Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
शुद्धभाव अधिकार
[ ८१

चतुर्णां विभावस्वभावानां स्वरूपकथनद्वारेण पंचमभावस्वरूपाख्यानमेतत

कर्मणां क्षये भवः क्षायिकभावः कर्मणां क्षयोपशमे भवः क्षायोपशमिकभावः कर्मणामुदये भवः औदयिकभावः कर्मणामुपशमे भवः औपशमिक भावः सकल- कर्मोपाधिविनिर्मुक्त : परिणामे भवः पारिणामिकभावः एषु पंचसु तावदौपशमिकभावो द्विविधः, क्षायिकभावश्च नवविधः, क्षायोपशमिकभावोऽष्टादशभेदः, औदयिकभाव एक- विंशतिभेदः, पारिणामिकभावस्त्रिभेदः अथौपशमिकभावस्य उपशमसम्यक्त्वम् उपशम- चारित्रम् च क्षायिकभावस्य क्षायिकसम्यक्त्वं, यथाख्यातचारित्रं, केवलज्ञानं केवलदर्शनं च, अन्तरायकर्मक्षयसमुपजनितदानलाभभोगोपभोगवीर्याणि चेति क्षायोपशमिकभावस्य मतिश्रुतावधिमनःपर्ययज्ञानानि चत्वारि, कुमतिकुश्रुतविभंगभेदादज्ञानानि त्रीणि,

टीकाःचार विभावस्वभावोना स्वरूपकथन द्वारा पंचमभावना स्वरूपनुं आ कथन छे.

*कर्मोना क्षये जे भाव होय ते क्षायिकभाव छे. कर्मोना क्षयोपशमे जे भाव होय ते क्षायोपशमिकभाव छे. कर्मोना उदये जे भाव होय ते औदयिकभाव छे. कर्मोना उपशमे जे भाव होय ते औपशमिकभाव छे. सकळ कर्मोपाधिथी विमुक्त एवो, परिणामे जे भाव होय ते पारिणामिकभाव छे.

आ पांच भावोमां, औपशमिकभावना बे भेद छे, क्षायिकभावना नव भेद छे, क्षायोपशमिकभावना अढार भेद छे, औदयिकभावना एकवीश भेद छे, पारिणामिकभावना त्रण भेद छे.

हवे, औपशमिकभावना बे भेद आ प्रमाणे छेः उपशमसम्यक्त्व अने उपशमचारित्र.

क्षायिकभावना नव भेद आ प्रमाणे छेः क्षायिकसम्यक्त्व, यथाख्यातचारित्र, केवळज्ञान ने केवळदर्शन, तथा अंतरायकर्मना क्षयजनित दान, लाभ, भोग, उपभोग ने वीर्य.

क्षायोपशमिकभावना अढार भेद आ प्रमाणे छेः मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान ने मनःपर्ययज्ञान एम ज्ञान चार; कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान ने विभंगज्ञान

*कर्मोना क्षये = कर्मोना क्षयमां; कर्मोना क्षयना सद्भावमां. [व्यवहारे कर्मोना क्षयनी अपेक्षा जीवना
जे भावमां आवे ते क्षायिकभाव छे.]

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