Niyamsar (Hindi). Gatha: 115.

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अथवा तो अपने ज्ञानकी जो संभावना (सम्यक् भावना) वह उग्र प्रायश्चित्त कहा है
सन्तोंने आत्मप्रवादमें ऐसा जाना है (अर्थात् जानकर कहा है ) १८१
गाथा : ११५ अन्वयार्थ :[क्रोधं क्षमया ] क्रोधको क्षमासे, [मानं
स्वमार्दवेन ] मानको निज मार्दवसे, [मायां च आर्जवेन ] मायाको आर्जवसे [च ] तथा
[लोभं संतोषेण ] लोभको संतोषसे
[चतुर्विधकषायान् ] इसप्रकार चतुर्विध कषायोंको
[खलु जयति ] (योगी) वास्तवमें जीतते हैं
टीका :यह, चार कषायों पर विजय प्राप्त करनेके उपायके स्वरूपका कथन है
जघन्य, मध्यम और उत्तम ऐसे (तीन) भेदोंके कारण क्षमा तीन (प्रकारकी) है
(१) ‘बिना-कारण अप्रिय बोलनेवाले मिथ्यादृष्टिको बिना-कारण मुझे त्रास देनेका उद्योग
वर्तता है, वह मेरे पुण्यसे दूर हुआ;’
ऐसा विचारकर क्षमा करना वह प्रथम क्षमा है
(२) ‘(मुझे) बिना-कारण त्रास देनेवालेको ताड़नका और वधका परिणाम वर्तता है,
वह मेरे सुकृतसे दूर हुआ;’ऐसा विचारकर क्षमा करना वह द्वितीय क्षमा है (३) वध
कोहं खमया माणं समद्दवेणज्जवेण मायं च
संतोसेण य लोहं जयदि खु ए चहुविहकसाए ।।११५।।
क्रोधं क्षमया मानं स्वमार्दवेन आर्जवेन मायां च
संतोषेण च लोभं जयति खलु चतुर्विधकषायान् ।।११५।।
चतुष्कषायविजयोपायस्वरूपाख्यानमेतत
जघन्यमध्यमोत्तमभेदात्क्षमास्तिस्रो भवन्ति अकारणादप्रियवादिनो मिथ्याद्रष्टेरकारणेन
मां त्रासयितुमुद्योगो विद्यते, अयमपगतो मत्पुण्येनेति प्रथमा क्षमा अकारणेन संत्रासकरस्य
ताडनवधादिपरिणामोऽस्ति, अयं चापगतो मत्सुकृतेनेति द्वितीया क्षमा वधे सत्यमूर्तस्य
ताड़न = मार मारना वह
वध = मार डालना वह
अभिमान मार्दवसे तथा जीते क्षमासे क्रोधको
कौटिल्य आर्जवसे तथा संतोष द्वारा लोभको ।।११५।।
कहानजैनशास्त्रमाला ]शुद्धनिश्चय-प्रायश्चित्त अधिकार[ २३१