Niyamsar (Hindi). Gatha: 167.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]शुद्धोपयोग अधिकार[ ३३७
मुत्तममुत्तं दव्वं चेयणमियरं सगं च सव्वं च
पेच्छंतस्स दु णाणं पच्चक्खमणिंदियं होइ ।।१६७।।
मूर्तममूर्तं द्रव्यं चेतनमितरत् स्वकं च सर्वं च
पश्यतस्तु ज्ञानं प्रत्यक्षमतीन्द्रियं भवति ।।१६७।।
केवलबोधस्वरूपाख्यानमेतत
षण्णां द्रव्याणां मध्ये मूर्तत्वं पुद्गलस्य पंचानाम् अमूर्तत्वम्; चेतनत्वं जीवस्यैव

पंचानामचेतनत्वम् मूर्तामूर्तचेतनाचेतनस्वद्रव्यादिकमशेषं त्रिकालविषयम् अनवरतं पश्यतो भगवतः श्रीमदर्हत्परमेश्वरस्य क्रमकरणव्यवधानापोढं चातीन्द्रियं च सकलविमलकेवलज्ञानं सकलप्रत्यक्षं भवतीति

तथा चोक्तं प्रवचनसारे

गाथा : १६७ अन्वयार्थ :[मूर्तम् अमूर्तम् ] मूर्त-अमूर्त [चेतनम् इतरत् ] चेतनअचेतन [द्रव्यं ] द्रव्योंको[स्वकं च सर्वं च ] स्वको तथा समस्तको [पश्यतः तु ] देखनेवाले (जाननेवालेका ) [ज्ञानम् ] ज्ञान [अतीन्द्रियं ] अतीन्द्रिय है, [प्रत्यक्षम् भवति ] प्रत्यक्ष है

टीका :यह, केवलज्ञानके स्वरूपका कथन है

छह द्रव्योंमें पुद्गलको मूर्तपना है, (शेष ) पाँचको अमूर्तपना है; जीवको ही चेतनपना है, (शेष ) पाँचको अचेतनपना है त्रिकाल सम्बन्धी मूर्त - अमूर्त चेतन - अचेतन स्वद्रव्यादि अशेषको (स्व तथा पर समस्त द्रव्योंको ) निरन्तर देखनेवाले भगवान श्रीमद् अर्हत्परमेश्वरका जो क्रम, इन्द्रिय और

व्यवधान रहित, अतीन्द्रिय सकल-विमल (सर्वथा

निर्मल ) केवलज्ञान वह सकलप्रत्यक्ष है

इसीप्रकार (श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत ) श्री प्रवचनसारमें (५४वीं गाथा द्वारा ) कहा है कि : व्यवधानके अर्थके लिये २८वें पृष्ठकी टिप्पणी देखो

जो मूर्त और अमूर्त जड़ चेतन स्वपर सब द्रव्य हैं
देखे उन्हें उसको अतीन्द्रिय ज्ञान है, प्रत्यक्ष है ।।१६७।।