Niyamsar (Hindi).

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कहानजैनशास्त्रमाला ]निश्चय-परमावश्यक अधिकार[ २९५
(द्रुतविलंबित)
स्ववशयोगिनिकायविशेषक
प्रहतचारुवधूकनकस्पृह
त्वमसि नश्शरणं भवकानने
स्मरकिरातशरक्षतचेतसाम्
।।२५०।।
(द्रुतविलंबित)
अनशनादितपश्चरणैः फलं
तनुविशोषणमेव न चापरम्
तव पदांबुरुहद्वयचिंतया
स्ववश जन्म सदा सफलं मम
।।२५१।।
(मालिनी)
जयति सहजतेजोराशिनिर्मग्नलोकः
स्वरसविसरपूरक्षालितांहः समंतात
सहजसमरसेनापूर्णपुण्यः पुराणः
स्ववशमनसि नित्यं संस्थितः शुद्धसिद्धः
।।२५२।।
जानकर जो निर्वाणसम्पदाको प्राप्त करता है, उसे मैं पुनः पुनः वन्दन करता हूँ २४९

[श्लोकार्थ : ] जिसने सुन्दर स्त्री और सुवर्णकी स्पृहाको नष्ट किया है ऐसे हे योगीसमूहमें श्रेष्ठ स्ववश योगी ! तू हमाराकामदेवरूपी भीलके तीरसे घायल चित्तवालेकाभवरूपी अरण्यमें शरण है २५०

[श्लोकार्थ : ] अनशनादि तपश्चरणोंका फल शरीरका शोषण (सूखना ) ही है, दूसरा नहीं (परन्तु ) हे स्ववश ! (हे आत्मवश मुनि ! ) तेरे चरणकमलयुगलके चिंतनसे मेरा जन्म सदा सफल है २५१

[श्लोकार्थ : ] जिसने निज रसके विस्ताररूपी पूर द्वारा पापोंको सर्व ओरसे धो डाला है, जो सहज समतारससे पूर्ण भरा होनेसे पवित्र है, जो पुराण (सनातन ) है, जो स्ववश मनमें सदा सुस्थित है (अर्थात् जो सदा मनकोभावको स्ववश करके विराजमान है ) और जो शुद्ध सिद्ध है (अर्थात् जो शुद्ध सिद्धभगवान समान है )ऐसा सहज तेजराशिमें मग्न जीव जयवन्त है २५२