Niyamsar (Hindi). Adhikar-8 : Shuddh Nishchay Prayashchitt adhikAr Gatha: 113.

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शुद्धनिश्चय-प्रायश्चित्त अधिकार
अथाखिलद्रव्यभावनोकर्मसंन्यासहेतुभूतशुद्धनिश्चयप्रायश्चित्ताधिकारः कथ्यते
वदसमिदिसीलसंजमपरिणामो करणणिग्गहो भावो
सो हवदि पायछित्तं अणवरयं चेव कायव्वो ।।११३।।
व्रतसमितिशीलसंयमपरिणामः करणनिग्रहो भावः
स भवति प्रायश्चित्तम् अनवरतं चैव कर्तव्यः ।।११३।।
निश्चयप्रायश्चित्तस्वरूपाख्यानमेतत

अब समस्त द्रव्यकर्म, भावकर्म तथा नोकर्मके संन्यासके हेतुभूत शुद्धनिश्चय- प्रायश्चित्त अधिकार कहा जाता है

गाथा : ११३ अन्वयार्थ :[व्रतसमितिशीलसंयमपरिणामः ] व्रत, समिति, शील और संयमरूप परिणाम तथा [करणनिग्रहः भावः ] इन्द्रियनिग्रहरूप भाव [सः ] वह [प्रायश्चित्तम् ] प्रायश्चित्त [भवति ] है [च एव ] और वह [अनवरतं ] निरंतर [कर्तव्यः ] कर्तव्य है

टीका :यह, निश्चय - प्रायश्चित्तके स्वरूपका कथन है
व्रत, समिति, संयम, शील, इन्द्रियरोधका जो भाव है
वह भाव प्रायश्चित्त है, अरु अनवरत कर्तव्य है ।।११३।।