Niyamsar (Hindi). Gatha: 151.

< Previous Page   Next Page >


Page 304 of 388
PDF/HTML Page 331 of 415

 

background image
जिसने निज अभ्यन्तर अङ्ग प्रगट किया है ऐसा अन्तरात्मा, मोह क्षीण होने पर, किसी
(अद्भुत ) परम तत्त्वको अन्तरमें देखता है
२५९
गाथा : १५१ अन्वयार्थ :[यः ] जो [धर्मशुक्लध्यानयोः ] धर्मध्यान
और शुक्लध्यानमें [परिणतः ] परिणत है [सः अपि ] वह भी [अन्तरंगात्मा ]
अन्तरात्मा है; [ध्यानविहीनः ] ध्यानविहीन [श्रमणः ] श्रमण [बहिरात्मा ] बहिरात्मा है
[इति विजानीहि ] ऐसा जान
टीका :यहाँ (इस गाथामें ), स्वात्माश्रित निश्चय - धर्मध्यान और निश्चय -
शुक्लध्यान यह दो ध्यान ही उपादेय हैं ऐसा कहा है
यहाँ (इस लोकमें ) वास्तवमें साक्षात् अन्तरात्मा भगवान क्षीणकषाय हैं
वास्तवमें उन भगवान क्षीणकषायको सोलह कषायोंका अभाव होनेके कारण
दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय कर्मरूपी योद्धाओंके दल नष्ट हुए हैं इसलिये वे
(भगवान क्षीणकषाय )
सहजचिद्विलासलक्षण अति - अपूर्व आत्माको शुद्धनिश्चय -
धर्मध्यान और शुद्धनिश्चय - शुक्लध्यान इन दो ध्यानों द्वारा नित्य ध्याते हैं इन दो ध्यानों
जो धम्मसुक्कझाणम्हि परिणदो सो वि अंतरंगप्पा
झाणविहीणो समणो बहिरप्पा इदि विजाणीहि ।।१५१।।
यो धर्मशुक्लध्यानयोः परिणतः सोप्यन्तरंगात्मा
ध्यानविहीनः श्रमणो बहिरात्मेति विजानीहि ।।१५१।।
अत्र स्वात्माश्रयनिश्चयधर्मशुक्लध्यानद्वितयमेवोपादेयमित्युक्त म्
इह हि साक्षादन्तरात्मा भगवान् क्षीणकषायः तस्य खलु भगवतः क्षीणकषाय-
स्य षोडशकषायाणामभावात् दर्शनचारित्रमोहनीयकर्मराजन्ये विलयं गते अत एव सहज-
चिद्विलासलक्षणमत्यपूर्वमात्मानं शुद्धनिश्चयधर्मशुक्लध्यानद्वयेन नित्यं ध्यायति आभ्यां
सहजचिद्विलासलक्षण = जिसका लक्षण (चिह्न अथवा स्वरूप) सहज चैतन्यका विलास है ऐसे
रे धर्म-शुक्ल-सुध्यान-परिणत अन्तरात्मा जानिये
अरु ध्यान विरहित श्रमणको बहिरातमा पहिचानिये ।।१५१।।
३०४ ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-