तं वंदेहं भवपरिभवक्लेशनाशाय नित्यम् ।।१२७।।
इसीप्रकार समयसारकी (अमृतचन्द्राचार्यदेवकृत आत्मख्याति नामक) टीकामें भी (२२८वें श्लोक द्वारा) कहा है कि : —
‘‘[श्लोकार्थ : — ] (प्रत्याख्यान करनेवाला ज्ञानी कहता है कि – ) भविष्यके समस्त कर्मोंका प्रत्याख्यान करके ( – त्यागकर), जिसका मोह नष्ट हुआ है ऐसा मैं निष्कर्म (अर्थात् सर्व कर्मोंसे रहित) चैतन्यस्वरूप आत्मामें आत्मासे ही ( – स्वयंसे ही) निरंतर वर्तता हूँ ।’’
और (इस ९५वीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेव श्लोक कहते हैं ) : —
[श्लोकार्थ : — ] जो सम्यग्दृष्टि समस्त कर्म-नोकर्मके समूहको छोड़ता है, उस सम्यग्ज्ञानकी मूर्तिको सदा प्रत्याख्यान है और उसे पापसमूहका नाश करनेवाले ऐसे सत्- चारित्र अतिशयरूपसे हैं । भव-भवके क्लेशका नाश करनेके लिये उसे मैं नित्य वंदन करता हूँ ।१२७।