Niyamsar (Hindi).

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९६ ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
त्वान्निर्मदः उक्त प्रकारविशुद्धसहजसिद्धनित्यनिरावरणनिजकारणसमयसारस्वरूपमुपादेयमिति
तथा चोक्तं श्रीमदमृतचन्द्रसूरिभिः
(मन्दाक्रांता)
‘‘इत्युच्छेदात्परपरिणतेः कर्तृकर्मादिभेद-
भ्रान्तिध्वंसादपि च सुचिराल्लब्धशुद्धात्मतत्त्वः
सञ्चिन्मात्रे महसि विशदे मूर्छितश्चेतनोऽयं
स्थास्यत्युद्यत्सहजमहिमा सर्वदा मुक्त एव
।।’’
तथा हि
(मन्दाक्रांता)
ज्ञानज्योतिःप्रहतदुरितध्वान्तसंघातकात्मा
नित्यानन्दाद्यतुलमहिमा सर्वदा मूर्तिमुक्त :
स्वस्मिन्नुच्चैरविचलतया जातशीलस्य मूलं
यस्तं वन्दे भवभयहरं मोक्षलक्ष्मीशमीशम्
।।9।।

समरसीभावस्वरूप होनेके कारण निर्मान है; निश्चयनयसे निःशेषरूपसे अंतर्मुख होनेके कारण निर्मद है उक्त प्रकारका (ऊ पर कहे हुए प्रकारका), विशुद्ध सहजसिद्ध नित्यनिरावरण निज कारणसमयसारका स्वरूप उपादेय है

इसीप्रकार (आचार्यदेव) श्रीमद् अमृतचन्द्रसूरिने (श्री प्रवचनसारकी टीकामें ८वें श्लोक द्वारा) कहा है कि :

‘‘[श्लोेकार्थ :] इसप्रकार परपरिणतिके उच्छेद द्वारा (अर्थात् परद्रव्यरूप परिणमनके नाश द्वारा) तथा कर्ता, कर्म आदि भेद होनेकी जो भ्रान्ति उसके भी नाश द्वारा अन्तमें जिसने शुद्ध आत्मतत्त्वको उपलब्ध किया हैऐसा यह आत्मा, चैतन्यमात्ररूप विशद (निर्मल) तेजमें लीन रहता हुआ, अपनी सहज (स्वाभाविक) महिमाके प्रकाशमानरूपसे सर्वदा मुक्त ही रहेगा ’’

और (४४वीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्लोक कहते हैं ) :

[श्लोेकार्थ :] जिसने ज्ञानज्योति द्वारा पापरूपी अंधकारसमूहका नाश किया है, जो नित्य आनन्द आदि अतुल महिमाका धारण करनेवाला है, जो सर्वदा अमूर्त है, जो