Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 47 Gatha: 32.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
अजीव अधिकार
[ ६५
सकाशादित्यर्थः
तथा चोक्तं पंचास्तिकायसमये
‘‘समओ णिमिसो कट्ठा कला य णाली तदो दिवारत्ती
मासोदुअयणसंवच्छरो त्ति कालो परायत्तो ।।’’
तथा हि
(मालिनी)
समयनिमिषकाष्ठा सत्कलानाडिकाद्याद्
दिवसरजनिभेदाज्जायते काल एषः
न च भवति फलं मे तेन कालेन किंचिद्
निजनिरुपमतत्त्वं शुद्धमेकं विहाय
।।४७।।
जीवादु पोग्गलादो णंतगुणा चावि संपदा समया
लोयायासे संति य परमट्ठो सो हवे कालो ।।३२।।

शरीरो तेमना जेटलो छे.

आम (आ गाथानो) अर्थ छे. एवी रीते (श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत) श्री पंचास्तिकायसमयमां (२५मी गाथा द्वारा) कह्युं छे केः

‘‘[गाथार्थः] समय, निमेष, काष्ठा, कळा, घडी, दिनरात, मास, ॠतु, अयन अने वर्षए रीते पराश्रित काळ (जेमां परनी अपेक्षा आवे छे एवो व्यवहारकाळ) छे.’’

वळी (३१मी गाथानी टीका पूर्ण करतां टीकाकार मुनिराज श्लोक कहे छे)ः

[श्लोकार्थः] समय, निमेष, काष्ठा, कळा, घडी, दिनरात वगेरे भेदोथी आ काळ (व्यवहारकाळ) उत्पन्न थाय छे; परंतु शुद्ध एक निज निरुपम तत्त्वने छोडीने, ते काळथी मने कांई फळ नथी. ४७.

जीवोथी ने पुद्गलथी पण समयो अनंतगुणा कह्या;
ते काळ छे परमार्थ, जे छे स्थित लोकाकाशमां. ३२.