Niyamsar (Hindi). Gatha: 101.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]निश्चय-प्रत्याख्यान अधिकार[ १९५
एगो य मरदि जीवो एगो य जीवदि सयं
एगस्स जादि मरणं एगो सिज्झदि णीरओ ।।१०१।।
एकश्च म्रियते जीवः एकश्च जीवति स्वयम्
एकस्य जायते मरणं एकः सिध्यति नीरजाः ।।१०१।।
इह हि संसारावस्थायां मुक्तौ च निःसहायो जीव इत्युक्त :
नित्यमरणे तद्भवमरणे च सहायमन्तरेण व्यवहारतश्चैक एव म्रियते; सादि-

सनिधनमूर्तिविजातीयविभावव्यंजननरनारकादिपर्यायोत्पत्तौ चासन्नगतानुपचरितासद्भूतव्यवहार- नयादेशेन स्वयमेवोज्जीवत्येव सर्वैर्बंधुभिः परिरक्ष्यमाणस्यापि महाबलपराक्रमस्यैकस्य जीवस्याप्रार्थितमपि स्वयमेव जायते मरणम्; एक एव परमगुरुप्रसादासादितस्वात्माश्रय-

गाथा : १०१ अन्वयार्थ :[जीवः एकः च ] जीव अकेला [म्रियते ] मरता है [च ] और [स्वयम् एकः ] स्वयं अकेला [जीवति ] जन्मता है; [एकस्य ] अकेलेका [मरणं जायते ] मरण होता है और [एकः ] अकेला [नीरजाः ] रज रहित होता हुआ [सिध्यति ] सिद्ध होता है

टीका :यहाँ (इस गाथामें), संसारावस्थामें और मुक्तिमें जीव निःसहाय है ऐसा कहा है

नित्य मरणमें (अर्थात् प्रतिसमय होनेवाले आयुकर्मके निषेकोंके क्षयमें) और उस भव सम्बन्धी मरणमें, (अन्य किसीकी) सहायताके बिना व्यवहारसे (जीव) अकेला ही मरता है; तथा सादि-सांत मूर्तिक विजातीयविभावव्यंजनपर्यायरूप नरनारकादिपर्यायोंकी उत्पत्तिमें, आसन्न - अनुपचरित - असद्भूत - व्यवहारनयके कथनसे (जीव अकेला ही) स्वयमेव जन्मता है सर्व बन्धुजनोंसे रक्षण किया जाने पर भी, महाबलपराक्रमवाले जीवका अकेलेका ही, अनिच्छित होने पर भी, स्वयमेव मरण होता

मरता अकेला जीव, एवं जन्म एकाकी करे
पाता अकेला ही मरण, अरु मुक्ति एकाकी करे ।।१०१।।