Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 2.

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नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

मग्गो मग्गफलं ति य दुविहं जिणसासणे समक्खादं

मग्गो मोक्खउवाओ तस्स फलं होइ णिव्वाणं ।।।।
मार्गो मार्गफलमिति च द्विविधं जिनशासने समाख्यातम्
मार्गो मोक्षोपायः तस्य फलं भवति निर्वाणम् ।।।।

मोक्षमार्गतत्फलस्वरूपनिरूपणोपन्यासोऽयम्

‘सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः’ इति वचनात् मार्गस्तावच्छुद्धरत्नत्रयं, मार्गफलमपुनर्भवपुरन्ध्रिकास्थूलभालस्थललीलालंकारतिलकता द्विविधं किलैवं परम- वीतरागसर्वज्ञशासने चतुर्थज्ञानधारिभिः पूर्वसूरिभिः समाख्यातम् परमनिरपेक्षतया निजपरमात्मतत्त्वसम्यक्श्रद्धानपरिज्ञानानुष्ठानशुद्धरत्नत्रयात्मकमार्गो मोक्षोपायः, तस्य शुद्ध- भुवनना जनोने जे पूज्य छे, पूर्ण ज्ञान जेनुं एक राज्य छे, देवोनो समाज जेने नमे छे, जन्मवृक्षनुं बीज जेणे नष्ट कर्युं छे, समवसरणमां जेनो निवास छे अने केवळश्री (केवळज्ञानदर्शनरूपी लक्ष्मी) जेनामां वसे छे, ते वीर जगतमां जयवंत वर्ते छे. ८.

छे मार्गनुं ने मार्गफळनुं कथन जिनवरशासने;
त्यां मार्ग मोक्षोपाय छे ने मार्गफळ निर्वाण छे. २.

अन्वयार्थः[मार्गः मार्गफलम्] मार्ग अने मार्गफळ [इति च द्विविधं] एम बे प्रकारनुं [जिनशासने] जिनशासनमां [समाख्यातम्] कथन करवामां आव्युं छे; [मार्गः मोक्षोपायः] मार्ग मोक्षोपाय छे अने [तस्य फलं] तेनुं फळ [निर्वाणं भवति] निर्वाण छे.

टीकाःआ, मोक्षमार्ग अने तेना फळना स्वरूपनिरूपणनी सूचना (ते बंनेना स्वरूपना निरूपणनी प्रस्तावना) छे.

‘सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्र मोक्षमार्ग छे)’ एवुं (शास्त्रनुं) वचन होवाथी, मार्ग तो शुद्धरत्नत्रय छे अने मार्गफळ मुक्तिरूपी स्त्रीना विशाळ भालप्रदेशे शोभा-अलंकाररूप तिलकपणुं छे (अर्थात् मार्गफळ मुक्तिरूपी स्त्रीने वरवुं ते छे). आ रीते खरेखर (मार्ग अने मार्गफळ एम) बे प्रकारनुं, चतुर्थज्ञानधारी (मनःपर्ययज्ञानना धरनारा) पूर्वाचार्योए परमवीतराग सर्वज्ञना शासनमां

६ ]