Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
शुद्धभाव अधिकार
[ १०३

निश्चयनयबलेन हेया भवन्ति कुतः ? परस्वभावत्वात्, अत एव परद्रव्यं भवति सकलविभावगुणपर्यायनिर्मुक्तं शुद्धान्तस्तत्त्वस्वरूपं स्वद्रव्यमुपादेयम् अस्य खलु सहज- ज्ञानसहजदर्शनसहजचारित्रसहजपरमवीतरागसुखात्मकस्य शुद्धान्तस्तत्त्वस्वरूपस्याधारः सहज- परमपारिणामिकभावलक्षणकारणसमयसार इति

तथा चोक्तं श्रीमदमृतचन्द्रसूरिभिः
(शार्दूलविक्रीडित)
‘‘सिद्धान्तोऽयमुदात्तचित्तचरितैर्मोक्षार्थिभिः सेव्यतां
शुद्धं चिन्मयमेकमेव परमं ज्योतिः सदैवास्म्यहम्
एते ये तु समुल्लसन्ति विविधा भावाः पृथग्लक्षणा-
स्तेऽहं नास्मि यतोऽत्र ते मम परद्रव्यं समग्रा अपि
।।’’

तथा हि द्वारा उपादेयपणे कहेवामां आव्या हता परंतु शुद्धनिश्चयनयना बळे (शुद्धनिश्चयनये) तेओ हेय छे. शा कारणथी? कारण के तेओ परस्वभावो छे, अने तेथी ज परद्रव्य छे. सर्व विभावगुणपर्यायोथी रहित शुद्ध-अंतःतत्त्वस्वरूप स्वद्रव्य उपादेय छे. खरेखर सहजज्ञान- सहजदर्शन-सहजचारित्र-सहजपरमवीतराग-सुखात्मक शुद्धअंतःतत्त्वस्वरूप आ स्वद्रव्यनो आधार सहजपरमपारिणामिकभावलक्षण (सहज परम पारिणामिक भाव जेनुं लक्षण छे एवो) कारणसमयसार छे.

एवी रीते (आचार्यदेव) श्रीमद् अमृतचंद्रसूरिए (श्री समयसारनी आत्मख्याति नामनी टीकामां १८५मा श्लोक द्वारा) कह्युं छे केः

‘‘[श्लोकार्थः] जेमना चित्तनुं चरित्र उदात्त (उदार, उच्च, उज्ज्वळ) छे एवा मोक्षार्थीओ आ सिद्धांतनुं सेवन करो के‘हुं तो शुद्ध चैतन्यमय एक परम ज्योति ज सदाय छुं; अने आ जे भिन्न लक्षणवाळा विविध प्रकारना भावो प्रगट थाय छे ते हुं नथी, कारण के ते बधाय मने परद्रव्य छे.’ ’’

वळी (आ ५०मी गाथानी टीका पूर्ण करतां टीकाकार मुनिराज श्लोक कहे छे)