Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 24-26.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
जीव अधिकार
[ ३५
हानिश्च नीयते अशुद्धपर्यायो नरनारकादिव्यंजनपर्याय इति
(मालिनी)
अथ सति परभावे शुद्धमात्मानमेकं
सहजगुणमणीनामाकरं पूर्णबोधम्
भजति निशितबुद्धिर्यः पुमान् शुद्धद्रष्टिः
स भवति परमश्रीकामिनीकामरूपः ।।२४।।
(मालिनी)
इति परगुणपर्यायेषु सत्सूत्तमानां
हृदयसरसिजाते राजते कारणात्मा
सपदि समयसारं तं परं ब्रह्मरूपं
भज भजसि निजोत्थं भव्यशार्दूल स त्वम्
।।२५।।
(पृथ्वी)
क्वचिल्लसति सद्गुणैः क्वचिदशुद्धरूपैर्गुणैः
क्वचित्सहजपर्ययैः क्वचिदशुद्धपर्यायकैः
रीते (वृद्धिनी जेम) हानि पण उताराय छे.

अशुद्धपर्याय नर-नारकादि व्यंजनपर्याय छे. [हवे १४मी गाथानी टीका पूर्ण करतां टीकाकार मुनिराज त्रण श्लोको कहे छेः] [श्लोकार्थः] परभाव होवा छतां, सहजगुणमणिनी खाणरूप अने पूर्णज्ञानवाळा शुद्ध आत्माने एकने जे तीक्ष्णबुद्धिवाळो शुद्धद्रष्टि पुरुष भजे छे, ते पुरुष परमश्रीरूपी कामिनीनो (मुक्तिसुंदरीनो) वल्लभ बने छे. २४.

[श्लोकार्थः] ए रीते पर गुणपर्यायो होवा छतां, उत्तम पुरुषोना हृदयकमळमां कारण-आत्मा विराजे छे. पोताथी उत्पन्न एवा ते परमब्रह्मरूप समयसारनेके जेने तुं भजी रह्यो छे तेने, हे भव्यशार्दूल (भव्योत्तम), तुं शीघ्र भज; तुं ते छे. २५.

[श्लोकार्थः] जीवतत्त्व कवचित् सद्गुणो सहित *विलसे छेदेखाय छे,

* विलसवुं = देखाव देवो; देखावुं; झळकवुं; आविर्भूत थवुं; प्रगट थवुं.