Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 61 Gatha: 43.

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नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
(स्रग्धरा)
इत्थं बुद्ध्वोपदेशं जननमृतिहरं यं जरानाशहेतुं
भक्ति प्रह्वामरेन्द्रप्रकटमुकुटसद्रत्नमालार्चितांघ्रेः
वीरात्तीर्थाधिनाथाद्दुरितमलकुलध्वांतविध्वंसदक्षं
एते संतो भवाब्धेरपरतटममी यांति सच्छीलपोताः
।।६१।।
णिद्दंडो णिद्दंद्दो णिम्ममो णिक्कलो णिरालंबो
णीरागो णिद्दोसो णिम्मूढो णिब्भयो अप्पा ।।४३।।
निर्दण्डः निर्द्वन्द्वः निर्ममः निःकलः निरालंबः
नीरागः निर्दोषः निर्मूढः निर्भयः आत्मा ।।४३।।

इह हि शुद्धात्मनः समस्तविभावाभावत्वमुक्त म्

[श्लोकार्थः] भक्तिथी नमेला देवेंद्रो मुगटनी सुंदर रत्नमाळा वडे जेमनां चरणोने प्रगट रीते पूजे छे एवा महावीर तीर्थाधिनाथ द्वारा आ संतो जन्म-जरा- मृत्युनो नाशक अने दुष्ट मळसमूहरूपी अंधकारनो ध्वंस करवामां चतुर एवो आ प्रकारनो (पूर्वोक्त) उपदेश समजीने, सत्शीलरूपी नौका वडे भवाब्धिना सामा किनारे पहोंची जाय छे. ६१.

निर्दंड ने निर्द्वंद्व, निर्मम, निःशरीर, नीराग छे,
निर्दोष, निर्भय, निरवलंबन, आतमा निर्मूढ छे. ४३.

अन्वयार्थः[आत्मा] आत्मा [निर्दण्डः] निर्दंड, [निर्द्वन्द्वः] निर्द्वंद्व, [निर्ममः] निर्मम, [निःकलः] निःशरीर, [निरालंबः] निरालंब, [नीरागः] नीराग, [निर्दोषः] निर्दोष, [निर्मूढः] निर्मूढ अने [निर्भयः] निर्भय छे.

टीकाःअहीं (आ गाथामां) खरेखर शुद्ध आत्माने समस्त विभावनो अभाव छे एम कह्युं छे.

८८ ]

१. निर्दंड = दंड रहित. (जे मनवचनकायाश्रित प्रवर्तनथी आत्मा दंडाय छे ते प्रवर्तनने दंड कहेवामां आवे छे.)