Niyamsar (Hindi). Adhikar-12 : Shuddhopayog Adhikar Gatha: 159.

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शुद्धोपयोग अधिकार
अथ सकलकर्मप्रलयहेतुभूतशुद्धोपयोगाधिकार उच्यते
जाणदि पस्सदि सव्वं ववहारणएण केवली भगवं
केवलणाणी जाणदि पस्सदि णियमेण अप्पाणं ।।१५९।।
जानाति पश्यति सर्वं व्यवहारनयेन केवली भगवान्
केवलज्ञानी जानाति पश्यति नियमेन आत्मानम् ।।१५९।।
अत्र ज्ञानिनः स्वपरस्वरूपप्रकाशकत्वं कथंचिदुक्त म्
आत्मगुणघातकघातिकर्मप्रध्वंसनेनासादितसकलविमलकेवलज्ञानकेवलदर्शनाभ्यां व्यवहार-
अब समस्त कर्मके प्रलयके हेतुभूत शुद्धोपयोगका अधिकार कहा जाता है

गाथा : १५९ अन्वयार्थ :[व्यवहारनयेन ] व्यवहारनयसे [केवली भगवान् ] केवली भगवान [सर्वं ] सब [जानाति पश्यति ] जानते हैं और देखते हैं; [नियमेन ] निश्चयसे [केवलज्ञानी ] केवलज्ञानी [आत्मानम् ] आत्माको (स्वयंको ) [जानाति पश्यति ] जानता है और देखता है

टीका :यहाँ, ज्ञानीको स्व-पर स्वरूपका प्रकाशकपना कथंचित् कहा है
‘पराश्रितो व्यवहारः (व्यवहार पराश्रित है )’ ऐसा (शास्त्रका ) वचन होनेसे,
व्यवहारसे प्रभु केवली सब जानते अरु देखते
निश्चयनयात्मक-द्वारसे निज आत्मको प्रभु पेखते ।।१५९।।