Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 70 Gatha: 47.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
शुद्धभाव अधिकार
[ ९७
तथा हि
(मालिनी)
असति च सति बन्धे शुद्धजीवस्य रूपाद्
रहितमखिलमूर्तद्रव्यजालं विचित्रम्
इति जिनपतिवाक्यं वक्ति शुद्धं बुधानां
भुवनविदितमेतद्भव्य जानीहि नित्यम्
।।७०।।
जारिसिया सिद्धप्पा भवमल्लिय जीव तारिसा होंति
जरमरणजम्ममुक्का अट्ठगुणालंकिया जेण ।।४७।।
याद्रशाः सिद्धात्मानो भवमालीना जीवास्ताद्रशा भवन्ति
जरामरणजन्ममुक्ता अष्टगुणालंकृता येन ।।४७।।

शुद्धद्रव्यार्थिकनयाभिप्रायेण संसारिजीवानां मुक्त जीवानां विशेषाभावोपन्यासोयम् पोतपोताना गुणो अने पर्यायोथी युक्त सर्व द्रव्यो अत्यंत जुदे जुदां छे).’’

वळी (आ बे गाथाओनी टीका पूर्ण करतां टीकाकार मुनिराज श्लोक कहे छे)ः

[श्लोकार्थः] ‘‘बंध हो के न हो (अर्थात् बंधावस्थामां के मोक्षावस्थामां), समस्त विचित्र मूर्तद्रव्यजाळ (अनेकविध मूर्तद्रव्योनो समूह) शुद्ध जीवना रूपथी व्यतिरिक्त छे’’ एम जिनदेवनुं शुद्ध वचन बुधपुरुषोने कहे छे. आ भुवनविदितने (आ जगतप्रसिद्ध सत्यने), हे भव्य! तुं सदा जाण. ७०.

जेवा जीवो छे सिद्धिगत तेवा जीवो संसारी छे,
जेथी जनममरणादिहीन ने अष्टगुणसंयुक्त छे. ४७.

अन्वयार्थः[याद्रशाः] जेवा [सिद्धात्मानः] सिद्ध आत्माओ छे [ताद्रशाः] तेवा [भवम् आलीनाः जीवाः] भवलीन (संसारी) जीवो [भवन्ति] छे, [येन] जेथी (ते संसारी जीवो सिद्धात्माओनी माफक) [जरामरणजन्ममुक्ताः] जन्म-जरा-मरणथी रहित अने [अष्टगुणालंकृताः] आठ गुणोथी अलंकृत छे.

टीकाःशुद्धद्रव्यार्थिक नयना अभिप्राये संसारी जीवोमां अने मुक्त जीवोमां तफावत नहि होवानुं आ कथन छे.

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