स्वभावपुद्गलस्वरूपाख्यानमेतत् ।
तिक्त कटुककषायाम्लमधुराभिधानेषु पंचसु रसेष्वेकरसः, श्वेतपीतहरितारुण- कृष्णवर्णेष्वेकवर्णः, सुगन्धदुर्गन्धयोरेकगंधः, कर्कशमृदुगुरुलघुशीतोष्णस्निग्धरूक्षाभिधाना- मष्टानामन्त्यचतुःस्पर्शाविरोधस्पर्शनद्वयम्; एते परमाणोः स्वभावगुणाः जिनानां मते । विभावगुणात्मको विभावपुद्गलः । अस्य द्वयणुकादिस्कंधरूपस्य विभावगुणाः सकल- करणग्रामग्राह्या इत्यर्थः ।
तथा चोक्तं पंचास्तिकायसमये —
उक्तं च मार्गप्रकाशे — इन्द्रियोथी ग्राह्य) [इति भणितः] कहेल छे.
टीकाःआ, स्वभावपुद्गलना स्वरूपनुं कथन छे.
तीखो, कडवो, कषायलो, खाटो अने मीठो ए पांच रसोमांनो एक रस; धोळो, पीळो, लीलो, रातो अने काळो ए (पांच) वर्णोमांनो एक वर्ण; सुगंध अने दुर्गंधमांनी एक गंध; कठोर, कोमळ, भारे, हळवो, शीत, उष्ण, स्निग्ध (चीकणो) अने रूक्ष (लूखो) ए आठ स्पर्शोमांथी छेल्ला चार स्पर्शोमांना अविरुद्ध बे स्पर्श; आ, जिनोना मतमां परमाणुना स्वभावगुणो छे. विभावपुद्गल विभावगुणात्मक होय छे. आ १द्वि-अणुकादिस्कंधरूप विभावपुद्गलना विभावगुणो सकळ इन्द्रियसमूह वडे ग्राह्य (जणावायोग्य) छे.आम (आ गाथानो) अर्थ छे.
एवी रीते (श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत) श्री पंचास्तिकायसमयमां (८१मी गाथा द्वारा) कह्युं छे केः
‘‘[गाथार्थः] एक रसवाळो, एक वर्णवाळो, एक गंधवाळो अने बे स्पर्शवाळो ते परमाणु शब्दनुं कारण छे, अशब्द छे अने स्कंधनी अंदर होय तोपण द्रव्य छे (अर्थात् सदाय सर्वथी भिन्न, शुद्ध एक द्रव्य छे).’’
वळी मार्गप्रकाशमां (श्लोक द्वारा) कह्युं छे केः
१. बे परमाणुओथी मांडीने अनंत परमाणुओनो बनेलो स्कंध ते विभावपुद्गल छे.
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