Niyamsar (Hindi). Gatha: 76.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]व्यवहारचारित्र अधिकार[ १४७
एरिसयभावणाए ववहारणयस्स होदि चारित्तं
णिच्छयणयस्स चरणं एत्तो उड्ढं पवक्खामि ।।७६।।
द्रग्भावनायां व्यवहारनयस्य भवति चारित्रम्
निश्चयनयस्य चरणं एतदूर्ध्वं प्रवक्ष्यामि ।।७६।।
व्यवहारचारित्राधिकारव्याख्यानोपसंहारनिश्चयचारित्रसूचनोपन्यासोऽयम्
इत्थंभूतायां प्रागुक्त पंचमहाव्रतपंचसमितिनिश्चयव्यवहारत्रिगुप्तिपंचपरमेष्ठिध्यान-

संयुक्तायाम् अतिप्रशस्तशुभभावनायां व्यवहारनयाभिप्रायेण परमचारित्रं भवति, वक्ष्यमाणपंचमाधिकारे परमपंचमभावनिरतपंचमगतिहेतुभूतशुद्धनिश्चयनयात्मपरमचारित्रं द्रष्टव्यं भवतीति

तथा चोक्तं मार्गप्रकाशे

गाथा : ७६ अन्वयार्थ :[ईद्रग्भावनायाम् ] ऐसी (पूर्वोक्त) भावनामें [व्यवहारनयस्य ] व्यवहारनयके अभिप्रायसे [चारित्रम् ] चारित्र [भवति ] है; [निश्चयनयस्य ] निश्चयनयके अभिप्रायसे [चरणम् ] चारित्र [एतदूर्ध्वम् ] इसके पश्चात् [प्रवक्ष्यामि ] कहूँगा

टीका :यह, व्यवहारचारित्र-अधिकारका जो व्याख्यान उसके उपसंहारका और निश्चयचारित्रकी सूचनाका कथन है

ऐसी जो पूर्वोक्त पंचमहाव्रत, पंचसमिति, निश्चय - व्यवहार त्रिगुप्ति तथा पंचपरमेष्ठीके ध्यानसे संयुक्त, अतिप्रशस्त शुभ भावना उसमें व्यवहारनयके अभिप्रायसे परम चारित्र है; अब कहे जानेवाले पाँचवें अधिकारमें, परम पंचमभावमें लीन, पंचमगतिके हेतुभूत, शुद्धनिश्चयनयात्मक परम चारित्र द्रष्टव्य (देखनेयोग्य) है

इसीप्रकार मार्गप्रकाशकमें (श्लोक द्वारा) कहा है कि :
इस भावनामें जानिये चारित्र नय व्यवहारसे
निश्चय-चरण अब मैं कहूँ निश्चयनयात्मक द्वारसे ।।७६।।