Niyamsar (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 105 of 388
PDF/HTML Page 132 of 415

 

कहानजैनशास्त्रमाला ]शुद्धभाव अधिकार[ १०५
हेयोपादेयत्यागोपादानलक्षणकथनमिदम्
ये केचिद् विभावगुणपर्यायास्ते पूर्वं व्यवहारनयादेशादुपादेयत्वेनोक्ताः शुद्ध-

निश्चयनयबलेन हेया भवन्ति कुतः ? परस्वभावत्वात्, अत एव परद्रव्यं भवति सकलविभावगुणपर्यायनिर्मुक्तं शुद्धान्तस्तत्त्वस्वरूपं स्वद्रव्यमुपादेयम् अस्य खलु सहज- ज्ञानसहजदर्शनसहजचारित्रसहजपरमवीतरागसुखात्मकस्य शुद्धान्तस्तत्त्वस्वरूपस्याधारः सहज- परमपारिणामिकभावलक्षणकारणसमयसार इति

तथा चोक्तं श्रीमदमृतचन्द्रसूरिभिः
(शार्दूलविक्रीडित)
‘‘सिद्धान्तोऽयमुदात्तचित्तचरितैर्मोक्षार्थिभिः सेव्यतां
शुद्धं चिन्मयमेकमेव परमं ज्योतिः सदैवास्म्यहम्
एते ये तु समुल्लसन्ति विविधा भावाः पृथग्लक्षणा-
स्तेऽहं नास्मि यतोऽत्र ते मम परद्रव्यं समग्रा अपि
।।’’
टीका :यह, हेय-उपादेय अथवा त्याग-ग्रहणके स्वरूपका कथन है

जो कोई विभावगुणपर्यायें हैं वे पहले (४९वीं गाथामें) व्यवहारनयके कथन द्वारा उपादेयरूपसे कही गई थीं किन्तु शुद्धनिश्चयनयके बलसे (शुद्धनिश्चयनयसे) वे हेय हैं किस कारणसे ? क्योंकि वे परस्वभाव हैं, और इसीलिये परद्रव्य हैं सर्व विभावगुणपर्यायोंसे रहित शुद्ध-अन्तस्तत्त्वस्वरूप स्वद्रव्य उपादेय है वास्तवमें सहजज्ञान सहजदर्शनसहजचारित्रसहजपरमवीतरागसुखात्मक शुद्ध-अन्तस्तत्त्वस्वरूप इस स्वद्रव्यका आधार सहजपरमपारिणामिकभावलक्षण (सहज परम पारिणामिक भाव जिसका लक्षण है ऐसा) कारणसमयसार है

इसीप्रकार (आचार्यदेव) श्रीमद् अमृतचन्द्रसूरिने (श्री समयसारकी आत्मख्याति नामक टीकामें १८५वें श्लोक द्वारा) कहा है कि :

‘‘[श्लोेकार्थ :] जिनके चित्तका चरित्र उदात्त (उदार, उच्च, उज्ज्वल) है ऐसे मोक्षार्थी इस सिद्धान्तका सेवन करो कि‘मैं तो शुद्ध चैतन्यमय एक परम ज्योति ही सदैव हूँ; और यह जो भिन्न लक्षणवाले विविध प्रकारके भाव प्रगट होते हैं वह मैं नहीं हूँ, क्योंकि वे सब मुझे परद्रव्य हैं ’’