Niyamsar (Hindi).

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है; [परिणामरहितवचनं ] (ज्ञानीको ) परिणामरहित वचन होता है [तस्मात् ] इसलिये
[ज्ञानिनः ] ज्ञानीको (केवलज्ञानीको ) [हि ] वास्तवमें [बंधः न ] बंध नहीं है
[ईहापूर्वं ] इच्छापूर्वक [वचनं ] वचन [जीवस्य च ] जीवको [बंधकारणं ]
बन्धका कारण [भवति ] है; [ईहारहितं वचनं ] (ज्ञानीको ) इच्छारहित वचन होता है
[तस्मात् ] इसलिये [ज्ञानिनः ] ज्ञानीको (केवलज्ञानीको ) [हि ] वास्तवमें [बंधः न ]
बंध नहीं है
टीका :यहाँ वास्तवमें ज्ञानीको (केवलज्ञानीको ) बन्धके अभावका स्वरूप
कहा है
सम्यग्ज्ञानी (केवलज्ञानी ) जीव कहीं कभी स्वबुद्धिपूर्वक अर्थात् स्वमन-
परिणामपूर्वक वचन नहीं बोलता क्यों ? ‘‘अमनस्काः केवलिनः (केवली मनरहित हैं )’’
ऐसा (शास्त्रका) वचन होनेसे इस कारणसे (ऐसा समझना कि)जीवको
मनपरिणतिपूर्वक वचन बन्धका कारण है ऐसा अर्थ है और मनपरिणतिपूर्वक वचन तो
केवलीको होता नहीं है; (तथा) इच्छापूर्वक वचन ही
साभिलाषस्वरूप जीवको बन्धका
कारण है और केवलीके मुखारविन्दसे निकलती हुई, समस्त जनोंके हृदयको आह्लादके
कारणभूत दिव्यध्वनि तो अनिच्छात्मक (इच्छारहित) होती है; इसलिये सम्यग्ज्ञानीको
(केवलज्ञानीको) बन्धका अभाव है
[अब इन १७३ - १७४वीं गाथाओंकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज
तीन श्लोक कहते हैं :]
ईहापूर्वं वचनं जीवस्य च बंधकारणं भवति
ईहारहितं वचनं तस्माज्ज्ञानिनो न हि बंधः ।।१७४।।
इह हि ज्ञानिनो बंधाभावस्वरूपमुक्त म्
सम्यग्ज्ञानी जीवः क्वचित् कदाचिदपि स्वबुद्धिपूर्वकं वचनं न वक्ति स्वमनःपरिणाम-
पूर्वकमिति यावत कुतः ? ‘‘अमनस्काः केवलिनः’’ इति वचनात अतः कारणाज्जीवस्य
मनःपरिणतिपूर्वकं वचनं बंधकारणमित्यर्थः, मनःपरिणामपूर्वकं वचनं केवलिनो न भवति;
ईहापूर्वं वचनमेव साभिलाषात्मकजीवस्य बंधकारणं भवति, केवलिमुखारविन्दविनिर्गतो
दिव्यध्वनिरनीहात्मकः समस्तजनहृदयाह्लादकारणम्; ततः सम्यग्ज्ञानिनो बंधाभाव इति
साभिलाषस्वरूप = जिसका स्वरूप साभिलाष (इच्छायुक्त) हो ऐसे
३४८ ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-