Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
जीवात् पुद्गलतोऽनंतगुणाश्चापि संप्रति समयाः
लोकाकाशे संति च परमार्थः स भवेत्कालः ।।३२।।

मुख्यकालस्वरूपाख्यानमेतत

जीवराशेः पुद्गलराशेः सकाशादनन्तगुणाः के ते ? समयाः कालाणवः लोका- काशप्रदेशेषु पृथक् पृथक् तिष्ठन्ति, स कालः परमार्थ इति

तथा चोक्तं प्रवचनसारे

‘‘समओ दु अप्पदेसो पदेसमेत्तस्स दव्वजादस्स
वदिवददो सो वट्टदि पदेसमागासदव्वस्स ।।’’

अस्यापि समयशब्देन मुख्यकालाणुस्वरूपमुक्त म्

अन्यच्च

अन्वयार्थः[संप्रति] हवे, [जीवात्] जीवथी [पुद्गलतः च अपि] तेम ज पुद्गलथी पण [अनंतगुणाः] अनंतगुणा [समयाः] समयो छे; [च] अने [लोकाकाशे संति] जे (कालाणुओ) लोकाकाशमां छे, [सः] ते [परमार्थः कालः भवेत्] परमार्थ काळ छे.

टीकाःआ, मुख्य काळना स्वरूपनुं कथन छे.

जीवराशिथी अने पुद्गलराशिथी अनंतगुणा छे. कोण? समयो. कालाणुओ लोकाकाशना प्रदेशोमां पृथक् पृथक् रहेला छे, ते काळ परमार्थ छे.

एवी रीते (श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत) श्री प्रवचनसारमां (१३८मी गाथा द्वारा) कह्युं छे केः

‘‘[गाथार्थः] काळ तो अप्रदेशी छे. प्रदेशमात्र पुद्गल-परमाणु आकाशद्रव्यना प्रदेशने मंद गतिथी ओळंगतो होय त्यारे ते वर्ते छे अर्थात् निमित्तभूतपणे परिणमे छे.’’

आमां (आ प्रवचनसारनी गाथामां) पण ‘समय’ शब्दथी मुख्यकालाणुनुं स्वरूप कह्युं छे.

वळी अन्यत्र (आचार्यवर श्रीनेमिचंद्रसिद्धांतिदेवविरचित बृहद्द्रव्यसंग्रहमां २२मी गाथा द्वारा) कह्युं छे केः

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