‘‘[गाथार्थः] लोकाकाशना एक एक प्रदेशे जे एक एक कालाणु रत्नोना राशिनी माफक खरेखर स्थित छे, ते कालाणुओ असंख्य द्रव्यो छे.’’
वळी मार्गप्रकाशमां पण (श्लोक द्वारा) कह्युं छे केः
‘‘[श्लोकार्थः] काळना अभावमां, पदार्थोनुं परिणमन न होय; अने परिणमन न होय तो, द्रव्य पण न होय तथा पर्याय पण न होय; ए रीते सर्वना अभावनो (शून्यनो) प्रसंग आवे.’’
वळी (३२मी गाथानी टीका पूर्ण करतां टीकाकार मुनिराज बे श्लोक कहे छे)ः
[श्लोकार्थः] कुंभारना चक्रनी माफक (अर्थात् जेम घडो थवामां कुंभारनो चाकडो निमित्त छे तेम), आ परमार्थकाळ (पांच अस्तिकायोनी) वर्तनानुं निमित्त छे. एना विना, पांच अस्तिकायोने वर्तना (परिणमन) होई शके नहि. ४८.
[श्लोकार्थः] सिद्धांतपद्धतिथी (शास्त्रपरंपराथी) सिद्ध एवां जीवराशि, पुद्गल-