Niyamsar (Hindi). Gatha: 94.

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निरवशेषरूपसे अंतर्मुख होनेसे प्रशस्त - अप्रशस्त समस्त मोहरागद्वेषका परित्याग करता है;
इसलिये (ऐसा सिद्ध हुआ कि) स्वात्माश्रित ऐसे जो निश्चयधर्मध्यान और निश्चयशुक्लध्यान,
वे दो ध्यान ही सर्व अतिचारोंका प्रतिक्रमण है
[अब इस ९३वीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्लोक
कहते हैं ] :
[श्लोकार्थ :] यह शुक्लध्यानरूपी दीपक जिसके मनोमन्दिरमें प्रकाशित हुआ,
वह योगी है; उसे शुद्ध आत्मा स्वयं प्रत्यक्ष होता है १२४
गाथा : ९४ अन्वयार्थ :[प्रतिक्रमणनामधेये ] प्रतिक्रमण नामक [सूत्रे ]
सूत्रमें [यथा ] जिसप्रकार [प्रतिक्रमणम् ] प्रतिक्रमणका [वर्णितं ] वर्णन किया गया है
[तथा ज्ञात्वा ] तदनुसार जानकर [यः ] जो [भावयति ] भाता है, [तस्य ] उसे [तदा ]
तब [प्रतिक्रमणम् भवति ] प्रतिक्रमण है
प्रशस्ताप्रशस्तसमस्तमोहरागद्वेषाणां परित्यागं करोति, तस्मात् स्वात्माश्रितनिश्चयधर्म-
शुक्लध्यानद्वितयमेव सर्वातिचाराणां प्रतिक्रमणमिति
(अनुष्टुभ्)
शुक्लध्यानप्रदीपोऽयं यस्य चित्तालये बभौ
स योगी तस्य शुद्धात्मा प्रत्यक्षो भवति स्वयम् ।।१२४।।
पडिकमणणामधेये सुत्ते जह वण्णिदं पडिक्कमणं
तह णच्चा जो भावइ तस्स तदा होदि पडिक्कमणं ।।9।।
प्रतिक्रमणनामधेये सूत्रे यथा वर्णितं प्रतिक्रमणम्
तथा ज्ञात्वा यो भावयति तस्य तदा भवति प्रतिक्रमणम् ।।9।।
१७८ ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
प्रतिक्रमणनामक सूत्रमें प्रतिक्रमण वर्णित है यथा
होता उसे प्रतिक्रमण जो जाने तथा भावे तथा ।।९४।।