Niyamsar (Hindi). Gatha: 96.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]निश्चय-प्रत्याख्यान अधिकार[ १८३
तथा समयसारव्याख्यायां च
(आर्या)
‘‘प्रत्याख्याय भविष्यत्कर्म समस्तं निरस्तसंमोहः
आत्मनि चैतन्यात्मनि निष्कर्मणि नित्यमात्मना वर्ते ।।’’
तथा हि
(मंदाक्रांता)
सम्यग्द्रष्टिस्त्यजति सकलं कर्मनोकर्मजातं
प्रत्याख्यानं भवति नियतं तस्य संज्ञानमूर्तेः
सच्चारित्राण्यघकुलहराण्यस्य तानि स्युरुच्चैः
तं वंदेहं भवपरिभवक्लेशनाशाय नित्यम्
।।१२७।।
केवलणाणसहावो केवलदंसणसहावसुहमइओ
केवलसत्तिसहावो सो हं इदि चिंतए णाणी ।।9।।

इसीप्रकार समयसारकी (अमृतचन्द्राचार्यदेवकृत आत्मख्याति नामक) टीकामें भी (२२८वें श्लोक द्वारा) कहा है कि :

‘‘[श्लोकार्थ : ] (प्रत्याख्यान करनेवाला ज्ञानी कहता है कि) भविष्यके समस्त कर्मोंका प्रत्याख्यान करके (त्यागकर), जिसका मोह नष्ट हुआ है ऐसा मैं निष्कर्म (अर्थात् सर्व कर्मोंसे रहित) चैतन्यस्वरूप आत्मामें आत्मासे ही (स्वयंसे ही) निरंतर वर्तता हूँ ’’

और (इस ९५वीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेव श्लोक कहते हैं ) :

[श्लोकार्थ : ] जो सम्यग्दृष्टि समस्त कर्म-नोकर्मके समूहको छोड़ता है, उस सम्यग्ज्ञानकी मूर्तिको सदा प्रत्याख्यान है और उसे पापसमूहका नाश करनेवाले ऐसे सत्- चारित्र अतिशयरूपसे हैं भव-भवके क्लेशका नाश करनेके लिये उसे मैं नित्य वंदन करता हूँ १२७

कैवल्य दर्शन - ज्ञान - सुख; कैवल्य शक्ति स्वभाव जो
मैं हूँ वही, यह चिन्तवन होता निरन्तर ज्ञानिको ।।९६।।