ववहारणयचरित्ते ववहारणयस्स होदि तवचरणं ।
अन्वयार्थः[विपरीताभिनिवेशविवर्जितश्रद्धानम् एव] विपरीत *अभिनिवेश रहित श्रद्धान ते ज [सम्यक्त्वम्] सम्यक्त्व छे; [संशयविमोहविभ्रमविवर्जितम्] संशय, विमोह ने विभ्रम रहित (ज्ञान) ते [संज्ञानम् भवति] सम्यग्ज्ञान छे.
[चलमलिनमगाढत्वविवर्जितश्रद्धानम् एव] चळता, मलिनता अने अगाढता रहित श्रद्धान ते ज [सम्यक्त्वम्] सम्यक्त्व छे; [हेयोपादेयतत्त्वानाम्] हेय अने उपादेय तत्त्वोने [अधिगमभावः] जाणवारूप भाव ते [ज्ञानम्] (सम्यक्) ज्ञान छे.
[सम्यक्त्वस्य निमित्तं] सम्यक्त्वनुं निमित्त [जिनसूत्रं] जिनसूत्र छे; [तस्य ज्ञायकाः पुरुषाः] जिनसूत्रना जाणनारा पुरुषोने [अन्तर्हेतवः] (सम्यक्त्वना) अंतरंग हेतुओ [भणिताः] कह्या छे, [दर्शनमोहस्य क्षयप्रभृतेः] कारण के तेमने दर्शनमोहना क्षयादिक छे.
[शृणु] सांभळ, [मोक्षस्य] मोक्षने माटे [सम्यक्त्वं] सम्यक्त्व होय छे, [संज्ञानं]
*अभिनिवेश = अभिप्राय; आग्रह.
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