मतिज्ञानावरणीयकर्मक्षयोपशमेन यथा मूर्तं वस्तु जानाति तथा चक्षुर्दर्शनावरणीय- कर्मक्षयोपशमेन मूर्तं वस्तु पश्यति च । यथा श्रुतज्ञानावरणीयकर्मक्षयोपशमेन श्रुतद्वारेण द्रव्यश्रुतनिगदितमूर्तामूर्तसमस्तं वस्तुजातं परोक्षवृत्त्या जानाति तथैवाचक्षुर्दर्शनावरणीय- कर्मक्षयोपशमेन स्पर्शनरसनघ्राणश्रोत्रद्वारेण तत्तद्योग्यविषयान् पश्यति च । यथा अवधिज्ञानावरणीयकर्मक्षयोपशमेन शुद्धपुद्गलपर्यंतं मूर्तद्रव्यं जानाति तथा अवधि- दर्शनावरणीयकर्मक्षयोपशमेन समस्तमूर्तपदार्थं पश्यति च ।
अत्रोपयोगव्याख्यानानन्तरं पर्यायस्वरूपमुच्यते । परि समन्तात् भेदमेति गच्छतीति पर्यायः । अत्र स्वभावपर्यायः षड्द्रव्यसाधारणः अर्थपर्यायः अवाङ्मनसगोचरः अतिसूक्ष्मः आगमप्रामाण्यादभ्युपगम्योऽपि च षड्ढानिवृद्धिविकल्पयुतः । अनंतभागवृद्धिः असंख्यात- भागवृद्धिः संख्यातभागवृद्धिः संख्यातगुणवृद्धिः असंख्यातगुणवृद्धिः अनंतगुणवृद्धिः, तथा
जेम मतिज्ञानावरणीय कर्मना क्षयोपशमथी (जीव) मूर्त वस्तुने जाणे छे, तेम चक्षुदर्शनावरणीय कर्मना क्षयोपशमथी (जीव) मूर्त वस्तुने *देखे छे. जेम श्रुत- ज्ञानावरणीय कर्मना क्षयोपशमथी (जीव) श्रुत द्वारा द्रव्यश्रुते कहेला मूर्त-अमूर्त समस्त वस्तुसमूहने परोक्ष रीते जाणे छे, तेम अचक्षुदर्शनावरणीय कर्मना क्षयोपशमथी (जीव) स्पर्शन, रसन, घ्राण अने श्रोत्र द्वारा तेने तेने योग्य विषयोने देखे छे. जेम अवधिज्ञानावरणीय कर्मना क्षयोपशमथी (जीव) शुद्धपुद्गलपर्यंत ( – परमाणु सुधीना) मूर्तद्रव्यने जाणे छे, तेम अवधिदर्शनावरणीय कर्मना क्षयोपशमथी (जीव) समस्त मूर्त पदार्थने देखे छे.
(उपर प्रमाणे) उपयोगनुं व्याख्यान कर्या पछी अहीं पर्यायनुं स्वरूप कहेवामां आवे छेः
परि समन्तात् भेदमेति गच्छतीति पर्यायः । अर्थात् जे सर्व तरफथी भेदने पामे ते पर्याय छे.
तेमां, स्वभावपर्याय छ द्रव्यने साधारण छे, अर्थपर्याय छे, वाणी अने मनने अगोचर छे, अति सूक्ष्म छे, आगमप्रमाणथी स्वीकारवायोग्य तेम ज छ हानिवृद्धिना भेदो सहित छे अर्थात् अनंतभाग वृद्धि, असंख्यातभाग वृद्धि, संख्यातभाग वृद्धि, संख्यातगुण वृद्धि, असंख्यातगुण वृद्धि अने अनंतगुण वृद्धि सहित होय छे अने एवी
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*देखवुं = सामान्यपणे अवलोकवुं; सामान्य प्रतिभास थवो.