Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
जीव अधिकार
[ १७

निरवशेषेण प्रध्वंसनान्निःशेषदोषरहितः अथवा पूर्वसूत्रोपात्ताष्टादशमहादोषनिर्मूलनान्निः- शेषदोषनिर्मुक्त इत्युक्त : सकलविमलकेवलबोधकेवलद्रष्टिपरमवीतरागात्मकानन्दाद्यनेक- विभवसमृद्धः यस्त्वेवंविधः त्रिकालनिरावरणनित्यानन्दैकस्वरूपनिजकारणपरमात्मभावनोत्पन्न- कार्यपरमात्मा स एव भगवान् अर्हन् परमेश्वरः अस्य भगवतः परमेश्वरस्य विपरीतगुणात्मकाः सर्वे देवाभिमानदग्धा अपि संसारिण इत्यर्थः

तथा चोक्तं श्रीकुन्दकुन्दाचार्यदेवैः
‘‘तेजो दिट्ठी णाणं इड्ढी सोक्खं तहेव ईसरियं
तिहुवणपहाणदइयं माहप्पं जस्स सो अरिहो ।।’’

राख्या विना नाश कर्यो होवाथी) जे ‘निःशेषदोषरहित’ छे अथवा पूर्व सूत्रमां (छठ्ठी गाथामां) कहेला अढार महादोषोने निर्मूळ कर्या होवाथी जे ‘निःशेषदोषरहित’ कहेवामां आव्या छे अने जे ‘सकळविमळ (सर्वथा निर्मळ) केवळज्ञान-केवळदर्शन, परमवीतरागात्मक आनंद इत्यादि अनेक वैभवथी समृद्ध’ छे, एवा जे परमात्माएटले के त्रिकाळनिरावरण, नित्यानंद-एकस्वरूप निज कारणपरमात्मानी भावनाथी उत्पन्न कार्यपरमात्मा, ते ज भगवान अर्हत् परमेश्वर छे. आ भगवान परमेश्वरना गुणोथी विपरीत गुणोवाळा बधा (देवाभासो), भले देवपणाना अभिमानथी दग्ध होय तोपण, संसारी छे.आम (आ गाथानो) अर्थ छे.

एवी ज रीते (भगवान) श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे (प्रवचनसारनी गाथामां) कह्युं छे केः

‘‘[गाथार्थः] तेज (भामंडळ), दर्शन (केवळदर्शन), ज्ञान (केवळज्ञान), ॠद्धि (समवसरणादि विभूति), सौख्य (अनंत अतीन्द्रिय सुख), (इन्द्रादिक पण दासपणे वर्ते एवुं) ऐश्वर्य, अने (त्रण लोकना अधिपतिओना वल्लभ होवारूप) त्रिभुवन- प्रधानवल्लभपणुंआवुं जेमनुं माहात्म्य छे, ते अर्हंत छे.’’

१. नित्यानंद-एकस्वरूप=नित्य आनंद ज जेनुं एक स्वरूप छे एवा. [कारणपरमात्मा त्रणे काळे आवरणरहित छे अने नित्य आनंद ज तेनुं एक स्वरूप छे. दरेक आत्मा शक्ति-अपेक्षाए निरावरण
अने आनंदमय ज छे तेथी दरेक आत्मा कारणपरमात्मा छे; जे कारणपरमात्माने भावे छे
तेनो ज आश्रय करे छे, ते व्यक्ति-अपेक्षाए निरावरण अने आनंदमय थाय छे अर्थात् कार्यपरमात्मा थाय छे. शक्तिमांथी व्यक्ति थाय छे, माटे शक्ति कारण छे अने व्यक्ति कार्य छे. आम होवाथी
शक्तिरूप परमात्माने कारणपरमात्मा कहेवाय छे अने व्यक्त परमात्माने कार्यपरमात्मा कहेवाय छे.]

२. जुओ श्री प्रवचनसार, द्वितीय आवृत्ति, पानुं ११९.