औषध परमात्मतत्त्वनो आश्रय ज छे. ज्यां सुधी जीवनी द्रष्टि ध्रुव अचळ परमात्मतत्त्व उपर न पडतां क्षणिक भावो उपर रहे छे त्यां सुधी अनंत उपाये पण तेना कृतक औपाधिक उछाळा — शुभाशुभ विकल्पो — शमता नथी, परंतु ज्यां ते द्रष्टिने परमात्मतत्त्वरूप ध्रुव आलंबन हाथ लागे छे त्यां ते ज क्षणे ते जीव (द्रष्टि-अपेक्षाए) कृतकृत्यता अनुभवे छे, (द्रष्टि-अपेक्षाए) विधि-निषेध विलय पामे छे, अपूर्व समरसभावनुं वेदन थाय छे, निज स्वभाव- भावरूप परिणमननो प्रारंभ थाय छे अने कृतक औपाधिक उछाळा क्रमे क्रमे विराम पामता जाय छे. आ निरंजन निज परमात्मतत्त्वना आश्रयरूप मार्गे ज सर्व मुमुक्षुओ भूत काळे पंचम गतिने पाम्या छे, वर्तमान काळे पामे छे अने भावी काळे पामशे. आ परमात्मतत्त्व सर्व तत्त्वोमां एक सार छे, त्रिकाळ- निरावरण, नित्यानंद-एकस्वरूप छे, स्वभाव-अनंत- चतुष्टयथी सनाथ छे, सुखसागरनुं पूर छे, क्लेशोदधिनो किनारो छे, चारित्रनुं मूळ छे, मुक्तिनुं कारण छे. सर्व भूमिकाना साधकोने ते ज एक उपादेय छे. हे भव्य जीवो! आ परमात्मतत्त्वनो आश्रय करी तमे शुद्ध रत्नत्रय प्रगट करो. एटलुं न करी शको तो सम्यग्दर्शन तो अवश्य करो ज. ए दशा पण अभूतपूर्व अने अलौकिक छे.
आम आ परम पवित्र शास्त्रने विषे मुख्यत्वे परमात्मतत्त्व अने तेना आश्रयथी प्रगटता पर्यायोनुं वर्णन होवा छतां, साथे साथे द्रव्यगुणपर्याय, छ द्रव्यो, पांच भावो, व्यवहार-निश्चयनयो, व्यवहार- चारित्र, सम्यग्दर्शनप्राप्तिमां प्रथम तो अन्य सम्यग्द्रष्टि जीवनी देशना ज निमित्त होय ( – मिथ्याद्रष्टि जीवनी देशना नहि) एवो अबाधित नियम, पंच परमेष्ठीनुं स्वरूप, केवळज्ञान-केवळदर्शन, केवळीनुं इच्छारहितपणुं वगेरे अनेक विषयोनुं संक्षिप्त निरूपण पण करवामां आव्युं छे. आ रीते उपरोक्त प्रयोजनभूत विषयोने प्रकाशतुं आ शास्त्र वस्तुस्वरूपनो यथार्थ निर्णय करी परमात्मतत्त्वनी प्राप्ति करवा इच्छनार जीवने महा उपकारी छे. अंतःतत्त्वरूप अमृतसागर पर मीट मांडी ज्ञानानंदना तरंगो उछाळता महा मस्त मुनिवरोना अंतरवेदनमांथी नीकळेला भावोथी भरेलुं आ परमागम नंदनवन समान आह्लादकारी छे. मुनिवरोना हृदयकमळमां विराजमान अंतःतत्त्वरूप अमृतसागर परथी अने शुद्धपर्यायोरूप अमृतझरणां परथी वहेतो श्रुतरूप शीतळ समीर जाणे के अमृतशीकरोथी मुमुक्षुओनां चित्तने परम शीतळीभूत करे छे. आवुं शांतरसमय परम आध्यात्मिक शास्त्र आजे पण विद्यमान छे अने परम पूज्य गुरुदेव द्वारा तेनां अगाध आध्यात्मिक ऊंडाण प्रगट थतां जाय छे ते आपणुं महा सद्भाग्य छे. परम पूज्य गुरुदेवने श्री नियमसार उपर अपार भक्ति छे. तेओश्री कहे छेः ‘परम पारिणामिक भावने प्रकाशनार श्री नियमसार परमागम अने तेनी टीकानी रचना छठ्ठा सातमा गुणस्थाने झूलता महा समर्थ मुनिवरो वडे द्रव्य साथे पर्यायनी एकता साधतां साधतां थई गई छे. जेवां