Niyamsar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 48-49.

< Previous Page   Next Page >


Page 67 of 380
PDF/HTML Page 96 of 409

 

कहानजैनशास्त्रमाळा ]
अजीव अधिकार
[ ६७
‘‘लोयायासपदेसे एक्केक्के जे ट्ठिया हु एक्केक्का
रयणाणं रासी इव ते कालाणू असंखदव्वाणि ।।’’
उक्तं च मार्गप्रकाशे
(अनुष्टुभ्)
‘‘कालाभावे न भावानां परिणामस्तदंतरात
न द्रव्यं नापि पर्यायः सर्वाभावः प्रसज्यते ।।’’
तथा हि
(अनुष्टुभ्)
वर्तनाहेतुरेषः स्यात् कुम्भकृच्चक्रमेव तत
पंचानामस्तिकायानां नान्यथा वर्तना भवेत।।४८।।
(अनुष्टुभ्)
प्रतीतिगोचराः सर्वे जीवपुद्गलराशयः
धर्माधर्मनभः कालाः सिद्धाः सिद्धान्तपद्धतेः ।।9।।

‘‘[गाथार्थः] लोकाकाशना एक एक प्रदेशे जे एक एक कालाणु रत्नोना राशिनी माफक खरेखर स्थित छे, ते कालाणुओ असंख्य द्रव्यो छे.’’

वळी मार्गप्रकाशमां पण (श्लोक द्वारा) कह्युं छे केः

‘‘[श्लोकार्थः] काळना अभावमां, पदार्थोनुं परिणमन न होय; अने परिणमन न होय तो, द्रव्य पण न होय तथा पर्याय पण न होय; ए रीते सर्वना अभावनो (शून्यनो) प्रसंग आवे.’’

वळी (३२मी गाथानी टीका पूर्ण करतां टीकाकार मुनिराज बे श्लोक कहे छे)ः

[श्लोकार्थः] कुंभारना चक्रनी माफक (अर्थात् जेम घडो थवामां कुंभारनो चाकडो निमित्त छे तेम), आ परमार्थकाळ (पांच अस्तिकायोनी) वर्तनानुं निमित्त छे. एना विना, पांच अस्तिकायोने वर्तना (परिणमन) होई शके नहि. ४८.

[श्लोकार्थः] सिद्धांतपद्धतिथी (शास्त्रपरंपराथी) सिद्ध एवां जीवराशि, पुद्गल-