Niyamsar (Hindi). Gatha: 4.

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णियमं मोक्खउवाओ तस्स फलं हवदि परमणिव्वाणं
एदेसिं तिण्हं पि य पत्तेयपरूवणा होइ ।।।।
नियमो मोक्षोपायस्तस्य फलं भवति परमनिर्वाणम्
एतेषां त्रयाणामपि च प्रत्येकप्ररूपणा भवति ।।।।
रत्नत्रयस्य भेदकरणलक्षणकथनमिदम्
मोक्षः साक्षादखिलकर्मप्रध्वंसनेनासादितमहानन्दलाभः पूर्वोक्त निरुपचाररत्नत्रय-
परिणतिस्तस्य महानन्दस्योपायः अपि चैषां ज्ञानदर्शनचारित्राणां त्रयाणां प्रत्येकप्ररूपणा
भवति कथम्, इदं ज्ञानमिदं दर्शनमिदं चारित्रमित्यनेन विकल्पेन दर्शनज्ञानचारित्राणां
लक्षणं वक्ष्यमाणसूत्रेषु ज्ञातव्यं भवति
१० ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
गाथा : ४ अन्वयार्थ :[नियमः ] (रत्नत्रयरूप) नियम [मोक्षोपायः ]
मोक्षका उपाय है; [तस्य फलं ] उसका फल [परमनिर्वाणं भवति ] परम निर्वाण है
[अपि च ] पुनश्च (भेदकथन द्वारा अभेद समझानेके हेतु) [एतेषां त्रयाणां ] इन तीनोंका
[प्रत्येकप्ररूपणा ] भेद करके भिन्न-भिन्न निरूपण [भवति ] होता है
टीका :रत्नत्रयके भेद करनेके सम्बन्धमें और उनके लक्षणोंके सम्बन्धमें यह
कथन है
समस्त कर्मोंके नाश द्वारा साक्षात् प्राप्त किया जानेवाला महा आनन्दका लाभ सो
मोक्ष है उस महा आनन्दका उपाय पूर्वोक्त निरुपचार रत्नत्रयरूप परिणति है पुनश्च
(निरुपचार रत्नत्रयरूप अभेदपरिणतिमें अन्तर्भूत रहे हुए) इन तीनकाज्ञान, दर्शन और
चारित्रकाभिन्न-भिन्न निरूपण होता है किस प्रकार ? यह ज्ञान है, यह दर्शन है, यह
चारित्र हैइसप्रकार भेद करके (इस शास्त्रमें) जो गाथासूत्र आगे कहे जायेंगे उनमें
दर्शन-ज्ञान-चारित्रके लक्षण ज्ञात होंगे
[अब, चौथी गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए श्लोक कहा जाता है :]
है नियम मोक्ष - उपाय, उसका फल परम निर्वाण है
इन तीनका ही भेदपूर्वक भिन्न-भिन्न विधान है ।।।।