Niyamsar (Hindi).

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कहानजैनशास्त्रमाला ]परम-आलोचना अधिकार[ २२१
(वसंततिलका)
मुक्त : कदापि न हि याति विभावकायं
तद्धेतुभूतसुकृतासुकृतप्रणाशात
तस्मादहं सुकृतदुष्कृतकर्मजालं
मुक्त्वा मुमुक्षुपथमेकमिह व्रजामि
।।१६५।।
(अनुष्टुभ्)
प्रपद्येऽहं सदाशुद्धमात्मानं बोधविग्रहम्
भवमूर्तिमिमां त्यक्त्वा पुद्गलस्कन्धबन्धुराम् ।।१६६।।
(अनुष्टुभ्)
अनादिममसंसाररोगस्यागदमुत्तमम्
शुभाशुभविनिर्मुक्त शुद्धचैतन्यभावना ।।१६७।।
(मालिनी)
अथ विविधविकल्पं पंचसंसारमूलं
शुभमशुभसुकर्म प्रस्फु टं तद्विदित्वा
भवमरणविमुक्तं पंचमुक्ति प्रदं यं
तमहमभिनमामि प्रत्यहं भावयामि
।।१६८।।
होनेवाले इस लोकमें यह मुनिवर समताके प्रमादसे शमामृतमय जो हिम - राशि (बफ र्का ढेर)
उसे प्राप्त करते हैं १६४

[श्लोकार्थ : ] मुक्त जीव विभावसमूहको कदापि प्राप्त नहीं होता क्योंकि उसने उसके हेतुभूत सुकृत और दुष्कृतका नाश किया है इसलिये अब मैं सुकृत और दुष्कृतरूपी कर्मजालको छोड़कर एक मुमुक्षुमार्ग पर जाता हूँ [अर्थात् मुमुक्षु जिस मार्ग पर चले हैं उसी एक मार्ग पर चलता हूँ ] १६५

[श्लोकार्थ : ] पुद्गलस्कन्धों द्वारा जो अस्थिर है (अर्थात् पुद्गलस्कन्धोंके आने - जानेसे जो एक-सी नहीं रहती) ऐसी इस भवमूर्तिको (भवकी मूर्तिरूप कायाको) छोड़कर मैं सदाशुद्ध ऐसा जो ज्ञानशरीरी आत्मा उसका आश्रय करता हूँ १६६

[श्लोकार्थ : ] शुभ और अशुभसे रहित शुद्धचैतन्यकी भावना मेरे अनादि संसाररोगकी उत्तम औषधि है १६७

[श्लोकार्थ : ] पाँच प्रकारके (द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भावके