Niyamsar (Hindi).

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गाथा : ११२ अन्वयार्थ :[मदमानमायालोभविवर्जितभावः तु ] मद (मदन),
मान, माया और लोभ रहित भाव वह [भावशुद्धिः ] भावशुद्धि है [इति ] ऐसा [भव्यानाम् ]
भव्योंको [लोकालोकप्रदर्शिभिः ] लोकालोकके द्रष्टाओंने [परिकथितः ] कहा है
टीका :यह, भावशुद्धिनामक परम - आलोचनाके स्वरूपके प्रतिपादन द्वारा शुद्ध-
निश्चय - आलोचना अधिकारके उपसंहारका कथन है
तीव्र चारित्रमोहके उदयके कारण पुरुषवेद नामक नोकषायका विलास वह मद है
यहाँ ‘मद’ शब्दका अर्थ ‘मदन’ अर्थात् कामपरिणाम है (१) चतुर वचनरचनावाले
वैदर्भकवित्वके कारण, आदेयनामकर्मका उदय होने पर समस्त जनों द्वारा पूजनीयतासे,
(२) माता - पिता सम्बन्धी कुल - जातिकी विशुद्धिसे, (३) प्रधान ब्रह्मचर्यव्रत द्वारा उपार्जित
लक्षकोटि सुभट समान निरुपम बलसे, (४) दानादि शुभ कर्म द्वारा उपार्जित सम्पत्तिकी
वृद्धिके विलाससे, (५) बुद्धि, तप, विक्रिया, औषध, रस, बल और अक्षीण
इन सात
ऋद्धियोंसे, अथवा (६) सुन्दर कामिनियोंके लोचनको आनन्द प्राप्त करानेवाले
शरीरलावण्यरसके विस्तारसे होनेवाला जो आत्म
- अहङ्कार (आत्माका अहंकारभाव) वह
मान है गुप्त पापसे माया होती है योग्य स्थान पर धनव्ययका अभाव वह लोभ है;
मदमानमायालोभविवर्जितभावस्तु भावशुद्धिरिति
परिकथितो भव्यानां लोकालोकप्रदर्शिभिः ।।११२।।
भावशुद्धयभिधानपरमालोचनास्वरूपप्रतिपादनद्वारेण शुद्धनिश्चयालोचनाधिकारोप-
संहारोपन्यासोऽयम्
तीव्रचारित्रमोहोदयबलेन पुंवेदाभिधाननोकषायविलासो मदः अत्र मदशब्देन मदनः
कामपरिणाम इत्यर्थः चतुरसंदर्भगर्भीकृतवैदर्भकवित्वेन आदेयनामकर्मोदये सति
सकलजनपूज्यतया, मातृपितृसम्बन्धकुलजातिविशुद्धया वा, शतसहस्रकोटिभटाभिधान-
प्रधानब्रह्मचर्यव्रतोपार्जितनिरुपमबलेन च, दानादिशुभकर्मोपार्जितसंपद्वृद्धिविलासेन, अथवा
बुद्धितपोवैकुर्वणौषधरसबलाक्षीणर्द्धिभिः सप्तभिर्वा, कमनीयकामिनीलोचनानन्देन वपुर्लावण्य-
रसविसरेण वा आत्माहंकारो मानः
गुप्तपापतो माया युक्त स्थले धनव्ययाभावो लोभः;
वैदर्भकवि = एक प्रकारकी साहित्यप्रसिद्ध सुन्दर काव्यरचनामें कुशल कवि
कहानजैनशास्त्रमाला ]परम-आलोचना अधिकार[ २२३