Niyamsar (Hindi). Adhikar-9 : Param Samadhi Adhikar Gatha: 122.

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अब समस्त मोहरागद्वेषादि परभावोंके विध्वंसके हेतुभूत परम - समाधि अधिकार कहा
जाता है
गाथा : १२२ अन्वयार्थ :[वचनोच्चारणक्रियां ] वचनोच्चारणकी क्रिया
[परित्यज्य ] परित्याग कर [वीतरागभावेन ] वीतराग भावसे [यः ] जो [आत्मानं ]
आत्माको [ध्यायति ] ध्याता है, [तस्य ] उसे [परमसमाधिः ] परम समाधि [भवेत् ] है
टीका :यह, परम समाधिके स्वरूपका कथन है
कभी अशुभवंचनार्थ वचनविस्तारसे शोभित परमवीतराग सर्वज्ञका स्तवनादि परम
परम-समाधि अधिकार
अथ अखिलमोहरागद्वेषादिपरभावविध्वंसहेतुभूतपरमसमाध्यधिकार उच्यते
वयणोच्चारणकिरियं परिचत्ता वीयरायभावेण
जो झायदि अप्पाणं परमसमाही हवे तस्स ।।१२२।।
वचनोच्चारणक्रियां परित्यज्य वीतरागभावेन
यो ध्यायत्यात्मानं परमसमाधिर्भवेत्तस्य ।।१२२।।
परमसमाधिस्वरूपाख्यानमेतत
क्वचिदशुभवंचनार्थं वचनप्रपंचांचितपरमवीतरागसर्वज्ञस्तवनादिकं कर्तव्यं परम-
अशुभवंचनार्थ = अशुभसे छूटनेके लिये; अशुभसे बचनेके लिये; अशुभके त्यागके लिये
रे त्याग वचनोच्चार किरिया, वीतरागी भावसे
ध्यावे निजात्मा जो, समाधि परम होती है उसे ।।१२२।।