जोईतुं होय तो प्रथम सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं ज जोईए; जगतमां कया कया पदार्थो छे, तेनुं स्वरूप शुं छे, तेनां कार्य-क्षेत्र शुं छे, जीव शुं छे, जीव केम दुःखी थाय छे-तेनी यथार्थ समजण होय तो ज सम्यग्दर्शन प्रगट थाय; तेथी सात तत्त्वो द्वारा आचार्य भगवाने वस्तुस्वरूप दस अध्यायोमां जणाव्युं छे.

(७) आ शास्त्रना दस अध्यायोमां नीचेना विषयो लेवामां आव्या छेः-