कमनीयकामिनीनां तन्मनोहराङ्गनिरीक्षणद्वारेण समुपजनितकौतूहलचित्तवांच्छापरि- त्यागेन, अथवा पुंवेदोदयाभिधाननोकषायतीव्रोदयेन संजातमैथुनसंज्ञापरित्यागलक्षण- शुभपरिणामेन च ब्रह्मचर्यव्रतं भवति इति ।
स्मरसि मनसि कामिंस्त्वं तदा मद्वचः किम् ।
व्रजसि विपुलमोहं हेतुना केन चित्रम् ।।७9।।
सुन्दर कामिनियोंके मनोहर अङ्गके निरीक्षण द्वारा उत्पन्न होनेवाली कुतूहलताके — चित्तवांछाके — परित्यागसे, अथवा पुरुषवेदोदय नामका जो नोकषायका तीव्र उदय उसके कारण उत्पन्न होनेवाली मैथुनसंज्ञाके परित्यागस्वरूप शुभ परिणामसे, ब्रह्मचर्यव्रत होता है ।
[श्लोेकार्थ : — ] कामिनियोंकी जो शरीरविभूति उस विभूतिका, हे कामी पुरुष ! यदि तू मनमें स्मरण करता है, तो मेरे वचनसे तुझे क्या लाभ होगा ? अहो ! आश्चर्य होता है कि सहज परमतत्त्वको — निज स्वरूपको — छोड़कर तू किस कारण विपुल मोहको प्राप्त हो रहा है ! ७९।
गाथा : ६० अन्वयार्थ : — [निरपेक्षभावनापूर्वम् ] १निरपेक्ष भावनापूर्वक १ – मुनिको मुनित्वोचित निरपेक्ष शुद्ध परिणतिके साथ वर्तता हुआ जो (हठ रहित) सर्वपरिग्रहत्यागसम्बन्धी