Niyamsar (Hindi). Gatha: 5.

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[श्लोेकार्थ :] मुनियोंको मोक्षका उपाय शुद्धरत्नत्रयात्मक (शुद्धरत्नत्रय-
परिणतिरूप परिणमित) आत्मा है ज्ञान इससे कोई अन्य नहीं है, दर्शन भी इससे अन्य
नहीं है और शील (चारित्र) भी अन्य नहीं है यह, मोक्षको प्राप्त करनेवालोंने
(अर्हन्तभगवन्तोंने) कहा है इसे जानकर जो जीव माताके उदरमें पुनः नहीं आता, वह
भव्य है ११
गाथा : ५ अन्वयार्थ :[आप्तागमतत्त्वानां ] आप्त, आगम और तत्त्वोंकी
[श्रद्धानात् ] श्रद्धासे [सम्यक्त्वम् ] सम्यक्त्व [भवति ] होता है; [व्यपगताशेषदोषः ]
जिसके अशेष (समस्त) दोष दूर हुए हैं ऐसा जो [सक लगुणात्मा ] सकलगुणमय पुरुष
[आप्तः भवेत् ] वह आप्त है
टीका :यह, व्यवहारसम्यक्त्वके स्वरूपका कथन है
आप्त अर्थात् शंकारहित शंका अर्थात् सकल मोहरागद्वेषादिक (दोष) आगम
अर्थात् आप्तके मुखारविन्दसे निकली हुई, समस्त वस्तुविस्तारका स्थापन करनेमें समर्थ ऐसी
(मन्दाक्रान्ता)
मोक्षोपायो भवति यमिनां शुद्धरत्नत्रयात्मा
ह्यात्मा ज्ञानं न पुनरपरं
द्रष्टिरन्याऽपि नैव
शीलं तावन्न भवति परं मोक्षुभिः प्रोक्त मेतद्
बुद्धवा जन्तुर्न पुनरुदरं याति मातुः स भव्यः
।।११।।
अत्तागमतच्चाणं सद्दहणादो हवेइ सम्मत्तं
ववगयअसेसदोसो सयलगुणप्पा हवे अत्तो ।।।।
आप्तागमतत्त्वानां श्रद्धानाद्भवति सम्यक्त्वम्
व्यपगताशेषदोषः सकलगुणात्मा भवेदाप्तः ।।।।
व्यवहारसम्यक्त्वस्वरूपाख्यानमेतत
आप्तः शंकारहितः शंका हि सकलमोहरागद्वेषादयः आगमः तन्मुखारविन्द-
विनिर्गतसमस्तवस्तुविस्तारसमर्थनदक्षः चतुरवचनसन्दर्भः तत्त्वानि च बहिस्तत्त्वान्तस्तत्त्व-
कहानजैनशास्त्रमाला ]जीव अधिकार[ ११
रे ! आप्त - आगम - तत्त्वका श्रद्धान वह सम्यक्त्व है
निःशेषदोषविहीन जो गुणसकलमय सो आप्त है ।।।।