Niyamsar (Hindi).

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मुक्त्वा वचनरचनां रागादिभाववारणं कृत्वा
आत्मानं यो ध्यायति तस्य तु भवतीति प्रतिक्रमणम् ।।८३।।
दैनं दैनं मुमुक्षुजनसंस्तूयमानवाङ्मयप्रतिक्रमणनामधेयसमस्तपापक्षयहेतुभूतसूत्र-
समुदयनिरासोऽयम्
यो हि परमतपश्चरणकारणसहजवैराग्यसुधासिन्धुनाथस्य राकानिशीथिनीनाथः अप्रशस्त-
वचनरचनापरिमुक्तोऽपि प्रतिक्रमणसूत्रविषमवचनरचनां मुक्त्वा संसारलतामूलकंदानां निखिल-
मोहरागद्वेषभावानां निवारणं कृत्वाऽखंडानंदमयं निजकारणपरमात्मानं ध्यायति, तस्य खलु पर-
मतत्त्वश्रद्धानावबोधानुष्ठानाभिमुखस्य सकलवाग्विषयव्यापारविरहितनिश्चयप्रतिक्रमणं भवतीति
तथा चोक्तं श्रीमदमृतचंद्रसूरिभिः
गाथा : ८३ अन्वयार्थ :[वचनरचनां ] वचनरचनाको [मुक्त्वा ] छोड़कर, [रागादि-
भाववारणं ] रागादिभावोंका निवारण [कृत्वा ] करके, [यः ] जो [आत्मानं ] आत्माको
[ध्यायति ] ध्याता है, [तस्य तु ] उसे [प्रतिक्रमणं ] प्रतिक्रमण [भवति इति ] होता है
टीका :प्रतिदिन मुमुक्षु जनों द्वारा उच्चारण किया जानेवाला जो वचनमय
प्रतिक्रमण नामक समस्त पापक्षयके हेतुभूत सूत्रसमुदाय उसका यह निरास है (अर्थात्
उसका इसमें निराकरण
खण्डन किया है )
परम तपश्चरणके कारणभूत सहजवैराग्यसुधासागरके लिये पूर्णिमाका चन्द्र ऐसा जो
जीव (परम तपका कारण ऐसा जो सहज वैराग्यरूपी अमृतका सागर उसे उछालनेके लिये
अर्थात् उसमें ज्वार लानेके लिये जो पूर्ण चन्द्र समान है ऐसा जो जीव) अप्रशस्त
वचनरचनासे परिमुक्त (
सर्व ओरसे मुक्त) होने पर भी प्रतिक्रमणसूत्रकी विषम (विविध)
वचनरचनाको (भी) छोड़कर संसारलताके मूल - कंदभूत समस्त मोहरागद्वेषभावोंका निवारण
करके अखण्ड - आनन्दमय निज कारणपरमात्माको ध्याता है, उस जीवकोकि जो
वास्तवमें परमतत्त्वके श्रद्धान, ज्ञान और अनुष्ठानके सन्मुख है उसेवचनसम्बन्धी सर्व
व्यापार रहित निश्चयप्रतिक्रमण होता है
इसीप्रकार (आचार्यदेव) श्रीमद् अमृतचन्द्रसूरिने (श्री समयसारकी आत्मख्याति
नामक टीकामें २४४वें श्लोक द्वारा) कहा है कि :
कहानजैनशास्त्रमाला ]परमार्थ-प्रतिक्रमण अधिकार[ १५७