Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
जीव अधिकार
[ १३

शीलोपवासगुरुजनवैयावृत्त्यादिसमुद्भवः प्रशस्तरागः, स्त्रीराजचौरभक्त विकथालापाकर्णन- कौतूहलपरिणामो ह्यप्रशस्तरागः चातुर्वर्ण्यश्रमणसंघवात्सल्यगतो मोहः प्रशस्त इतरो- ऽप्रशस्त एव चिन्तनं धर्मशुक्लरूपं प्रशस्तमितरदप्रशस्तमेव तिर्यङ्मानवानां वयःकृत- देहविकार एव जरा वातपित्तश्लेष्मणां वैषम्यसंजातकलेवरविपीडैव रुजा सादिसनिधन- मूर्तेन्द्रियविजातीयनरनारकादिविभावव्यंजनपर्यायविनाश एव मृत्युरित्युक्त : अशुभकर्म- विपाकजनितशरीरायाससमुपजातपूतिगंधसम्बन्धवासनावासितवार्बिन्दुसंदोहः स्वेदः अनिष्ट- लाभः खेदः सहजचतुरकवित्वनिखिलजनताकर्णामृतस्यंदिसहजशरीरकुल- बलैश्वर्यैरात्माहंकारजननो मदः मनोज्ञेषु वस्तुषु परमा प्रीतिरेव रतिः परमसमरसीभाव-


होय छे; दान, शील, उपवास तथा गुरुजनोनी वैयावृत्त्य वगेरेमां उत्पन्न थतो ते प्रशस्त राग छे अने स्त्री संबंधी, राजा संबंधी, चोर संबंधी तथा भोजन संबंधी विकथा कहेवाना ने सांभळवाना कौतूहलपरिणाम ते अप्रशस्त राग छे. (६) *चार प्रकारना श्रमणसंघ प्रत्ये वात्सल्य संबंधी मोह ते प्रशस्त छे अने ते सिवायनो मोह अप्रशस्त ज छे. (७) धर्मरूप तथा शुकलरूप चिंतन (चिंता, विचार) प्रशस्त छे अने ते सिवायनुं (आर्तरूप तथा रौद्ररूप चिंतन) अप्रशस्त ज छे. (८) तिर्यंचो तथा मनुष्योने वयकृत देहविकार (वयने लीधे थती शरीरनी जीर्ण अवस्था) ते ज जरा छे. (९) वात, पित्त अने कफनी विषमताथी उत्पन्न थती कलेवर (शरीर) संबंधी पीडा ते ज रोग छे. (१०) सादि-सनिधन, मूर्त इन्द्रियोवाळा, विजातीय नरनारकादि विभावव्यंजनपर्यायनो जे विनाश तेने ज मृत्यु कहेवामां आव्युं छे. (११) अशुभ कर्मना विपाकथी जनित, शारीरिक श्रमथी उत्पन्न थतो, जे दुर्गंधना संबंधने लीधे खराब वासवाळा जळबिंदुओनो समूह ते स्वेद छे. (१२) अनिष्टनी प्राप्ति (अर्थात कोई वस्तु अनिष्ट लागवी) ते खेद छे. (१३) सर्व जनताना (जनसमाजना) कर्णमां अमृत रेडता सहज चतुर कवित्वने लीधे, सहज (सुंदर) शरीरने लीधे, सहज (उत्तम) कुळने लीधे, सहज बळने लीधे तथा सहज ऐश्वर्यने लीधे आत्मामां जे अहंकारनी उत्पत्ति ते मद छे. (१४) मनोज्ञ (मनपसंद) वस्तुओमां परम प्रीति ते ज रति छे.

*श्रमणना चार प्रकार आ प्रमाणे छेः (१) ॠषि, (२) मुनि, (३) यति अने (४) अणगार.
ॠद्धिवाळा श्रमण ते ॠषि छे; अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान अथवा केवळज्ञानवाळा श्रमण ते
मुनि छे; उपशमक अथवा क्षपक श्रेणिमां आरूढ श्रमण ते यति छे; अने सामान्य साधु ते
अणगार छे. आ प्रमाणे चार प्रकारनो श्रमणसंघ छे.