Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 39.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
शुद्धभाव अधिकार
[ ७७
णो खलु सहावठाणा णो माणवमाणभावठाणा वा
णो हरिसभावठाणा णो जीवस्साहरिस्सठाणा वा ।।9।।
न खलु स्वभावस्थानानि न मानापमानभावस्थानानि वा
न हर्षभावस्थानानि न जीवस्याहर्षस्थानानि वा ।।9।।

निर्विकल्पतत्त्वस्वरूपाख्यानमेतत

त्रिकालनिरुपाधिस्वरूपस्य शुद्धजीवास्तिकायस्य न खलु विभावस्वभावस्थानानि प्रशस्ताप्रशस्तसमस्तमोहरागद्वेषाभावान्न च मानापमानहेतुभूतकर्मोदयस्थानानि न खलु शुभपरिणतेरभावाच्छुभकर्म, शुभकर्माभावान्न संसारसुखं, संसारसुखस्याभावान्न हर्षस्थानानि न चाशुभपरिणतेरभावादशुभकर्म, अशुभकर्माभावान्न दुःखं, दुःखाभावान्न चाहर्षस्थानानि चेति

जीवने न स्थान स्वभावनां, मानापमान तणां नहीं,
जीवने न स्थानो हर्षनां, स्थानो अहर्ष तणां नहीं. ३९.

अन्वयार्थः[जीवस्य] जीवने [खलु] खरेखर [न स्वभावस्थानानि] स्वभावस्थानो (विभावस्वभावनां स्थानो) नथी, [न मानापमानभावस्थानानि वा] मानापमानभावनां स्थानो नथी, [न हर्षभावस्थानानि] हर्षभावनां स्थानो नथी [वा] के [न अहर्षस्थानानि] अहर्षनां स्थानो नथी.

टीकाःआ, निर्विकल्प तत्त्वना स्वरूपनुं कथन छे.

त्रिकाळ-निरुपाधि जेनुं स्वरूप छे एवा शुद्ध जीवास्तिकायने खरेखर विभाव- स्वभावस्थानो (विभावरूप स्वभावनां स्थानो) नथी; (शुद्ध जीवास्तिकायने) प्रशस्त के अप्रशस्त समस्त मोह-राग-द्वेषनो अभाव होवाथी मान-अपमानना हेतुभूत कर्मोदयनां स्थानो नथी; (शुद्ध जीवास्तिकायने) शुभ परिणतिनो अभाव होवाथी शुभ कर्म नथी, शुभ कर्मनो अभाव होवाथी संसारसुख नथी, संसारसुखनो अभाव होवाथी हर्षस्थानो नथी; वळी (शुद्ध जीवास्तिकायने) अशुभ परिणतिनो अभाव होवाथी अशुभ कर्म नथी, अशुभ कर्मनो अभाव होवाथी दुःख नथी, दुःखनो अभाव होवाथी अहर्षस्थानो नथी.

[हवे ३९मी गाथानी टीका पूर्ण करतां टीकाकार मुनिराज श्लोक कहे छेः]