Niyamsar (Hindi).

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कहानजैनशास्त्रमाला ]निश्चय परमावश्यक अधिकार[ ३०१
वशाभिधानपरमश्रमणः सर्वोत्कृष्टोऽन्तरात्मा, षोडशकषायाणामभावादयं क्षीणमोहपदवीं
परिप्राप्य स्थितो महात्मा
असंयतसम्यग्द्रष्टिर्जघन्यांतरात्मा अनयोर्मध्यमाः सर्वे
मध्यमान्तरात्मानः निश्चयव्यवहारनयद्वयप्रणीतपरमावश्यकक्रियाविहीनो बहिरात्मेति
उक्तं च मार्गप्रकाशे
(अनुष्टुभ्)
‘‘बहिरात्मान्तरात्मेति स्यादन्यसमयो द्विधा
बहिरात्मानयोर्देहकरणाद्युदितात्मधीः ।।’’
(अनुष्टुभ्)
‘‘जघन्यमध्यमोत्कृष्टभेदादविरतः सुद्रक्
प्रथमः क्षीणमोहोन्त्यो मध्यमो मध्यमस्तयोः ।।’’

तथा हि सोलह कषायोंके अभाव द्वारा क्षीणमोहपदवीको प्राप्त करके स्थित है असंयत सम्यग्दृष्टि जघन्य अन्तरात्मा है इन दोके मध्यमें स्थित सर्व मध्यम अन्तरात्मा हैं निश्चय और व्यवहार इन दो नयोंसे प्रणीत जो परम आवश्यक क्रिया उससे जो रहित हो वह बहिरात्मा है

श्री मार्गप्रकाशमें भी (दो श्लोकों द्वारा ) कहा है कि :

[श्लोकार्थ : ] अन्यसमय (अर्थात् परमात्माके अतिरिक्त जीव ) बहिरात्मा और अन्तरात्मा ऐसे दो प्रकारके हैं; उनमें बहिरात्मा देह-इन्द्रिय आदिमें आत्मबुद्धिवाला होता है ’’

‘‘[श्लोकार्थ : ] अंतरात्माके जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट ऐसे (तीन ) भेद हैं; अविरत सम्यग्दृष्टि वह प्रथम (जघन्य ) अंतरात्मा है, क्षीणमोह वह अन्तिम (उत्कृष्ट ) अंतरात्मा है और उन दोके मध्यमें स्थित वह मध्यम अंतरात्मा है ’’

और (इस १४९वीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्लोक कहते हैं ) :