Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 69.

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नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

क्रोधः निश्चयनयेन सदा परमसमरसीभावात्मकत्वान्निर्मानः निश्चयनयेन निःशेषतो- ऽन्तर्मुखत्वान्निर्मदः उक्त प्रकारविशुद्धसहजसिद्धनित्यनिरावरणनिजकारणसमयसारस्वरूप- मुपादेयमिति

तथा चोक्तं श्रीमदमृतचन्द्रसूरिभिः
(मन्दाक्रांता)
‘‘इत्युच्छेदात्परपरिणतेः कर्तृकर्मादिभेद-
भ्रान्तिध्वंसादपि च सुचिराल्लब्धशुद्धात्मतत्त्वः
सञ्चिन्मात्रे महसि विशदे मूर्छितश्चेतनोऽयं
स्थास्यत्युद्यत्सहजमहिमा सर्वदा मुक्त एव
।।’’
तथा हि
(मन्दाक्रांता)
ज्ञानज्योतिःप्रहतदुरितध्वान्तसंघातकात्मा
नित्यानन्दाद्यतुलमहिमा सर्वदा मूर्तिमुक्त :
स्वस्मिन्नुच्चैरविचलतया जातशीलस्य मूलं
यस्तं वन्दे भवभयहरं मोक्षलक्ष्मीशमीशम्
।।9।।

होवाने लीधे निर्मद छे. उक्त प्रकारनुं (उपर कहेला प्रकारनुं), विशुद्ध सहजसिद्ध नित्य- निरावरण निज कारणसमयसारनुं स्वरूप उपादेय छे.

एवी रीते (आचार्यदेव) श्रीमद् अमृतचंद्रसूरिए (श्री प्रवचनसारनी टीकामां ८मा श्लोक द्वारा) कह्युं छे के

‘‘[श्लोकार्थः] ए रीते परपरिणतिना उच्छेद द्वारा (अर्थात् परद्रव्यरूप परिणमनना नाश द्वारा) तेम ज कर्ता, कर्म वगेरे भेदो होवानी जे भ्रांति तेना पण नाश द्वारा आखरे जेणे शुद्ध आत्मतत्त्वने उपलब्ध कर्युं छेएवो आ आत्मा, चैतन्यमात्ररूप विशद (निर्मळ) तेजमां लीन रह्यो थको, पोताना सहज (स्वाभाविक) महिमाना प्रकाशमानपणे सर्वदा मुक्त ज रहेशे.’’

वळी (४४मी गाथानी टीका पूर्ण करतां टीकाकार मुनिराज श्लोक कहे छे)ः

[श्लोकार्थः] जेणे ज्ञानज्योति वडे पापरूपी अंधकारसमूहनो नाश कर्यो छे, जे

९४ ]