Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
जीव अधिकार
[ १५
तथा चोक्त म्
‘‘सो धम्मो जत्थ दया सो वि तवो विसयणिग्गहो जत्थ
दसअठ्ठदोसरहिओ सो देवो णत्थि संदेहो ।।’’
तथा चोक्तं श्रीविद्यानंदस्वामिभिः
(मालिनी)
‘‘अभिमतफलसिद्धेरभ्युपायः सुबोधः
स च भवति सुशास्त्रात्तस्य चोत्पत्तिराप्तात
इति भवति स पूज्यस्तत्प्रसादात्प्रबुद्धैः
न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति
।।’’
तथा हि

वळी केवळी भगवानने भवांतरमां उत्पत्तिना निमित्तभूत शुभाशुभ भावो नहि होवाथी तेमने जन्म होतो नथी; अने जे देहवियोग पछी भवांतरप्राप्तिरूप जन्म थतो नथी ते देहवियोगने मरण कहेवातुं नथी.

आ रीते वीतराग सर्वज्ञ अढार दोष रहित छे.] ए ज रीते (अन्य शास्त्रमां गाथा द्वारा) कह्युं छे केः

‘‘[गाथार्थः] ते धर्म छे ज्यां दया छे, ते तप छे ज्यां विषयोनो निग्रह छे, ते देव छे जे अढार दोष रहित छे; आ बाबतमां संशय नथी.’’

वळी श्री विद्यानंदस्वामीए (श्लोक द्वारा) कह्युं छे केः

‘‘[श्लोकार्थः] इष्ट फळनी सिद्धिनो उपाय सुबोध छे (अर्थात् मुक्तिनी प्राप्तिनो उपाय सम्यग्ज्ञान छे), सुबोध सुशास्त्रथी थाय छे, सुशास्त्रनी उत्पत्ति आप्तथी थाय छे; माटे तेमना प्रसादने लीधे आप्त पुरुष बुधजनो वडे पूजवायोग्य छे (अर्थात मुक्ति सर्वज्ञदेवनी कृपानुं फळ होवाथी सर्वज्ञदेव ज्ञानीओ वडे पूजनीय छे), केम के करेला उपकारने साधु पुरुषो (सज्जनो) भूलता नथी.’’

वळी (छठ्ठी गाथानी टीका पूर्ण करतां टीकाकार मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेव श्लोक द्वारा सर्वज्ञ भगवान श्री नेमिनाथनी स्तुति करे छे)ः