Natak Samaysar (Gujarati).

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પદ્યોની વર્ણાનુક્રમણિકા ૪૨૯
પદ્ય
પૃષ્ઠ
પદ્ય
પૃષ્ઠ
चारितमोहकी च्यारि मिथ्ंयातकी
३७८ जगत चक्षु आनंदमय
३०५
चित कौरा करि धरमधर
४१८ जगतमैं डोलैं जगवासी नररूप
२०१
चित प्रभावना भावजुत
३७६ जगमैं अनादिकौ अग्यानी कहै
६९
चिदानंद चेतन अलख
२० जगवासी अग्यानी त्रिकाल
२४७
चित्रसारी न्यारी परजंक न्यारौ
१३९ जगवासी जीवनिसौं गुरु उपदेस
१३७
चिनमुद्राधारी ध्रुव धर्म
२४८ जगी सुध्द समकित कला
३५२
चेतन अंक जीव लखि लीन्हा
२५० जथा अंधके कंधपर
२८६
चेतन करता भोगता
२५५ जदपि समल विवहारसौं
४०
चेतनजी तुम जागि विलोकहु
३३८ जब चेतन संभारि निज पौरुष
५८
चेतन जीव अजीव अचेतन
६२ जब जाकौ जैसौ उदै
१७७
चेतन मंडित अंग अखंडित
२२३ जब जीव सोवै तब समुझै सुपन
१४०
चेतनरूप अनूप अमूरति
जब यह वचन प्रगट सुन्यौ
२५७
चेतन लक्षन आतमा, आतम
२२० जबलग ग्यान चेतना न्यारी
२८७
चेतन लच्छन आतमा, जड
१९६ जबलग जीव सुद्ध वस्तुकौं
१७९
चेतनवंत अनंत गुन परजै
१४
जब सुबोध घटमैं परगासै
३०९
चेतनवंत अनंत गुन सहित
५७ जबहीतैं चेतन विभावसौं उलटि
२९६
चौदह गुनथानक दसा
४०६ जम कृतांत अंतक त्रिदस
२१
च्यारि खिपै त्रय उपशमै
३८० जमकौसौ भ्राता दुखदाता है
१५९
जहां काहू जीवको असाता उदै
४०५
छपकश्रेनी आठैं नवैं
४०१ जहां ग्यान किरिया मिलै
२८६
छयउपसम बरतै त्रिविधि
३८० जहां च्यारि परकिति खिपहि
३८१
छय–उपसम वेदक खिपक
३८१ जहां तहां जिनवानी फैली
४१८
छिनमैं प्रवीन छिनहीमैं
२०५ जहां न भाव उलटि अध आवै
४००
छीनमोह पूरन भयौ
४०२ जहां न रागादिक दसा
११४
छै षट वेदै एक जौ
३८१ जहां परमातम कलाकौ परकास
१७३
छंद सबद अछर अरथ
४१३ जहां प्रमाद दसा नहि व्यापै
२३४
जहांलौ जगतके निवासी जीव
१८३
जगतके प्रानी जीति वै रह्यो
४०६ जहां सुद्ध ग्यानकी कला उदोत
२८४